फतेहपुर के वीभत्स लोहारी नरसंहार के 10वें कैदी की भी मौत, सुप्रीम कोर्ट ने 11 लोगों को सुनाई थी सजा

Lohari Murder Case में गंगा के किनारे ले जाकर अनुसूचित जाति के आठ लोगों को मौत के घाट उतार शव नदी में बहा दिया गया था। किसी का शव बरामद नहीं हो सका था। धीरेंद्र प्रताप की मौत की खबर के बाद नरसंहार की यादें ताजा हो गई हैं।

By Shaswat GuptaEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 07:06 AM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 07:06 AM (IST)
फतेहपुर के वीभत्स लोहारी नरसंहार के 10वें कैदी की भी मौत, सुप्रीम कोर्ट ने 11 लोगों को सुनाई थी सजा
कैदी की मौत से संबंधित खबर की प्रतीकात्मक फोटो।

फतेहपुर, जेएनएन। हुसेनगंज थानाक्षेत्र के लोहारी गांव में 41 वर्ष पहले हुए नरसंहार में उम्रकैद की सजा पाए 11 अभियुक्तों में रविवार को 10वें कैदी की भी मौत हो गई। वर्ष 1979 को अनुसूचित जाति के लोगों की हत्या के मामले में प्रयागराज की नैनी जेल में सजा काट रहे 70 वर्षीय धीरेंद्र प्रताप ङ्क्षसह निवासी मवइया मजरे करमोन थाना थरियांव ने बीमारी के चलते वहां के स्वरूप रानी मेडिकल कालेज में दम तोड़ दिया। खबर पाकर पत्नी व बेटे के साथ अन्य स्वजन प्रयागराज रवाना हो गए। नरसंहार का अब एकमात्र सजायाफ्ता नैनी जेल में रह गया है। 

धीरेंद्र प्रताप की मौत की खबर के बाद एक बार फिर लोहारी गांव के नरसंहार की यादें लोगों के बीच चर्चाओं में ताजा हो गई हैं कि कैसे गांव के प्रभावशाली व्यक्ति की हत्या अनुसूचित जाति के लोगों ने कर दी थी। इसी रंजिश में गंगा के किनारे ले जाकर अनुसूचित जाति के आठ लोगों को मौत के घाट उतार शव नदी में बहा दिया गया था। किसी का शव बरामद नहीं हो सका था। इस केस से जुड़े रहे अधिवक्ता बलराज उमराव बताते हैं, लोहारी गांव के राजबहादुर ङ्क्षसह प्राथमिक स्कूल के शिक्षक थे। 24 जुलाई 1979 की रात राजबहादुर की हत्या कर डकैती डाली गई थी। घटना में शामिल लोगों को पहचान जाने के बाद ही स्वजन और करीबियों ने नरसंहार की पटकथा तैयार कर ली थी। डकैती का मुकदमा भी इसीलिए नहीं लिखवाया और बदला लेने के लिए करीब डेढ़ माह बाद ही नौ सितंबर को तड़के घटना को अंजाम दिया। गांव से कल्लू, गंगा, अरविंद, दीनदयाल, तुलसी, श्रीपाल, सुखलाल व यशोदिया को सोते से उठाकर गंगा किनारे ले जाकर धारदार हथियारों से हमला किया और नदी में फेंक दिया। इनमें घायल यशोदिया बहते हुए नदी पार पहुंच गई। पुलिस को दिया उसका बयान ही मुकदमे में महत्वपूर्ण रहा। बयान के बाद उसकी भी मौत हो गई थी। नरसंहार में मथुरा सिंह, लल्लन सिंह, विजयकरन सिंह, चंद्रभान सिंह, वीरेंद्र सिंह उर्फ सिपाही, बनवारी, छेद्दू सिंह, रामसजीवन, छैला सिंह, उदयभान सिंह, मुन्ना पांडेय और धीरेंद्र प्रताप को वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सजा के फैसले के पहले ही मथुरा सिंह और विजयकरन की मौत हो चुकी थी। दोनों नैनी जेल में निरुद्ध थे। सजा सुनाए जाने के बाद से अब तक एक-एक कर अन्य कैदियों की भी मौत होती गई। धीरेंद्र प्रताप की तबीयत एक सप्ताह से खराब चल रही थी। जेल प्रशासन ने अस्पताल में भर्ती कराया था। मौत की खबर पर दिवंगत की पत्नी सरस्वती देवी, बेटी नेहा, निशा व ऊषा प्रयागराज के लिए रवाना हो गईं। इस समय केवल एक कैदी मुन्ना पांडेय ही नैनी जेल में सजा काट रहा है।

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