गंगा की निगरानी के लिए पहुंची एसडीआरएफ, डीसीपी ने किया निरीक्षण
जेएनएन बिठूर गंगा के तटों को कब्रिस्तान समझकर शव दफनाने या प्रवाहित करने वालों को पर अब कड़ाई की जाएगी।
जेएनएन, बिठूर : गंगा के तटों को कब्रिस्तान समझकर शव दफनाने या प्रवाहित करने वालों को अब जेल जाना पड़ सकता है। शासन के निर्देश के बाद अधिकारियों ने गंगा घाटों व तटों की निगरानी बढ़ा दी है। इसके लिए शनिवार को लखनऊ से एसडीआरएफ की 15 सदस्यीय टीम भी नाव व अन्य उपकरणों के साथ बिठूर पहुंच गई। जहां डीसीपी पश्चिम ने खुद पहुंचकर घाटों व तटों का निरीक्षण किया और स्थानीय लोगों को दिशा निर्देश दिए। डीसीपी संजीव त्यागी ने बताया कि बिठूर के ब्रह्मावर्त घाट से लेकर गंगा बैराज घाट तक एसडीआरएफ टीम प्लाटून कमांडर धर्मेंद्र तिवारी के नेतृत्व में रोजाना घाटों व तटों के किनारे लोगों को शव दफनाने, प्रवाहित करने और जलाने से रोकेगी। शवों का अंतिम संस्कार केवल पहले से निर्धारित श्मशान घाट पर ही किया जा सकता है। लोगों को रोकने के बाद भी अगर किसी ने नियमों का उल्लंघन किया तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करके कार्रवाई की जाएगी। गंगा बैराज से लेकर महाराजपुर में कानपुर की सीमा तक 37वीं बटालियन पीएसी की फ्लड टीम के सदस्य तैनात किए गए हैं। डीसीपी के साथ कल्याणपुर एसीपी दिनेश कुमार शुक्ला और बिठूर थाना प्रभारी अमित कुमार मिश्रा भी रहे। अधिकारियों ने बताया कि एसडीआरएफ टीम के साथ बिठूर के पत्थर घाट से मोटर बोट पर गंगा के किनारे पांच किलोमीटर दूर तक बसे गांवों का निरीक्षण किया। बैराज व भैरोघाट के पास एसीपी कर्नलगंज ने किया निरीक्षण : एसीपी कर्नलगंज त्रिपुरारी पांडेय ने भी कोहना थाना प्रभारी व फोर्स के साथ बैराज से लेकर भैरोघाट तक गंगा किनारे के दोनों क्षेत्रों का निरीक्षण करके शवों को केवल श्मशान घाटों पर ही अंतिम संस्कार करने की अपील की। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति अंतिम संस्कार कर पाने में असमर्थ है तो पुलिस की मदद ले सकता है। कमिश्नरेट पुलिस रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करने में मदद करेगी। टिकरा में 30 दिनों में 18 मौतें, दहशत में ग्रामीण, बिठूर : कल्याणपुर ब्लाक के टिकरा गांव में बीते 30 दिनों में 18 लोगों की मौत हो चुकी है। सभी मौतें बुखार की वजह से हुई हैं, लेकिन कोरोना की जांच न होने की वजह से उनका नाम संक्रमितों की सूची में शामिल नहीं हो सका। गांव में जो भी मौतें हुईं, सब बुखार से ही पीड़ित थे और सभी को खांसी और जुकाम के साथ सांस फूलने की समस्या थी। इसे सिस्टम की लापरवाही कहें या फिर कुछ और। गांव में सिर्फ 95 लोगों की कोविड जांच हुई है, जबकि यहां की आबादी 4600 है।