क्यों आज कठघरे में है परवरिश और दूर हो रहे संस्कार, पढ़िए- एक अच्छी पैरेंटिंग के सरल सूत्र

संयुक्त परिवार में बच्चों की अपने आप ही परविरश हो जाती थी और दादा-दादी की कहानियाें के बीच बुआ की प्यार में भरी फटकार के साथ बड़ी मां का दुलार सही रास्ता दिखाने के साथ संस्कारी भी बना देते थे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Thu, 25 Nov 2021 01:08 PM (IST) Updated:Thu, 25 Nov 2021 01:08 PM (IST)
क्यों आज कठघरे में है परवरिश और दूर हो रहे संस्कार, पढ़िए- एक अच्छी पैरेंटिंग के सरल सूत्र
बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए सरल सूत्र।

दोधारी तलवार हो गई है आजकल पैरेंटिंग। अगर बच्चों को भौतिक संसाधनों से वंचित रखा जाए या कुछ सीमाएं बना दी जाएं तो वे मन में माता-पिता के प्रति द्वेष पैदा कर लेते हैं। अगर बच्चों को सारी सुख-सुविधाएं दी जाएं तो वे अपनी सीमाओं को नहीं पहचानते हैं और ऐसा कारनामा कर गुजरते हैं, जो समाज की नजरों में हिमाकत और मनमानी कहलाता है। ऐसे में माता-पिता कैसे संतुलन बनाएं कि बच्चे खुश भी रहें साथ ही अच्छे-बुरे की पहचान भी कर सकें। चुनौती कठिन है, लेकिन समस्या के साथ समाधान भी मौजूद हैं...। पढ़िए, बच्चों की परवरिश को लेकर नई दिल्ली की यशा माथुर का खास लेख..

पुष्पिता का बेटा पुनीत जब हास्टल जाने की तैयारी कर रहा था तो उन्होंने उसके लिए हर सुख-सुविधा जुटाने की ठानी। कुछ पैसे ले-देकर हास्टल के कर्मचारियों को उसके कमरे की सफाई और उसकी जरूरत के काम करने के लिए भी तय कर दिया। अब जब पुनीत को महीने के पैसे देने की बारी आई तो उन्होंने सोचा कि हम दोनों मेहनत से लाखों रुपये कमा रहे हैं तो हमारा इकलौता बच्चा किसी चीज के लिए क्यों तरसे। वह पुनीत से पूछतीं कि बेटा कितने पैसे ट्रांसफर करूं और जो बेटा कहता उसके खाते में डाल देतीं। नतीजा, पहले सेमेस्टर में ही पुनीत ने धूमपान और अल्कोहल की लत लगा ली और पढ़ाई में पिछड़ गया। वह मम्मी से झूठ बोलने लगा और दोस्तों के साथ चिल करने लगा। यह सब पुष्पिता को तब पता चला जब हास्टल से शिकायत आई कि आपके बच्चे की आदतें खराब हो रही हैं, लेकिन अब तीर वापस कमान में नहीं आ सकता था।

पुष्पिता बच्चे को डांटने लगीं। पिता सिर पकड़कर बैठ गए और बेटे पर से उनका भरोसा उठ गया। अपने व पुनीत के भविष्य की सोचकर उनका जिंदगी जीना मुहाल हो गया। यहां सीधे पुष्पिता की परवरिश को ही दोष दिया जाएगा कि उसने जमाने के रंग को जाना नहीं, ढंग को पहचाना नहीं। इस संदर्भ में लेखिका नेहा सुराना की कुछ पंक्तियां गौर करने लायक हैैं। वह मां की व्यथा को अपनी कविता में यूं लिखती हैं, एक पतली सी लकीर है, मां से दोस्त बनने में, कब करनी है पार, दुविधा हो जाती यह समझने में... मतलब यह कि तराजू के दोनों पलड़े बराबर रहें, इसके लिए बहुत ही सोच-समझकर कदम उठाने होंगे।

संस्कार दिखाते रास्ता

वे दिन कितने सही थे, जब संयुक्त परिवार में बच्चे अपने आप ही पलते थे और जब कुछ खास चाहिए होता था तभी माता-पिता के पास आकर कुछ मांग करते थे। नहीं तो दादा-दादी की कहानियां व उपदेश, बुआ की प्यार में पगी फटकार, बड़ी मां का दुलार और चाचा से बाल जिज्ञासाओं के मिले जवाब उन्हें सही रास्ता दिखा देते थे। आखिर क्या कारण है कि अब छोटी उम्र में ही बच्चे राह भटक रहे हैं और अपने बच्चों को अच्छी तरह से पालने की जरूरत समझने वाले पढ़े-लिखे माता-पिता कहीं पर खुद को हारा हुआ महसूस कर रहे हैं। इन सबके लिए समाजशास्त्री रितु सारस्वत समाज के बदलते ताने-बाने और बढ़ते वैश्वीकरण को दोषी मानती हैं। वह कहती हैं, बच्चे की परवरिश में माता-पिता के संस्कारों की बहुत अहम भूमिका होती है। जब बच्चा टूटता है तब माता-पिता की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

पिछले दो दशकों में जबसे वैश्वीकरण बढ़ा है तबसे बच्चे उन संसाधनों की ओर तेजी से बढ़े हैं, जो पहले आसानी से उपलब्ध नहीं थे। इनमें आप मोबाइल, इंटरनेट, गाड़ी आदि शामिल कर सकते हैं। वे आसानी से दुनियाभर के लोगों से बात कर लेते हैं। आजकल इनके लिए आदर्श व्यक्ति वह है जिसके पास बहुत पैसा है, जो ब्रांडेड कपड़े पहनता है। समाज का ढांचा आदर्शों पर नहीं, बल्कि भौतिक संसाधनों पर टिक गया है। यह संरचनात्मक परिवर्तन बहुत तेजी से हुआ है। इस परिवर्तन का ही परिणाम है कि बच्चे विध्वंसात्मक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। उनको पता ही नहीं चल रहा कि वे स्वयं का विध्वंस कर रहे हैं। नाबालिग बच्चे अपराध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें हर चीज सहज उपलब्ध है। वातावरण में जो उन्मुक्तता आई है उसने उन्हें खराब कर दिया है।

शौक में शामिल करें बच्चों को

इसी समाज में चार बच्चे नशा कर रहे हैं तो एक बच्चा किसी गलत चीज को बिल्कुल हाथ नहीं लगाता है। क्यों? क्योंकि उसके माता-पिता उसके संतुलित व संस्कारित विकास में जुटे हैं। पैसे की अंधी दौड़ में भाग नहीं रहे हैं, बल्कि उन्हें नये रचनात्मक शौक दे रहे हैं। बच्चे भी अपने माता-पिता की भावनाओं का खयाल रख रहे हैं। अब देखिए यूके से गुजरात आकर बस गईं भारुलता पटेल कांबले के बच्चों ने उनके ड्राइविंग के जुनून को अपने शौक में शामिल कर लिया और वह भी अपने दो छोटे बच्चों को लेकर निकल पड़ीं दुनिया के अंतिम छोर, उत्तरी ध्रुव की ओर। 14 देशों और 10,000 किमी. की ड्राइव कर भारुलता ने 10 साल के आरुष और 13 साल के प्रियम के साथ ब्रिटेन के ल्यूटन से शुरू कर उत्तरी ध्रुव का रास्ता तय किया और वहां तिरंगा लहराया। भारुलता पटेल कांबले ने जीवन में खुद काफी संघर्ष किए, लेकिन चिकित्सक पति के साथ मिलकर बच्चों को अच्छे संस्कार दिए। विदेश में रहकर भी वह बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोडऩे का प्रयत्न करती रहीं। आज अपनी परवरिश पर नाज करते हुए वह कहती हैं कि इस ड्राइव का विचार भी बच्चों ने ही दिया। जब मैंने कैंसर का कठिन दौर देखा तो बच्चों ने मुझे अवसाद से उबारने के लिए मेरे पैशन को आगे बढ़ाने की सोची और हमने यह योजना बनाई।

बच्चे ने आपसे तो नहीं सीखा

माना जाता है कि ज्यादातर अच्छी-बुरी आदतें बच्चे अपने माता-पिता से ही सीखते हैं। अगर आपका बच्चा कभी कोई गलती करता है तो सबसे पहले थोड़ा सा वक्त लेकर यह सोचें कि कहीं उसने आपसे ही तो ये आदत नहीं सीखी है? बबीता अपनी बेटी स्वाति को बुरी तरह से डांटती थीं। उसके गलत काम करने पर चिल्लाती थीं। एक दिन बबीता ने देखा कि स्वाति अपनी गुडिय़ा को उसी टोन में चिल्लाकर डांट रही है तो एहसास हुआ कि यह तो ठीक मेरी भाषा बोल रही है। अपनी समझ से तुरंत सबक लेने वाली बबीता बताती हैं, मैंने स्वाति से सम्मान से बात करना शुरू किया तो धीरे-धीरे वह भी धीमे और तरीके से बोलना सीख गई।

माता-पिता सच्चाई से दूर न भागें

समाजशास्त्री रितु सारस्वत कहती हैं, बच्चों और माता-पिता के बीच अब आपसी संवाद है ही नहीं। माता-पिता की नौकरी से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि एक तरफ तो बच्चे ही बात करना नहीं चाहते, दूसरी तरफ माता-पिता सच्चाई से दूर भागते हैं और बच्चों से बात करने का समय नहीं निकालते। हर किसी का अपना दायरा, अपना सर्किल हो गया है जिससे वे बाहर नहीं निकलना चाहते। बच्चा जब बड़ा हो रहा होता है तो उसकी इच्छाएं और महत्वाकांक्षाएं तेजी से बढ़ती हैं। परिवार से कहीं ज्यादा उस पर पीयर प्रेशर होता है। पिछले दो-तीन दशकों में भारत में मध्यम वर्ग में धन का प्रवाह बहुत तेजी से बढ़ा है और माता-पिता इसको बनाए रखने का दबाव में हैं। वे पैसे कमाने के लिए कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रहे हैं। इस भागदौड़ में पीछे छूट रहे हैं उनके बच्चे। कम उम्र में बच्चे कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं, उसी दौरान जब वे माता-पिता द्वारा अनदेखा कर दिए जाते हैं तो उनके मन में हजारों कुंठाएं पनपने लगती हैं।

उसके मन में बहुत से प्रश्न और आकांक्षाएं चल रही होती हैं। जब उनकी आकांक्षाएं बलवती होती जाती हैं और प्रश्नों का जवाब माता-पिता से नहीं मिलता तो वे उसे अपने दोस्तों से साझा करते हैं और बदले में उन्हें आधी-अधूरी, गुमराह करने वाली जानकारी मिलती है। संतुष्टि न मिलने पर वे या तो शार्टकट अपनाते हैं या अनैतिक काम करने लगते हैं। इस मानसिक तनाव को झेलने के लिए वे नशा भी करने लगते हैं। इसमें दोष बच्चे का नहीं है। बच्चे को माता-पिता के समय की जरूरत है। आपका बच्चा क्या कर रहा है आपको पता होना चाहिए। आप बच्चे की गतिविधियों, उसके व्यवहार से उसकी दिशा का पता लगा सकते हैं। आपके पास अनुभव का ज्ञान है। वह दृष्टि है जिससे बच्चे की पदचाप पहचानी जा सकती है। इसके लिए उसके दोस्तों के बारे में भी पता करें। एक कारण यह भी है कि जब बच्चों को पैसा मिलता है तो वे न नहीं सुनना चाहते। जब उनकी किसी मांग पर माता-पिता न कर देते हैं तो वे उस तनाव को झेल नहीं पाते और नशे की ओर मुड़़ जाते हैैं। बेहतर परवरिश के लिए रोज सोने से पहले बच्चों से करीब आधा घंटा बात जरूर करें। उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें। अपनी भाषा पर नियंत्रण रखें। याद रखें कि आपका एक शब्द उसके पूरे जीवन को प्रभावित कर सकता है।

पापा खिलाफ होते तो मैं टूट जाता

यू-ट्यूब चैनल कुकिंग-शुकिंग के संचालक यमन अग्रवाल बताते हैं, मैं शुरू में पापा से बहुत डरता था। जब मैंने यू-ट्यूब पर कुकिंग-शुकिंग चैनल शुरू किया था तो छह महीने तक उन्हें बताया भी नहीं कि मैं क्या कर रहा हूं और छिप-छिपकर इंटरनेट पर वीडियो डालता रहा। डर लगता था कि जब उनको बताऊंगा तो उनकी प्रतिक्रिया पता नहीं क्या रहेगी? लेकिन मैं बहुत छोटा था और मुझे आनलाइन औपचारिकताओं के लिए पापा की जानकारियां चाहिए थीं। जब मैंने उन्हें यह बताया तो उन्होंने पूछा क्यों? फिर मैंने अपने काम और वीडियोज के बारे में उन्हें बताया। मेरी उम्मीद से अलग वह बहुत खुश हुए और मुझ पर गर्व महसूस करने लगे कि मैं खुद के दम पर अपने मन का काम कर रहा हूं। उन्होंने रिश्तेदारों को इस बारे में गर्व से बताया। अगर उस दिन उनकी प्रतिक्रिया मेरे काम के खिलाफ होती तो शायद मैं टूट जाता और आज मैं यह सब नहीं कर पाता। आज मैं और पापा मिलकर यह चैनल चलाते हैं। मैैं दिनभर उनके साथ रहता हूं और जो बातें दोस्तों के साथ कर सकते हैं उनके साथ कर पाता हूं। वह मेरी बात मानते भी हैं। अब तो पापा मेरे साथ वीडियो बनाने में भी सहयोग करते हैं।

जानिए- परवरिश के सरल सूत्र

1-बच्चों को प्राथमिकताएं बताएं।

2-भावनाओं में बहकर हर मांग पूरी न करें।

3-उनसे कमतर बच्चे दिखाकर उन्हें संवेदनशील बनाएं।

4-मेहनत का मूल्य बताएं।

5-बात करें और सुनने की आदत भी डालें।

6-हर दोष उन पर न मढ़ें।

7-एक सीमा से ज्यादा भौतिक संसाधनों को महत्व न दें।

8-सम्मान से बात करेंगे तो बच्चे भी सम्मान देना सीख जाएंगे।

8-बच्चों को अमीर होने की शिक्षा नहीं, बल्कि खुश रहने के संस्कार दें।

9-हर बच्चा अलग प्रकृति का होता है उसका पालन उसकी जरूरतों के हिसाब से होना चाहिए।

10-बच्चों को उनकी सीमाएं बताना जरूरी है। नहीं तो वे नहीं जान पाएंगे कि उन्हें कहां रुकना है और कहां चलना है।

11-बच्चों को अनुशासन के साथ बड़ा करें अन्यथा घर से बाहर निकलने पर मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

12-बच्चों की भावनाओं और उसकी राय को अनदेखा न करें। इससे बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ेगा और वे खुद को उपेक्षित महसूस करेंगे।

13-बच्चों को सही रास्ता बताकर भी छोड़ नहीं देना है, बल्कि उनके साथ कुछ कदम चलना भी है।

14-बच्चे कुछ सलाह मांगे तो विस्तार से उन्हें बताएं। कम शब्दों में उन्हें टाल न दें।

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