Special on the memory of Chandrashekhar Azad : आजाद की स्मृतियां सहेजने की बाट जोह रहा बदरका
Special on the memory of Chandrashekhar Azad भाजपा सरकार के केंद्रीय पर्यटन मंत्री रहे महेश शर्मा क्षेत्रीय विधायक विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने भी आजाद की स्मृतियों को संजोने की योजनाएं विचाराधीन हैं। उनके अमली जामा पहनने का इंतजार आज भी गांव के लोगों को है
उन्नाव, जेएनएन Special on the memory of Chandrashekhar Azad : स्वाधीनता संग्राम के महानायक शहीद चंद्रशेखर आजाद की यादें बदरका गांव के कण-कण में समाहित हैं। अंग्रेजी हुकूमत के दांत खट्टे कर वतन पर मर मिटने वाले शहीद चंद्रशेखर आजाद की माता जगरानी के गांव बदरका को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित कराने का दावा कई राजनीतिक दलों की सरकारों में उनके नुमाइंदों ने किया। लेकिन आजाद की स्मृतियों को संजोने के लेकिन कोई खास विकास नहीं हो सका है। उनकी जन्मस्थली के निवासी उपेक्षित महसूस करते हैं। बदरका गांव स्थित उनके स्मारक सहित अन्य भग्नावशेष जर्जर अवस्था में जमीन दोज होने की कगार पर हैं।
वैसे तो बदरका गांव चंद्रशेखर आजाद की माता जगरानी का गांव हैं। उन्नाव के लोग आजाद जन्म उन्नाव के बदरका गांव स्थित ननिहाल में सात जनवरी को होता बताते हैं। हालांकि इतिहासकार इसे नहीं मानते हैं। उनके अनुसार 23 जुलाई को झबुआ मध्य प्रदेश में उनका जन्म होना प्रमाणिक बताया जाता है। पर बदरका गांव के लोग ऐतिहासिक प्रमाणों को दरकिनार कर कहते है कि आजाद यहां की माटी में ही पले बढ़े ।
कानपुर लखनऊ हाइवे पर के 18 वें किमी पर आजाद द्वार बना है जिसे आजाद चौराहे के नाम से जाना जाता है। यहां से पांच किमी की दूरी पर बदरका ग्राम स्थित है। इस मार्ग का नाम भी आजाद मार्ग है। बदरका में आजाद स्मारक बना है जिसमें उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित है। पैतृक आवास में मां जगरानी की प्रतिमा स्थापित है। बुजुर्गों के अनुसार आजाद का अखाड़ा जिसमें अपने साथियों के साथ कुश्ती लड़ते थे अब अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है। उनके नामपर बनी व्यायाम शाला अपना अस्तित्व खो चुकी है। पूर्ववर्ती सपा सरकार ने बदरका को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए 12 करोड़ से अधिक की विकास योजनाओं की घोषणा की थी जो अब तक अमली जामा नहीं पहन सकी। भाजपा सरकार के केंद्रीय पर्यटन मंत्री रहे महेश शर्मा, क्षेत्रीय विधायक विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने भी आजाद की स्मृतियों को संजोने की योजनाएं विचाराधीन हैं। उनके अमली जामा पहनने का इंतजार आज भी गांव के लोगों को है।
इनका ये है कहना