जानिए- आज से दस दिन तक के खास पर्व और उनका महत्व, किस दिन पूजन से क्या मिलेगा शुभफल

नवरात्र के बाद करवाचौथ से अगले दस दिन तक अलग अलग पर्व-त्योहार शुभफल दायक हैं। हर दिन के पर्व का खास महत्व होने के साथ पूजन की विधि है इन पर्वों पर परिवार की सुख समृद्धि की कामना कर सकते हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 24 Oct 2021 12:55 PM (IST) Updated:Sun, 24 Oct 2021 05:43 PM (IST)
जानिए- आज से दस दिन तक के खास पर्व और उनका महत्व, किस दिन पूजन से क्या मिलेगा शुभफल
करवाचौथ से दस दिन के पर्वों का खास महत्व है।

कानपुर, जेएनएन। दीपोत्सव का पर्व आते ही प्रत्येक दिवस तीज-त्योहार के लिए पहचाना जाने लगता है। इसमें हर दिन किसी न किसी विशेष पूजन का आयोजन इस बार पड़ रहा है। जिसमें विधिवत पूजन अर्चन कर श्रद्धालु परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करेंगे। इस बार करवा चौथ के बाद अहोई अष्टमी, रम्भा एकादशी, गोवत्स एकादशी, नरक चतुर्दशी, भौम प्रदोष, हनुमंत जयंती, दीपावली, अन्नकूट पूजन व भईया दूज जैसे पर्व पर परंपरागत रूप से पूजन का विशेष महत्व होता है। हर दिन पूजन करने से अलग अलग शुभफल दायक होगा। आचार्य अमरेश मिश्र बता रहे हैं तीज-त्योहार और पूजन का महत्व...।

महामंगल योग में मनाया जाएगा करवा चौथ

24 अक्टूबर को महामंगल योग में सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का पूजन अर्चन व व्रत करेंगी। महिलाओं के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व होता है। इस दिन विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत करके सुहाग की दीर्घायु की कामना करती है। रात्रि में चांद को देखकर व्रत समाप्त किया जाता है।

सदानंद सरस्वती जयंती : 25 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग में सदानंद सरस्वती महाराज की जयंती का उत्सव मनाया जाएगा। इस दिन मां शक्ति का विधिवत पूजन व स्मरण करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

अहोई अष्टमी का व्रत : 28 अक्टूबर को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। सूर्योदय से पहले स्नान पूजन कर अहोई माता का स्मरण करने से व्याधियों का अंत होता है। अहोई अष्टमी के दिन को राधाष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है।

रम्भा एकादशी एंव गोवत्स द्वादशी : एक नवंबर को मातृशक्ति गौ माता का पूजन अर्चन करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता है कि गाय माता के चारों पैरों में चारों वेद और पूंछ में पुराणों का वास होता है। इसी को रम्भा एकादशी भी कहते हैं।

धनतेरस की पूजा : दो नवंबर को धनतेरस का त्योहार उत्साहपूर्वक मनाया जाएगा। धनतेरस कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाने वाला पर्व है। धनतेरस के त्योहार को धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जंयती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पूजन अर्चन करने से कुबेर महाराज की कृपा भक्तों पर बरसती है।

नरक चर्तुदशी : तीन नवंबर को नरक चतुर्दशी जिसे रूप चौदस भी कहते हैं उसका पूजन किया जाएगा। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अकाल मृत्यु के दोष को दूर करने के लिए घर के बाहर दीप जलाकर प्रभु का स्मरण करना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा का अंत होता और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

दीपोत्सव का महापर्व : इस वर्ष दीपावली का त्योहार चार नवंबर को चित्रा नक्षत्र और प्रीति योग में मनाया जाएगा। गृहस्थ संध्याकाल में छह से 7.30 बजे तक विशेष योग में पूजन करेंगे। वहीं, व्यापारिक प्रतिष्ठानों में रात्रि 11.40 से 12 बजे तक की अवधि उत्तम है। कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल में लक्ष्मी माता संग गणपति महाराज व कुबेर देवता का पूजन किया जाता है। दीपावली का त्योहार हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक चित्रा नक्षत्र में दीपोत्सव इस बार समाज को प्रेम, समरसता का संदेश देगी।

गोवर्धन पूजा : पांच नवंबर को गोवर्धन पूजा जिसे ज्यादातर भक्त अन्नकूट पूजन के नाम से भी पहचानते हैं। विधिवत पूजन अर्चन किया जाएगा। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मनाया जाता है। स्वाति नक्षत्र और आयुष्मान योग में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजन करना शुभ होता है। अन्नकूट पूजा में भगवान को कढ़ी, चावल, दहीबड़ा और विभिन्न प्रकार की सब्जियों का भोग अर्पित किया जाता है।

भाई दूज : छह नवंबर को भाई दूज घर-घर मनाया जाएगा। इस बार भाई दूज का पर्व अनुराधा नक्षत्र के साथ सौभाग्य व अमृत योग में मनाया जाएगा। इसमें बहनों द्वारा भाईयों का तिलक पूजन किया जाता है। बहनें भाईयों की सुख-समृद्धि के लिए पूजन अर्चन करती हैं। इस दिन चित्रगुप्त पूजन का भी आयोजन किया जाएगा।

छठ पूजा : दस नवंबर को आस्था का महापर्व छठ पूजन दिपावली के छह दिन के बाद उत्साहपूर्वक मनाया जाएगा। इसमें श्रद्धालु छठी मईया से सुख-समृद्धि की कामना करती है। इसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

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