गर्भस्थ शिशु में खून की गड़बड़ी की होगी स्क्रीनिंग

जागरण संवाददाता, कानपुर : गर्भस्थ शिशु में खून की गड़बड़ी की स्क्रीनिंग अब जीएसवीएम मेडिकल

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Feb 2018 01:29 AM (IST) Updated:Wed, 28 Feb 2018 01:29 AM (IST)
गर्भस्थ शिशु में खून की गड़बड़ी की होगी स्क्रीनिंग
गर्भस्थ शिशु में खून की गड़बड़ी की होगी स्क्रीनिंग

जागरण संवाददाता, कानपुर : गर्भस्थ शिशु में खून की गड़बड़ी की स्क्रीनिंग अब जीएसवीएम मेडिकल कालेज में संभव होगी। इसके लिए बाल रोग विभाग में हाई परफार्मेस लिक्विड क्रोमेटोग्राफी मशीन (एचपीएलसी) जल्द आएगी। इस मशीन की मदद से थैलेसीमिया की पहचान व रोकथाम संभव होगी। पीड़ित बच्चों के माता-पिता की स्क्रीनिंग कर बीमारी की रोकथाम में मदद मिलेगी।

थैलेसीमिया जन्मजात खून गड़बड़ी की बीमारी है जो जीन के स्थानांतरण से होती है। इस बीमारी में रक्त में हीमोग्लोबिन ठीक से नहीं बनता है। इसलिए हीमोग्लोबिन की मात्रा 8-9 ग्राम के बीच रहती है, क्योंकि रक्त में हीमोग्लोबिन बन कर टूटता है। ऐसे मरीजों को 21 दिन के अंतराल में रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।

यहां के बाल रोग अस्पताल में पहले से थैलेसीमिया सेंटर चल रहा है। वर्तमान में यहां 42 बच्चे पंजीकृत हैं। शासन ने लखनऊ के केजीएमयू एवं एसजीपीजीआई के बाद जीएसवीएम मेडिकल कालेज में एचपीएलसी मशीन लगेगी। अगर किसी दंपती के पहले बच्चे को थैलेसीमिया की कोई स्टेज है। उसने दूसरा बच्चा प्लान किया है तो इस मशीन की मदद से गर्भकाल के तीन माह में अंदर गर्भवती के नाभि से ब्लड सैंपल लेकर पता सकेंगे। गर्भ में पल रहा बच्चा माइनर या मेजर थैलेसीमिया से ग्रस्त तो नहीं है। पीड़ित होने पर गर्भपात की भी सलाह दी जाएगी, ताकि बीमारी की रोकथाम संभव हो सके।

ऐसे होगी थैलेसीमिया की रोकथाम

बाले रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. यशवंत राव ने बताया कि थैलेसीमिया की दो स्टेज माइन व मेजर होती है। अगर माता-पिता के दो-दो जीन खराब होंगे तो वह मेजर स्टेज में आएंगे। दोनों के एक-एक जीन खराब होने पर माइनर थैलेसीमिया की स्टेज होगी। माता-पिता के माइनर होने पर पैदा होने वाला बच्चा जन्मजात मेजर थैलेसीमिया पीड़ित होगा। मशीन की मदद से बीमारी की स्टेज का पता लगाकर उसकी रिपोर्ट के आधार पर माता-पिता को सलाह दी जाएगी। माइनर स्टेज के लड़के की शादी ऐसी लड़की से करें, जिसे बीमारी न हो। शादी से पहले ब्लड की जांच कराएं, ताकि बच्चों को बीमारी न हो सके।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट व स्टेम सेल थेरेपी है इलाज

ऐसे मरीजों का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट एवं स्टेम सेल थेरेपी इलाज है। दोनों तरह के इलाज काफी महंगे हैं। इसमें आठ लाख से लेकर 20 लाख रुपये तक का खर्च आता है।

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