Water Conservation: यहां महादेव की आराधना के जल से खिलते हैं कमल, खेरेश्वर मंदिर का गंधर्व तालाब है साक्षी

Save Water Preserve Nature कानपुर शहर से आगे शिवराजपुर में खेरेश्वर मंदिर के मुख्य महंत कमलेश गिरि ने बताया कि शिवलिंग पर चढऩे वाला पवित्र जल नालियों से होकर खुले में बहकर बर्बाद होता था। वर्ष 2012 में तालाब का जीर्णोद्धार करा पवित्र जल सहेजने की शुरुआत हुई।

By Shaswat GuptaEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 08:39 AM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 05:27 PM (IST)
Water Conservation: यहां महादेव की आराधना के जल से खिलते हैं कमल, खेरेश्वर मंदिर का गंधर्व तालाब है साक्षी
कानपुर शहर से आगे शिवराजपुर में खेरेश्वर मंदिर का शिखर।

कानपुर, [नरेश पांडेय]। Save Water Preserve Nature मानव जीवन के लिए जल और प्रकृति दोनों ही अमूल्य हैं। इन्हें सहेजने के लिए हर किसी को आगे आना ही चाहिए। आइए आज आपको ले चलते हैं शिवराजपुर स्थित पौराणिक खेरेश्वर मंदिर, जहां भक्तों की आस्था और आराधना के साथ शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले जल को गंधर्व तालाब सहेज रहा है। गर्मी के दिनों में कुछ हिस्से में जल और कीचड़ में हरी पत्तियों के बीच खिलने वाले श्वेत कमल व आसपास की हरियाली से प्रकृति अनुपम सौंदर्य की चादर ओढ़े दिखती है।

कानपुर शहर से करीब 20 किमी. दूर शिवराजपुर के गंगा तटवर्ती पौराणिक खेरेश्वर मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है। मान्यता है कि यह शिवलिंग अश्वत्थामा ने स्थापित किया था। यहां पर प्रतिदिन सैकड़ों शिव भक्त जल चढ़ाते हैं। पहले भक्तों की ओर से चढ़ाया गया सैकड़ों लीटर पानी और दूध खुले में बहता था। मंदिर के सेवादारों की सोच बदली तो अब वही बर्बाद होने वाला जल व दूध प्राकृतिक सौंदर्य बढ़ाने में मददगार बन गया है। तालाब में जल संचयन से आसपास जल स्तर बढ़ा है।

वर्षा 2012 से हुई शुरुआत: मंदिर के मुख्य महंत कमलेश गिरि ने बताया कि शिवलिंग पर चढऩे वाला पवित्र जल नालियों से होकर खुले में बहकर बर्बाद होता था। वर्ष 2012 में मंदिर परिसर के बाहर तालाब का जीर्णोद्धार करा पवित्र जल सहेजने की शुरुआत हुई। बाद में इसका नाम गंधर्व तालाब रख कर आसपास पौधारोपण किया गया।

आसपास के मंदिरों में भी जलसंरक्षण पर फोकस: पुजारी वीरेंद्र पुरी ने बताया कि मंदिर सें भूमिगत नाली बनाकर उसे तालाब तक पहुंचाया गया है। श्रावण मास में करीब 10 हजार लीटर पूजन का जल नाली के माध्यम से तालाब में पहुंचता है। अब सुबह होते ही गंधर्व तालाब में खिलने वाले श्वेत कमल देखकर सुख की अनुभूति होती है। मंदिर आने वाले श्रद्धालु प्राकृतिक सौंदर्य के साथ श्वेत कमल जरूर देखते हैं। इनका इस्तेमाल पूजन में भी करते हैं। खेरेश्वर मंदिर के सेवाकर्ताओं की यह पहल जल संरक्षण के साथ प्रकृति के सौंदर्य को बढ़ा रही है। उनकी पहल से आसपास मंदिरों के संरक्षक भी प्रेरणा लेकर जल बचाने की मुहिम में जुटे हैं।

इनका ये है कहना

मंदिर के पास वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए एक और तालाब बनाने की तैयारी है। सरकार पौराणिक मंदिर के आसपास और गंधर्व तालाब में काम कराए। इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। तालाब की पक्की सीढ़ियां जर्जर हैं। जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो वह खुद बनवाएंगे। - कमलेश गिरि, मंदिर के मुख्य संरक्षक।

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