Covid News: सिर से दोबारा उठा ममता का साया, कोरोना ने एक जिंदगी लेकर बेसहारा की पांच जिंदगी
कानपुर के किदवई नगर में रहने वाली महिला की मौत से पांच मासूमों सिर से ममता का साया उठ गया है। ननद की मौत के बाद उसके तीनों बच्चों को यशोदा बनकर मामी पाल रही थीं। कोरोना संक्रमित होने के सात दिन में मौत हो गई।
कानपुर, जेएनएन। भगवान श्रीकृष्ण को नियति ने माता देवकी के पास से मां यशोदा के पास पहुंचाया था। उन्हें खूब प्यार-दुलार भी मिला था। वो तो अवतार थे, रचनाकार थे, इसलिए सबकुछ उनका ही रचा हुआ था। हालांकि, कुछ ऐसा ही मार्मिक और पीड़ादायक वाकया यहां भी सामने आया है। मैनपुरी के तीन बच्चे 'देवकी' से जुदा होकर किदवईनगर में 'यशोदा' के पास मां का प्यार पा रहे थे, तभी कोरोना संक्रमण कहर बनकर टूटा। कोरोना ने एक जिंदगी छीनकर पांच बच्चों को बेसहारा कर दिया है।
मां की मौत के बाद मामी के पास थे तीन बच्चे
किदवईनगर निवासी अंजलि सक्सेना की शादी 10 साल पहले मैनपुरी जिले के सदर कोतवाली अंतर्गत भावर चौराहा में हुई थी। आपसी विवाद के बाद जून 2020 में उनकी जहरीला पदार्थ खाने से मौत हो गई थी। आरोपित ससुराल वाले हत्या के मुकदमे में जेल चले गए तो उनके तीनों बच्चों 10 वर्षीय अक्षत, सात साल की आध्या और चार साल के स्वास्तिक को मामा रोहन यहां ले आए।
पांच बच्चों को पाल रही थी पल्लवी
मामी पल्लवी ने अपने दो बच्चों 10 साल की आरोही और चार साल के विवान के साथ उन तीनों को भी गले लगाकर मां का प्यार दिया। एक साल की परवरिश में ही बच्चे उन्हें मां कहकर पुकारने लगे। 25 अप्रैल को पल्लवी की हालत बिगड़ी और आक्सीजन लेवल कम होने पर रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई। उन्हें 27 अप्रैल को काकादेव स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां सात दिन बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। अब पांचों बच्चे मां के लिए पूछते हैं तो नानी जल्दी आने की सांत्वना देकर चुप कराती हैं।
सात दिन का पैकेज तीन लाख का
पति रोहन और देवर राबिन ने बताते हैं कि दो दिन काफी प्रयास के बाद जैसे-तैसे उन्हें काकादेव के कोविड अस्पताल में भर्ती करा सके। अस्पताल ने सात दिन का पैकेज तीन लाख रुपये बताया था, वह भी दिया। इस दौरान न तो पल्लवी से मिलने दिया गया और न ही उनकी कोई खबर दी गई। सातवें दिन सीधे मौत की सूचना मिली।
समय से मिलता इलाज तो बच जाती जान
राबिन बताते हैं कि भाभी को भर्ती कराने के लिए कोविड कमांड सेंटर से लेकर प्रशासन की ओर से जारी सभी फोन नंबरों पर कॉल की थी। यहां तक कि कमिश्नर और पुलिस के कई अफसरों को भी फोन लगाए पर मदद नहीं मिली। समय से इलाज मिलता तो उनकी जान बच जाती।