बीहड़ की बेटियां लिख रहीं सफलता की इबारत, परिवार के साथ क्षेत्र का नाम कर रही रोशन
कभी अतिपिछड़ा क्षेत्र कहे जाने वाले बीहड़ की बेटियां अब सफलता की सीढिय़ां चढ़कर परिवार के साथ-साथ क्षेत्र का भी नाम रोशन कर रही हैैं। डकैतों के प्रभाव वाला क्षेत्र होने के कारण इस क्षेत्र में पूर्व में बेटियों को बेटे जैसी सुविधा नहीं मिल पाती थी।
जालौन, जेएनएन। कभी बीहड़ क्बेषेत्टेर में बेटे- बेटी में भेदभाव की परंपरा भले ही रही है लेकिन इस कुप्रथा को हर किसी को नकार देना चाहिए। बेटियां बेटों से कम नहीं हैं। इस बात को साबित किया है जिले की बीहड़ क्षेत्र की बेटियों ने जिन्होंने आर्थिक अभाव को दरकिनार कर सफलता की इबारत लिख डाली। भले की कठिन संघर्ष करना पड़ा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
दो बहनों ने कड़ा संघर्ष कर किया पिता का सपना पूरा।
जिले में ग्राम महेवा के निवासी इंद्रपाल सिंह पुलिस में थे। वर्ष 2005 में पुलिस आवास की छत से गिरकर उनकी मौत हो गई। उस समय उनकी बड़ी बेटी पूनम व छोटी दीपा नाबालिग थीं। इनकी मां शिमला देवी पति की मौत के बाद बेहद आहत थीं लेकिन उन्होंने अपने को संभाला और ठान लिया कि बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाएंगी। बड़ी बेटी ने तय किया कि वह पुलिस की नौकरी कर पिता का सपना जरूर पूरा करेगी। दोनों बहनों ने कड़ा परिश्रम किया। परिणाम यह निकला कि बड़ी बेटी पूनम की नियुक्ति वर्ष 2012 में उप निरीक्षक पद पर हो गई। जो इस समय झांसी में पुलिस के गोपनीय विभाग में हैं। छोटी बेटी दीपा चौहान की नियुक्ति वर्ष 2018 में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर हो गई। पर उसका मन इस नौकरी में नहीं लगा और उसने शिक्षक बनने के लिए परीक्षा दी। इसमें भी सफलता मिली। अक्टूबर 2020 में उसको झांसी जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में तैनाती मिल गई। जिससे उसने ग्राम विकास अधिकारी पद से त्याग पत्र दे दिया। दोनों बेटियों ने पिता का सपना पूरा कर दिखाया। दोनों बहनें अभी भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं।
आर्थिक अभाव भी न रोक सकी सफलता की राह।
ग्राम गोकुलपुरा की बेटी श्वेता के पिता सोबरन सिंह बेहद सामान्य परिवार के हैं। किसी तरह गुजर बसर करते हैं। उनकी बेटी श्वेता ने आठवीं तक की शिक्षा गुढ़ा के कस्तूरबा स्कूल से की। इसके बाद आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रयास किए। माधौगढ़ क्षेत्र में परमार्थ समाज सेवी संस्था की निश्शुल्क कोचिंग चलती है। जिसमें कोई भी मेधावी पढ़ाई कर सकता है। इसमें श्वेता पढऩे जाती थी। उसकी लगन देखकर माता-पिता ने भी पढ़ाई से नहीं रोका। किसी तरह से आगे की पढ़ाई कराई। इसका नतीजा यह निकला कि श्वेता का चयन पुलिस में हो गया। गरीब घर की बेटी ने अपने माता पिता का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। यह बेटियां महिलाओं के लिए मिशाल हैं। साथ ही समाज के उस तबके को भी संदेश देती हैं जो बेटा बेटी में भेदभाव करते हैं।