पीपुल्स कोआपरेटिव बैंक पर आरबीआइ ने लगाया छह माह का प्रतिबंध, केवल ऋण वसूली की दी अनुमति

निवेश नए ऋण पुराने ऋणों में वृद्धि समेत भुगतान पर प्रतिबंध प्रतिबंध अवधि में अपने ऊपर बैंक कोई भी देयता नहीं ले सकता।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Fri, 12 Jun 2020 10:10 AM (IST) Updated:Fri, 12 Jun 2020 04:38 PM (IST)
पीपुल्स कोआपरेटिव बैंक पर आरबीआइ ने लगाया छह माह का प्रतिबंध, केवल ऋण वसूली की दी अनुमति
पीपुल्स कोआपरेटिव बैंक पर आरबीआइ ने लगाया छह माह का प्रतिबंध, केवल ऋण वसूली की दी अनुमति

कानपुर, जेएनएन। आर्यनगर स्थित पीपुल्स कोआरपेटिव बैंक पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने छह माह के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। 10 दिसंबर 2020 तक बैंक अपने ऊपर किसी प्रकार की देयता नहीं ले सकता है। वह न निवेश करेगा न ही ऋण देगा। खातों में जमा नहीं लेगा, न ही भुगतान करेगा। इस अवधि में वह केवल कर्जदारों से ऋणों की वसूली कर अपना एनपीए दुरुस्त करेगा और वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) व सीआरआर (नगद आरक्षित अनुपात) व्यवस्थित कर मानक पर लाएगा।

खाताधारकों का दस करोड़ से अधिक है जमा

पीपुल्स कोआपरेटिव बैंक में हजारों खाताधारकों का दस करोड़ रुपये से अधिक जमा है। यह रकम अपनों को मनमाने तरीके से ऋण के रूप में दे दी गई। यहां तक कि सीआरआर की रकम भी ऋण के रूप में बांट दी गई। ऋण की वसूली न हो पाने से बैंक ने 12 मई से ग्राहकों को पैसा दे पाने में असमर्थता जताते हुए आरबीआइ को पत्र भेज दिया था। जब सहकारिता विभाग ने जांच कराई तो बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बडिय़ां सामने आईं। माना जा रहा था कि आरबीआइ बैंक को बंद करने जैसा निर्णय ले सकता है।

दस जून को आरबीआइ ने बैंककारी विनियम अधिनियम की धारा 35-ए के तहत पीपुल्स कोआपरेटिव बैंक पर छह माह के निर्देश जारी कर दिए। रिजर्व बैंक के कार्यपालक निदेशक एसी मुर्मु का इस संबंध में पत्र बैंक कार्यालय पर चस्पा कर दिया गया है। इस दौरान बैंक किसी तरह का जमा या भुगतान नहीं करेगा, लेकिन वसूली करके अपनी वित्तीय स्थिति को सुधार सकेगा। कर्मचारियों के वेतन, भवन का किराया, बिजली बिल चुका सकेगा। आरबीआइ मे यह भी स्पष्ट किया है कि इसे बैंक का लाइसेंस निरस्तीकरण न माना जाए। स्थितियों के अनुसार आगे कोई भी निर्णय ले सकता है।

ग्राहकों का सवाल, वह कैसे करें काम

पीपुल्स बैंक के ग्राहक अपना भुगतान न मिलने से नाराज हैं। उन्होंने अपनी खून पसीने की कमाई बैंक में जमा की थी। कोरोना संकटकाल में भी उनका पैसा नहीं निकल पा रहा है। किसी के बच्चों की फीस अटकी है तो किसी का इलाज बाधित है। बावजूद इसके आरबीआइ या सहकारिता विभाग ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। बैंक के ग्राहक हर्ष तिवारी का कहना है कि उनके समेत अनेक लोगों का वेतन यहां फंसा है। उसे दिलाने के लिए आरबीआइ को सोचना चाहिए था। गड़बड़ी में शामिल बैंक कर्मचारियों, अधिकारियों को तो वेतन मिलता रहेगा लेकिन जिनकी मेहनत की कमाई थी, वह पैसों के लिए दर-दर भटक रहे हैं। यह कैसा न्याय है।  

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