PM Modi Man Ki Baat: पीएम मोदी ने मन की बात में लिया बांदा के गांव का नाम, जानिए; इसकी खास वजह

PM Modi Man Ki Baat बुंदेलखंड का जल संकट किसी से छिपा नही है लेकिन बबेरू क्षेत्र में आने वाले अधांव के ग्रामीणों ने इस समस्या को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। करीब छह साल पहले जल व पर्यावरण संरक्षण की एक छोटी शुरुआत की।

By Shaswat GuptaEdited By: Publish:Sun, 27 Jun 2021 06:23 PM (IST) Updated:Sun, 27 Jun 2021 06:23 PM (IST)
PM Modi Man Ki Baat: पीएम मोदी ने मन की बात में लिया बांदा के गांव का नाम, जानिए; इसकी खास वजह
बांदा के अंधाव गांव में हवन करते ग्रामीण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (इनसेट)।

बांदा, [जागरण स्पेशल]। PM Modi Man Ki Baat सूखे बुंदेलखंड में खुद को पानीदार बनाकर अधांव के ग्रामीणों ने जो मिसाल कायम की आज उसकी चर्चा प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में की है। गांव का पानी गांव में व खेत का पानी खेत में रोकने के फार्मूले को नजीर मानकर इसे गांव वालों ने खुद के लिए मील का पत्थर बनाने का काम किया। प्रधानमंत्री की इस सराहना से गांव के लोग बेहद गदगद हैं। इनका कहना है कि इससे उनका मनोबल बढ़ा है। साथ ही जल व पर्यावरण संरक्षण के मिशन में सामाजिक सहयोग व समर्थन और बढ़ेगा। 

जल का न हो अपव्यय यही संकल्प: बुंदेलखंड का जल संकट किसी से छिपा नही है, लेकिन बबेरू क्षेत्र में आने वाले अधांव के ग्रामीणों ने इस समस्या को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। करीब छह साल पहले जल व पर्यावरण संरक्षण की एक छोटी शुरुआत की। मिशन को आगे बढ़ाने के लिए सबको अलग-अलग जिम्मेदारियां बांटी गईं लेकिन निशाना एक ही था कि गांव का पानी बर्बाद न हो खेतों का पानी खेत में ही रहे। तभी खुशहाली आएगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ग्रामीणों ने गांठ बांध ली। 

लघु एवं उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव ने दी दिशा: इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज में शिक्षा ग्रहण कर रहे गांव के युवा छात्र रामबाबू तिवारी की अगुवाई में मिशन को आगे बढ़ाया गया। दिसंबर 2015 में प्रदेश सरकार के तत्कालीन लघु एवं उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव सूर्यप्रताप सिंह गांव पहुंचे और पानी चौपाल में जल संरक्षण के महत्व को समझाया। यहां से एक दिशा तय हो गई। एक साल बाद जिले के तत्कालीन सीडीओ रामकुमार ग्रामीणों के बीच पहुंचे। बीच-बीच में अधिकारियों का गांव पहुंचना बना रहा। जो ग्रामीणों के उत्साह बढ़ाने के लिए काफी था। 

इस तरह ग्रामीणों को मिली सफलता: वर्ष 2018 में कार्तिक पूर्णिमा पर गांव वालों ने मिलकर घाट पर तालाब महोत्सव आयोजित किया। इसमें पानी व पर्यावरण पर काम करने वाले लोगों को सम्मानित कर उनका हौसला बढ़ाया। अब बात आयी कि गांव का पानी कैसे रोका जाए इसके लिए एक साल बाद वर्ष 2019 में खेतों में मेड़बंदी अभियान शुरू हुआ। करीब डेढ़ से दो साल में गांव वालों ने खुद के प्रयासों से तीन सौ बीघे खेत पर ऊंची-ऊंची मेड़ें खड़ी कर दी हैं। इन्हीं मेड़ों से खेत का पानी खेत में ही रुकने लगा। गांव वालों को उससे दोहरे फायदे हो रहे हैं। एक तो बारिश के पानी की बर्बादी नहीं हो रही। खेतों में पानी के भराव से सिंचाई संकट कम हुआ। वहीं भूजल स्तर को बढ़ाने में भी ग्रामीणों को सफलता मिली है। अब इन मेड़ों पर पेड़ तैयार करने की बारी है। रविवार को मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने ग्रामीणों की इस मुहिम की चर्चा कर सराहना की है। पीएम की सराहना से पानीदार अधांव का डंका बजा तो गांव के लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। ग्रामीणों का कहना है कि इससे उनका मनोबल बढ़ गया है। साथ ही जल व पर्यावरण मिशन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी और बढ़ गई है। 

पानी संकट से ही मिली पानी बचाने की सीख: कभी-कभी समस्या में ही समाधान छिपा होता है। बस जरूरत होती है उसे परखने की। अधांव के शोध छात्र रामबाबू तिवारी, करीब एक दशक पहले वर्ष 2011 में मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के तरौनी गांव एक परिचित के अंतिम संस्कार में शामिल होने गए थे। कार्यक्रम में शामिल होने के बाद गांवों में तालाबों में स्नान करने की परंपरा है। उस समय गांव के तालाब सूखे पड़े थे लिहाजा तीन किमी. दूर स्नान के लिए जाना पड़ा। रामबाबू बताते हैं कि उस दिन पेयजल संकट ने ही उन्हें पानी बचाने की सीख दी। लौटकर जब इलाहाबाद (अब प्रयागराज) पहुंचे तो वहां छात्रावास में साथियों के साथ पहली पंचायत चौपाल आयोजित की। फिर एक साल बाद 2012 में गांव आकर जल संरक्षण की मुहिम चलायी। जिसकी चर्चा आज देश के प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में की है। 

इनकी भी सुनिए: मन की बात कार्यक्रम में अधांव के जल व पर्यावरण संरक्षण का जिक्र प्रधानमंत्री जी ने किया है। इन्हें भरोसा भी नहीं था कि ग्रामीणों का सामूहिक प्रयास उन तक पहुंचेगा। लेकिन प्रधानमंत्री जी से सराहना सुनकर बेहद खुशी हुई है। अब इस मिशन को और भी जिम्मेदारी से आगे ले जाएंगे। - रामबाबू तिवारी, अधांव

मेड़ों पर रोपेंगे पौधे: खेतों में जल संरक्षण के लिए ग्रामीणों ने खुद के प्रयासों से मेड़ बनाई है। पानी बचाने के साथ ही गांव को हरियाली से खुशहाल बनाना है। इसके लिए मेड़ों पर पौधरोपित करेंगे। लेकिन पौधरोपण में सबसे महत्वपूर्ण यही रहेगा कि पौध उतने ही लगाए जाएंगे जितने की गांव वाले रखवाली कर लें। कोरोना काल में आक्सीजन का महत्व लोग जान चुके हैं और यह पेड़-पौधों से संभव है। इसलिए गांव को हरा-भरा बनाना मुख्य लक्ष्य है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। गांव के किनारे भोला उपवन 2018 में तैयार किया गया था। जब भी किसी के घर बेटी पैदा होती है तो उसके नाम पर गांव के लोग एक पौधा रोपित करते हैं। 

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