कानपुर के स्वास्थ्य विभाग ने पाई कामयाबी, अब संक्रमण का पता Rapid Antigen Test से भी चलेगा, RTPCR की जरूरत नहीं
इसमें सामने आया है कि जब कोरोना वायरस के संक्रमण का कम्यूनिटी स्प्रे हो चुका है। ऐसे में बिना समय गंवाए रैपिड एंटीजन जांच ही कराई जाए क्योंकि इसकी रिपोर्ट तुरंत आ जाती है। इसकी पॉजिटिव जांच की प्रमाणिकता 99 फीसद है।
कानपुर, जेएनएन। कोरोना के संक्रमण का पता लगाने में रैपिड एंटीजन टेस्ट कारगर है। इसके बाद आरटीपीसीआरजांच की जरूरत नहीं है। खासकर तब जब कोरोना का सामुदायिक प्रसार (कम्यूनिटी स्प्रेडिंग) हो गया हो और आरटीपीसीआर जांच में 40-50 फीसद पॉजिटिव रिपोर्ट आने लगे। ऐसे में समय बर्बाद किए बिना रैपिड एंटीजन टेस्ट कराना ही बेहतर होता है। यह राय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स दिल्ली) के निदेशक समेत देशभर के नामचीन संस्थानों के माइक्रोबायोलॉजिस्टों की है, जो कोविड-19 की जांच एवं उसकी समीक्षा लगातार वेबिनार के जरिए कर रहे हैं। साथ ही केंद्र सरकार को गाइडलाइन बनाने में सुझाव भी दे रहे हैं, इसमें जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विकास मिश्रा भी हैं।
डॉ. विकास मिश्रा के मुताबिक वेबिनार के जरिए देशभर विशेषज्ञ लगातार कोविड की जांचों एवं उसके रिजल्ट पर मंथन कर रहे हैं। इसमें सामने आया है कि जब कोरोना वायरस के संक्रमण का कम्यूनिटी स्प्रे हो चुका है। ऐसे में बिना समय गंवाए रैपिड एंटीजन जांच ही कराई जाए, क्योंकि इसकी रिपोर्ट तुरंत आ जाती है। इसकी पॉजिटिव जांच की प्रमाणिकता 99 फीसद है। आरटीपीसीआर जांच की रिपोर्ट सैंपल लेने के 24 से 36 घंटे में आती है। तब तक पीडि़त व्यक्ति कइयों को संक्रमित कर चुका होता है।
निगेटिव रिपोर्ट पर दूसरी जांच जरूरी : डॉ. मिश्रा का कहना है कि अगर एंटीजन टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आती है। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों को पीडि़त का क्लीनिक परीक्षण अच्छी तरह से करना चाहिए। उसमें अगर कोरोना से संबंधित लक्षण हैं तो उसकी आरटीपीसीआर जांच कराएं। अगर सांस लेने में दिक्कत है तो ऑक्सीजन लेवल चेक करें। ऑक्सीजन का लेवल कम होने पर रेडियोलॉजिकल परीक्षण भी कराएं। इसमें पहले एक्सरे जांच और उसके बाद जरूरी होने पर ही सीटी थोरेक्स कराएं।
सटीक है आरटीपीसीआर जांच, अफवाह पर न जाएं : डॉ. विकास मिश्रा के मुताबिक कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने में आरटीपीसीआर जांच सटीक है। इसको लेकर इंटरनेट मीडिया पर तमाम तरह की अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि वायरस का नया वैरिएंट चकमा देने में कामयाब है। प्रमुख संस्थानों के माइक्रोबायोलॉजिस्टों की राय है कि यह पूरी तरह भ्रामक है। आरटीपीसीआर जांच को लेकर दुष्प्रचार किया जा रहा है। आरटीपीसीआर जांच में वायरस के स्पाइक प्रोटीन का जीन लेने के साथ वायरस के अंदर के मल्टीपल जीन लिए जाते हैं। अभी तक वायरस में जो भी बदलाव हुए हैं वह स्पाइप प्रोटीन में हुए हैं, इसलिए चूक का सवाल ही नहीं होता है। देश-विदेश में अब तक हुए अध्ययन में कोरोना वायरस में 1800 म्यूटेन पकड़े गए हैं, जो आरटीपीसीआर जांच को चकमा नहीं दे सके हैं।