केंद्रीय कार्यशाला को लालीपॉप, कमीशनखोरों की चांदी

आरटीआइ से खुलासा, कार्यशाला में कुछ बसें बनवाते, बाकी का निर्माण प्राइवेट से होता है। कार्यशाला व निजी कंपनी के बस निर्माण में 2.77 लाख का अंतर है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 21 Apr 2018 02:12 PM (IST) Updated:Sat, 21 Apr 2018 03:00 PM (IST)
केंद्रीय कार्यशाला को लालीपॉप, कमीशनखोरों की चांदी
केंद्रीय कार्यशाला को लालीपॉप, कमीशनखोरों की चांदी

जागरण संवाददाता, कानपुर : उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के पास बसों के निर्माण के लिए दो कार्यशाला हैं और दोनों कानपुर में ही हैं लेकिन परिवहन अधिकारी कमीशनबाजी के चक्कर में तकनीकी पेंच फंसाकर अधिकतर बसों का निर्माण प्राइवेट कंपनी से करा रहे हैं। कार्यशाला और प्राइवेट कंपनी के बस निर्माण में प्रति बस 2 लाख 77 हजार रुपये का फर्क आ रहा है।

जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत प्रधान प्रबंधक केंद्रीय कार्यशाला रावतपुर से कुछ प्रश्नों का उत्तर मांगा गया तो प्रधान प्रबंधक रवीन्द्र कुमार ने 2 अप्रैल 2018 को आरटीआइ का जवाब दिया। एक प्रश्न के उत्तर में प्रधान प्रबंधक ने कहा कि वर्ष 2015 में 183 चेसिस मिलीं, जिन पर बस निर्मित हुईं। इसी प्रकार वर्ष 2016-2017 में 886 चेसिस मिलीं, जिनमें 398 बसों का निर्माण कार्यशाला में हुआ जबकि 488 बसों का निर्माण बाहर से कराया गया।

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13 करोड़ 51 लाख की चपत

परिवहन की कार्यशाला में एक बस के निर्माण पर करीब 4 लाख 64 हजार रुपये खर्च आता है लेकिन इस खर्च में बिजली, टेस्टिंग, कर्मियों का वेतन व अन्य खर्च जोड़कर उसकी लागत 7.41 लाख पहुंचा दी जाती है क्योंकि प्राइवेट कंपनी में बस 7.41 लाख रुपये में ही बनकर तैयार होती है। ऐसे में निजी कंपनी की तुलना में प्रति बस 2.77 लाख का फर्क है, यानी 488 बसों पर 13.51 करोड़ रुपये का खेल हुआ।

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समय निर्धारित कर होता खेल

परिवहन अधिकारी बसों के निर्माण की एक समयसीमा निर्धारित कर देते हैं। वे जानते हैं कि दिए गए समय में इतनी बसों का निर्माण मुमकिन नहीं है और फिर इसी को आधार बनाकर प्राइवेट कंपनी को बसें बनाने के लिए चेसिस दे देते हैं।

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सिर्फ बाडी बना रहे

केंद्रीय कार्यशाला और डॉ.राम मनोहर लोहिया कार्यशाला में कलपुर्जे बनाने वाली सारी मशीनें या तो बिक गई हैं या बेकार हो गई। ऐसे में कार्यशाला सिर्फ बाडी का निर्माण कर रहे हैं। आरटीआइ से ये भी पता चला है कि सारे कलपुर्जे कार्यशाला के बाहर से खरीदे जाते हैं।

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हर माह सवा करोड़ मुफ्त वेतन

दोनों कार्यशाला के पास पिछले पांच माह से कोई काम नहीं है, केंद्रीय कार्यशाला में 350 व डॉ. राम मनोहर लोहिया कार्यशाला में 250 कर्मचारी हैं पर दोनों कार्यशाला के पास कोई काम नहीं है। ऐसे में हर माह सवा करोड़ का मुफ्त वेतन दिया जा रहा है।

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वर्ष 2017 में 1650 बसों का निर्माण होना था, यूरो के मानक 31 मार्च से लागू होने थे और बसों के निर्माण की समय सीमा 20 मार्च तय थी। कार्यशाला में प्रति माह 150 बसों को बनाने की क्षमता है। ऐसे में इतनी बसें कैसे बन सकती थीं। लिहाजा प्राइवेट से इनका निर्माण मजबूरी थी, वरना बसें यूरो मानक में फंस जाती और उनका आरटीओ में पंजीयन नहीं होता। वैसे एसी, सीएनजी चालित बसों का निर्माण प्राइवेट में ही होता है।

रवीन्द्र सिंह, प्रधान प्रबंधक केंद्रीय कार्यशाला

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