रोक है पर टोक नहीं..

प्रदेश सरकार ने गत 15 जुलाई को 50 माइक्रॉन और उससे नीचे की पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाया था।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 22 Sep 2018 01:25 AM (IST) Updated:Sat, 22 Sep 2018 10:16 AM (IST)
रोक है पर टोक नहीं..
रोक है पर टोक नहीं..

जागरण संवाददाता, कानपुर : प्रदेश सरकार ने गत 15 जुलाई को 50 माइक्रॉन और उससे नीचे की पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाया था। उस वक्त जिम्मेदारों ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर पॉलीथिन का प्रयोग करने वालों के चालान किए थे और जुर्माना भी वसूला था। प्रतिबंधित डिस्पोजल क्रॉकरी भी बाजार से गायब हो गई थी। समय के साथ इसमें ढील देते ही प्रतिबंध बेअसर दिखने लगा।

प्रदेश की पिछली सरकार से लेकर अब तक पॉलीथिन पर प्रतिबंध के तमाम बार प्रयास हुए लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल सकी। इस बार योगी सरकार ने जब इस रोक को सख्ती से लागू करने के आदेश दिए तो बाजार से मानक विहीन पॉलीथिन गायब हो गई थी। टीमों ने लाखों रुपये जुर्माना वसूला था। जिम्मेदारों की सक्रियता देखकर ये लग रहा था कि इस बार सफलता मिल जाएगी। हालांकि कुछ सप्ताह बाद ही अधिकारी ढीले पढ़ गए और दुकानदार मानक विहीन पॉलीथिन का फिर से प्रयोग करने लगे। यही हाल डिस्पोजल क्रॉकरी का हुआ। कारोबारी भी धीरे से इसमें साथ देने में जुटे है। दबी जुबान से कहते हैं कि जो स्टाक गोदाम में रखा है उसे तो निकालना ही पड़ेगा।

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पॉलीथिन-डिस्पोजल उत्पादकों पर दोहरी मार

- उत्पादन गिर रहा फिर भी प्रिंटिंग मशीन के लिए खर्च करनी पड़ रहे करोड़ों

जागरण संवाददाता, कानपुर : 50 माइक्रॉन से कम पॉलीथिन और डिस्पोजल क्रॉकरी पर लगे प्रतिबंध का असर सिर्फ फैक्ट्रियों पर दिख रहा है। पॉलीथिन का कारोबार महज 15 फीसद बचा है तो डिस्पोजल की फैक्ट्रियों पर ताले लटक रहे हैं। दोहरी मार इसलिए भी पड़ रही है क्योंकि उत्पादन लगातार गिरने के बावजूद पॉलीथिन पर नंबर छापने के लिए करोड़ों की मशीन लगानी पड़ रही है।

शहर में तकरीबन दो दर्जन डिस्पोजल क्रॉकरी की फैक्ट्रियां हैं। विकल्प के अभाव में ये पूरी तरह बंद हो चुकी हैं। मशीनों पर चढ़े रोलों पर धूल जमी है। वहीं पॉलीथिन कैरीबैग वालों को 50 माइक्रान से ऊपर की पॉलीथिन बनाने का विकल्प मिला है लेकिन ऑर्डर उस लिहाज से नहीं मिल रहा। इसके बावजूद निर्माता कंपनी और नंबर छापने के आदेश के बाद कारोबारियों को करोड़ों रुपये की मशीन भी लगानी पड़ रही है। खर्चा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि प्रिंट यूनिट को हर पॉलीथिन उत्पादक मशीन के साथ लगाना होगा, तभी ये ठीक से काम कर पाएगी।

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अटका करोड़ों का भुगतान

डिस्पोजल क्राकरी का उत्पादन व कारोबार एक माह से पहले बंद हो चुका है। इसकी वजह से फैक्ट्रियों और दुकानों में करोड़ों का माल डंप है। जिन दुकानदारों के पास माल फंसा है, वे भुगतान नहीं कर रहे। इसलिए फैक्ट्री मालिक भी कच्चा माल देने वाले को भुगतान नहीं कर पा रहे।

-------------- प्रतिबंध से पहले

- 100 इकाइयां है शहर में पॉलीथिन कैरीबैग बनाने की।

- 350 इकाइयां प्लास्टिक उद्योग से जुड़ीं हैं शहर में

- 50 टन रोज पॉलीथिन की आवक दिल्ली, गुजरात से।

- 70 टन रोज पॉलीथिन का उत्पादन कानपुर नगर में। प्रतिबंध के बाद

- 15 जुलाई से बंद हुई 50 माइक्रान से कम की पालीथिन।

- 15 अगस्त से लगा था डिस्पोजल क्रॉकरी पर प्रतिबंध

- 02 दर्जन से ज्यादा प्लांट बंद पड़े डिस्पोजल क्रॉकरी के

- 01 करोड़ डिस्पोजल गिलास, कटोरी, प्लेट का रोज उत्पादन था।

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