हवा में खोजे जाएंगे प्रदूषण के नैनो पार्टिकल, शहर में छह स्थानों पर लगेंगे एयर सैंपलर
आइआइटी कानपुर के अर्थ साइंस डिपार्टमेंट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने संयुक्त रूप से की पहल, प्रदेश में पहली बार होगी ये जांच।
कानपुर (जागरण स्पेशल)। वायु प्रदूषण को लेकर देशभर में बदनामी झेल चुके शहर में अब नैनो पार्टिकल्स (पीएम 1.0) की खोज की जाएगी। इसके लिए शहर में छह स्थानों पर एयर सैंपलर लगेंगे। अभी तक पीएम 2.5 से ही इनका अनुमान लगाया जाता था। यह नैनो पार्टिकल्स स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। यह जांच प्रदेश में पहली बार होगी।
ये पहल आइआइटी कानपुर के अर्थ साइंस डिपार्टमेंट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने संयुक्त रूप से की है। दोनों संस्थान अगले दो वर्ष तक जांच कर इसकी रिपोर्ट बनाएंगे। शहर में अब तक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और 10) के घनत्व की ही जांच होती थी। इसमें कई हानिकारक नैनो पार्टिकल्स मिल रहे थे लेकिन उनकी सही स्थिति क्या है इसका सिर्फ अनुमान लगाया जा पा रहा था। आइआइटी कानपुर के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि आइआइटी और सीपीसीबी की ओर से पीएम 1 की जांच की जाएगी। यह डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सहयोग से होगा। कई उपकरण बाहर से मंगवाए जाएंगे।
70 फीसद पीएम-1 का अनुमान
आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर की मानें तो कानपुर और आसपास के क्षेत्र में पीएम-1 तकरीबन 70 फीसद है। यह वाहनों के हानिकारक धुएं, पटाखों और कोयले को जलाने की वजह से हो रही है।
लेह लद्दाख, ग्लेशियर और साउथ में जांच
अर्थ साइंस विभाग के प्रो. इंद्रशेखर सेन और उनकी टीम लेह लद्दाख और ग्लेशियर में वायु प्रदूषण और हानिकारक मैटल्स के जमाव से होने वाले दुष्प्रभावों पर शोध कर चुकी है। इसके लिए यूएसए से विशेष तरह की मशीन मंगवाई गई थी।
फेफड़े के सांस लेने वाले हिस्से को करता है खराब
मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के प्रो. सुधीर चौधरी के मुताबिक पीएम-1 या नैनो पर्टिकल्स फेफड़े की सेल्स को प्रभावित करता है। इस वजह से सांस लेने वाला मुख्य भाग खराब हो जाता है। यह श्वांस नली के माध्यम से सबसे संकरी नसों तक पहुंचता है। ऐसे में कैंसर और इंटरस्टीशियल लंग्स डिजीज (आइएलडी) होने का खतरा बढ़ जाता है।
डीजल चलित वाहनों से निकलता पीएम वन
डीजल चालित वाहनों से सबसे अधिक पीएम1 निकलता है। पेट्रोल से चलने वाले वाहनों, कोयला और लड़की के जलने से भी इसका उत्सर्जन होता है।
ये पहल आइआइटी कानपुर के अर्थ साइंस डिपार्टमेंट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने संयुक्त रूप से की है। दोनों संस्थान अगले दो वर्ष तक जांच कर इसकी रिपोर्ट बनाएंगे। शहर में अब तक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5 और 10) के घनत्व की ही जांच होती थी। इसमें कई हानिकारक नैनो पार्टिकल्स मिल रहे थे लेकिन उनकी सही स्थिति क्या है इसका सिर्फ अनुमान लगाया जा पा रहा था। आइआइटी कानपुर के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि आइआइटी और सीपीसीबी की ओर से पीएम 1 की जांच की जाएगी। यह डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सहयोग से होगा। कई उपकरण बाहर से मंगवाए जाएंगे।
70 फीसद पीएम-1 का अनुमान
आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर की मानें तो कानपुर और आसपास के क्षेत्र में पीएम-1 तकरीबन 70 फीसद है। यह वाहनों के हानिकारक धुएं, पटाखों और कोयले को जलाने की वजह से हो रही है।
लेह लद्दाख, ग्लेशियर और साउथ में जांच
अर्थ साइंस विभाग के प्रो. इंद्रशेखर सेन और उनकी टीम लेह लद्दाख और ग्लेशियर में वायु प्रदूषण और हानिकारक मैटल्स के जमाव से होने वाले दुष्प्रभावों पर शोध कर चुकी है। इसके लिए यूएसए से विशेष तरह की मशीन मंगवाई गई थी।
फेफड़े के सांस लेने वाले हिस्से को करता है खराब
मुरारी लाल चेस्ट हॉस्पिटल के प्रो. सुधीर चौधरी के मुताबिक पीएम-1 या नैनो पर्टिकल्स फेफड़े की सेल्स को प्रभावित करता है। इस वजह से सांस लेने वाला मुख्य भाग खराब हो जाता है। यह श्वांस नली के माध्यम से सबसे संकरी नसों तक पहुंचता है। ऐसे में कैंसर और इंटरस्टीशियल लंग्स डिजीज (आइएलडी) होने का खतरा बढ़ जाता है।
डीजल चलित वाहनों से निकलता पीएम वन
डीजल चालित वाहनों से सबसे अधिक पीएम1 निकलता है। पेट्रोल से चलने वाले वाहनों, कोयला और लड़की के जलने से भी इसका उत्सर्जन होता है।