कानपुर के बालिका गृह में क्षमता से ज्यादा हैं बालिकाएं, स्टॉफ बेहद कम
कानपुर में बालिका गृह में हकीकत सरकारी दावों के विपरीत है यहां मानक से ज्यादा बालिकाओं को रखा गया है और स्टाफ भी कम है। ऐसे में कोविड नियमों का पालन नहीं हो रहा है और बालिकाओं की देखरेख में भी लापरवाही हो रही है।
कानपुर, जेएनएन। सरकार ने दावे तो खूब किए और प्रशासनिक अफसरों ने तैयारियां भी लेकिन हकीकत यह है कि कोविड संक्रमण के दौरान माता-पिता को खोने वालों बच्चों को रखने के लिए शहर में जगह नहीं है। बालिका गृह के हालात यह हैं कि यहां क्षमता से कहीं अधिक बालिकाओं को रखा जा रहा है जबकि बालगृह बालक में जगह तो है पर स्टाफ चार गुना कम हो गया। ऐसे में दोनों ही जगहों पर बेसहारा बच्चों को रखने की व्यवस्थाएं नगण्य हैं।
कोविड संक्रमण में बेसहारा हुए बच्चों को यदि उनके रिश्तेदार नहीं अपनाते हैं तो उनके लिए सरकार ने बालगृहों में पर्याप्त जगह होने की बात कही थी। कानपुर शहर की बात करें तो यहां राजकीय बालगृह बालिका में 100 की क्षमता है जबकि 170 से ज्यादा बालिकाओं को रखा जा रहा है। 23 जिलों से पकड़ी गईं किशोरियां यहां लाई जाती हैं। ऐसे में क्षमता से कहीं अधिक किशोरियां यहां रह रही हैं। बालगृह बालिका की अधीक्षिका उर्मिला गुप्ता बताती हैं कि बालिका गृह में 11 से 18 वर्ष तक ही बालिकाओं को रख सकते हैं। इससे कम आयु की बच्चियों को शिशु ग्रह में भेजा जाता है। प्रदेश में आगरा, लखनऊ, रामपुर, मथुरा और प्रयागराज में ही शिशुगृह हैं। ऐसे में कोरोना से माता-पिता को खोने वाली बच्चियां 11 वर्ष से कम आयु की हुईं तो उन्हें जिले के बाहर भेजा जाएगा।
बालगृह बालक कल्याणपुर की बात करें तो यहां भी स्थिति किसी सूरत में अच्छी नहीं है। बालगृह बालक के निर्माण के समय इसकी क्षमता 50 थी लेकिन इसे बढ़ाकर 100 कर दिया गया। वर्तमान में यहां बालकों की संख्या 47 है लेकिन काम करने वाले कर्मचारियों के पदों की संख्या 34 थी जो वर्तमान में घटकर नौ रह गई है। क्षमता बढऩे के साथ व्यवस्थाएं भी बढ़ायी जानी चाहिए थीं लेकिन कर्मचारियों की संख्या कम होने से बालकों की देखरेख और सुरक्षा पर असर पड़ रहा है। बालगृह बालक के अधीक्षक आरके अवस्थी कहते हैं कि संसाधन जरूर कम हैं लेकिन उसमें ही बेहतर करने का प्रयास कर रहे हैं। कर्मचारियों की कम संख्या के संबंध में अधिकारियों को जानकारी दी गई है।