भर मुट्ठी रुपये लिये और भेड़-बकरी की तरह भरकर लाए, प्रवासियों ने बयां की सफर की पीड़ा
कोरोना वायरस के फैललने से प्रवासी कामगारों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। लॉकडाउन के भय ने प्रवासियों को परदेश छोडऩे पर मजबूर कर दिया है। महीनों कमाई गई रकम का अधिकतर हिस्सा किराये में दे दिया है।
कानपुर, जेएनएन। पिछली बार कोरोना के चलते लॉकडाउन हुआ था। जिसने कमर तोड़ दी थी। एक बार फिर मन कड़ा करके घर परिवार से दूर परदेश गए थे। सोचा था कि नए सिरे से काम शुरू करके जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाएंगे, लेकिन अब फिर से बीते साल जैसे हालात बनते नजर आ रहे हैं। बड़ी मुश्किलों से तो काम मिला था। अभी गाड़ी पटरी पर आयी नहीं थी कि फिर से लॉकडाउन के डर ने सताना शुरू कर दिया। आठ माह में जो कमाया वह गृहस्थी चलाने में निकल चुका है। मशक्कत के बाद एक बस मिली तो चालक ने भी मुंह फाड़ कर 15 सौ रुपये सवारी मांगी। सुरक्षित पहुंचने को अपने साथ परिवार के चार लोगों का किराया भी दिया। भर मुट्ठी रुपये लेने के बाद भी बस वाला भेड़-बकरी की तरह भरकर उन लोगों को लेकर आया।
रविवार को रामादेवी फ्लाईओवर पर पंजाब से आई यात्रियों से भरी बस में सवार भागलपुर निवासी संतोष दास ने यह पीड़ा सुनाई। उन्होंने बताया कि चालक ने मनचाहा किराया वसूला। 52 सीटर बस में बीच के रास्ते पर स्टूल डालकर और फर्श पर बैठाकर करीब 70 से अधिक सवारियों को बैठाकर लाया। फतेहपुर तक के लिए बस तय की गई थी। इसके बावजूद चालक उन लोगों को रामादेवी फ्लाईओवर पर ही उतारने में लगा था। इसे लेकर विवाद शुरू हुआ तो कुछ सवारियां तो उतरकर दूसरे साधनों से गंतव्य को रवाना हो गईं। बाकी लोगों ने हंगामा शुरू किया तो चालक को गाड़ी फतेहपुर ले जाना मजबूरी बन गई।
जाली और सीढ़ी पर लटककर किया सफर
पंजाब से आई बस में भीड़ का आलम यह था कि पैर रखने की भी जगह नहीं थी। चालक ने सवारियां भरकर दो गज की दूरी के मानक की धज्जियां उड़ा दी थीं। भीड़ के चलते कुछ यात्री दोनों दरवाजों पर, पीछे की सीढ़ी व पीछे लगी जाली पकड़कर लटके नजर आए। वहीं कुछ सवारियां बस के ऊपर लगे लगेज कैरियर में भीषण गर्मी में धूप से बचने के लिए तिरपाल ओढ़कर बैठे नजर आए।
काम बंद हुआ तो लौट आए
मूलरूप से भागलपुर निवासी सुभाष कुमार पंजाब के फरीदकोट में हलवाई का काम करते हैं। मिठाई की दुकान में काम के साथ सहालग में खाना बनाते हैं। सुभाष ने बताया कि कोरोना के कहर के चलते दुकानें भी नहीं खुल पा रहीं।
किराए के बाद सिर्फ दो हजार रुपये ही बचे
मुजफ्फरपुर बिहार निवासी रोशन पटेल पंजाब के रामपुरे स्थित एक राइस मिल में काम करते हैं। राइस मिल में काम का सीजन अगस्त माह में शुरू होता है। छह माह के सीजन में ही सिर्फ काम मिलता है। बाकी के छह माह दूसरा काम करके जिंदगी की गाड़ी आगे खींचते हैं। चार हजार रुपये बचे थे तो गांव लौटना ही सही लगा। उन्होंने बताया कि डेढ़ हजार रुपये बस वाले ने किराया ले लिया। पांच सौ रुपये खाने पीने के साथ फुटकर खर्च हो गए। अब दो हजार रुपये ही बचे हैं। इसी में गांव पहुंचना है।
अब गांव में करेंगे खेती
चकेरी के पटेल नगर निवासी राजकिशोर पत्नी विजय लक्ष्मी और आठ माह के बेटे के साथ सूरत में रहते हैं। राजकिशोर ने बताया कि वह सूरत में रहकर साडिय़ों की छपाई का काम करते हैं। पिछले लॉकडाउन के बाद आठ माह पहले वापस सूरत गए थे। इधर रात में कफ्र्यू शुरू हुआ अब साप्ताहिक लॉकडाउन लगा दिया गया। अब वहां रुकना ठीक नहीं था। पता नहीं किस दिन पूरा लॉकडाउन लग जाता। ऐसे में वहां से वापस लौटने में भी मुसीबत हो जाती। अभी तो साधन चल रहे हैं। 24 सौ रुपये पत्नी और अपना किराया देकर आए हैं। अब वापस नहीं जाएंगे। यहीं रहकर खेती बाड़ी करेंगे।