जयंती विशेष : प्रयागराज में जन्मे कानपुर को बनाई कर्मभूमि, सेवा आश्रम में अमर हैं गणेश शंकर विद्यार्थी की यादें

कानपुर के नर्वल में करीब 90 वर्ष पहले गणेश शंकर विद्यार्थी ने सेवा आश्रम की स्थापना की थी जो क्रांतिकारी और गांधीवादी विचाराधार का अागंन बना था यहां पर महात्मा गांधी पं. जवाहरलाल नेहरु चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह भी आए थे।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 11:37 AM (IST) Updated:Mon, 26 Oct 2020 01:09 PM (IST)
जयंती विशेष : प्रयागराज में जन्मे कानपुर को बनाई कर्मभूमि, सेवा आश्रम में अमर हैं गणेश शंकर विद्यार्थी की यादें
कानपुर के नर्वल में गणेश सेवा आश्रम का परिसर।

कानपुर, जेएनएन। आजादी के आंदोलन में कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। प्रयागराज में जन्मे विद्यार्थी जी की कर्मभूमि कानपुर रही है और आज भी सेवा आश्रम की फिजाओं में उनकी यादें अमर हो चुकी हैं। नर्वल में सेवा आश्रम की स्थापना कर स्वराज व स्वदेशी की अलख जगाई थी।

गणेश शंकर विद्यार्थी जी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को प्रयागराज के कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता जयनारायण मूल रूप से फतेहपुर के हथगांव निवासी थे। कानपुर अाकर विद्यार्थी जी ने यहीं अपनी कर्मभूमि बनाई। नर्वल में 90 वर्ष पहले उन्होंने गांधी जी से प्रेरित होकर सेवा आश्रम की स्थापना की और उनसे जुड़ गए थे। उन दिनों सेवा आश्रम क्रांतिकारी व गांधीवादी दोनों प्रकार की विचारधाराओं का आंगन था। सेवा आश्रम से जुड़ी यादों के माध्यम से कर्मभूमि नर्वल में आज भी गणेश शंकर विद्यार्थी जीवंत हैं।

सेवा आश्रम में एक तरफ चरखों से कच्चे सूत की कताई कर स्वदेशी की मुहिम को धार दी जाती थी, वहीं दूसरी तरफ क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित कर क्रांति की चिंगारी जलाई जाती थी। यहां की गतिविधियों से प्रभावित होकर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू भी आजादी के आंदोलन को धार देने आए थे। चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह भी प्रशिक्षण देने आते थे। वर्ष 1931 में गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत के बाद नाम गणेश सेवा आश्रम कर दिया गया। आज भी यहां नर्वल व आसपास के गांवों की दर्जनों महिलाएं चरखे से कच्चे सूत की कताई करके स्वावलंबन का तानाबाना बुन रही हैं। सूत की कताई के मेहनताने से महिला सशक्तीकरण की बयार बहा रही हैं। खादी के विभिन्न उत्पाद भी गणेश सेवा आश्रम से बेंचे जाते हैं।

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