Makar Sankranti Special: भरतकूप में है सभी तीर्थों का जल, प्रयागराज और हरिद्वार में स्नान जैसा ही पुण्य मिलता है यहां

चित्रकूट के भरतकूप मंदिर में मकर संक्रांति पर्व पर श्रद्धालुओं का पांच दिवसीय मेला लगता है। संत तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस में भरतकूप अब कहिहहिं लोगा अतिपावन तीरथ जल योगा... चौपाई में महत्व बताया गया है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Wed, 13 Jan 2021 01:42 PM (IST) Updated:Wed, 13 Jan 2021 01:42 PM (IST)
Makar Sankranti Special: भरतकूप में है सभी तीर्थों का जल, प्रयागराज और हरिद्वार में स्नान जैसा ही पुण्य मिलता है यहां
भरत जी चित्रकूट में भरतकूप पर श्रीराम को मनाने आए थे।

चित्रकूट, [हेमराज कश्यप]। हिंदू धर्म में सात तीर्थ स्थलों की विशेष मान्यता है, वह चाहे तीर्थराज प्रयागराज का संगम हो या फिर हरिद्वार में हर की पौड़ी...। मकर संक्रांति पर्व पर इन तीर्थ स्थानों पर पुण्य लाभ पाने के लिए प्रत्येक वर्ष स्नानार्थियों की भीड़ जुटती है। कुछ ऐसी ही श्रद्धालुओं की भीड़ मकर संक्रांति पर्व पर चित्रकूट के भरतकूप पर भी जुटती है। मान्यता है कि इस कूप में सभी तीर्थों का जल समाहित है, यहां स्नान करने से प्रयागराज और हरिद्वार जैसा ही पुण्य लाभ मिलता है।

जानिए- क्या है भरतकूप का महत्व

‘भरतकूप अब कहिहहिं लोगा, अतिपावन तीरथ जल योगा। प्रेम सनेम निमज्जत प्राणी, होईहहिं विमल कर्म मन वाणी।।’ रामचरित मानस के अयोध्याकांड की यह चौपाई ‘भरतकूप’ का महात्म बताने के लिए काफी है। प्रभु श्रीराम के चित्रकूट आने का प्रमाण भी यह स्थान ही देता है। ‘भरतकूप’ के जल से स्नान करने से सभी तीर्थों का पुण्य मिलता है। वैसे पुण्य लाभ पाने के लिए वर्ष भर देश-विदेश से श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं और स्नान,ध्यान और पूजन करते हैं। लेकिन, मकर संक्रांति पर्व पर पांच दिन का मेला लगता है।

भरतकूप में कैसे आया सभी तीर्थों का जल

भरतकूप मंदिर के कूप का धार्मिक महत्व तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में वर्णित किया है। प्रभु श्रीराम जब वनवास काल में चित्रकूट आए थे तो भरत जी को माता कैकेयी के कृत्यों से काफी दुख हुआ था। वह अयोध्या की जनता के साथ भइया श्रीराम को मनाने के लिए चित्रकूट आए थे। वह अपने साथ में उनका राज्याभिषेक करने के लिए समस्त तीर्थो की जल भी साथ लेकर लाए थे। भगवान श्रीराम चौदह साल वनवास के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे। अयोध्या वापस जाने और राज्याभिषेक से इन्कार करने पर भरतजी निराश हुए थे। भगवान श्रीराम का आदेश पाकर भरतजी ने राज्याभिषेक के लिए लाया सभी तीर्थों का जल और सामग्री इसी कूप में छोड़ दी थी। इसके बाद भगवान राम की खड़ाऊ लेकर लौट गए थे। तबसे इस कूप का नाम भरतकूप हो गया था। इसके जल से स्नान करने पर सभी तीर्थों का पुण्य लाभ मिलने की मान्यता है।

नए मंदिर का हो रहा निर्माण

भरतकूप मंदिर भी अत्यंत भव्य था लेकिन वह जर्जर हो गया था। मंदिर के महंत लवकुश दास अब इस मंदिर को दक्षिण वास्तुशिल्प शैली में में निर्माण करा रहे हैं। इस मंदिर में भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघन की मूर्तियां विराजमान है। सभी प्रतिमाएं धातु की है। मकर संक्रांति पर भरतकूप में हजारों की संख्या में लोग स्नान करने आते हैं और पांच दिन का मेला लगता है। यहां झांसी-मीरजापुर हाइवे से लेकर भरतकूप मंदिर तक दोनों ओर दुकानें सजती हैं। ‘रामजी के अयोध्या नहीं लौटने पर भरत जी के सामने यह समस्या हुई कि तीर्थों के पवित्र जल का क्या करें। अति मुनि ने भरत को सलाह दी कि इस पवित्र जल को कूप में रख दिया जाए। क्योंकि वह पवित्र जल वाला कूप है और तीर्थों के जल से कूप का और भी महत्त्व बढ़ जाएगा।’ -दिव्यजीवनदास, महंत, दिगंबर अखाड़ा (भरत मंदिर)

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