महाराज प्रयाग नारायण तिवारी ने कराई थी परेड रामलीला की शुरुआत, जानिए- क्या है 145 वर्षों का रोचक इतिहास

कानपुर शहर की सबसे बड़ी परेड रामलीला में हजारों की भीड़ जुटती है इसके मंचन की शुरुआत के लिए महाराज प्रयागनारायण तिवारी ने वर्ष 1877 में अंग्रेजों से अनुमति ली थी। यहां मथुरा का चतुर्वेदी परिवार 1946 से लगातार अभिनय करता आ रहा है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 07:38 AM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 07:38 AM (IST)
महाराज प्रयाग नारायण तिवारी ने कराई थी परेड रामलीला की शुरुआत, जानिए- क्या है 145 वर्षों का रोचक इतिहास
सद्भार और भाइचारे का संदेश देती हैं परेड रामलीला।

कानपुर, जेएनएन। शहर में तीन दर्जन से ज्यादा स्थानों पर रामलीला का मंचन किया जाता है लेकिन परेड रामलीला का अपना अलग ही महत्व है। यह रामलीला अपने आप में 145 वर्षों का इतिहास समेटे है। आजादी से पूर्व शुरू हुई इस रामलीला में वक्त के साथ भव्यता बढ़ती चली गई। लाइट, साउंड, भव्य सजावट और मंत्रमुग्ध कर देने वाला मंचन हर किसी को यहां आने पर मजबूर कर देता है।मंचन की शुरूआत के साथ ही दिनों दिन यहां भीड़ बढ़ती जाती है।मथुरा का चतुर्वेदी परिवार यहां दस दिनों तक रामलीला का मंचन करता है। परेड रामलीला जहां रामचरित मानस की भव्यता का भान कराती है वहीं सद्भाव और आपसी भाईचारे का संदेश देती है।

1877 में शुरु हुई थी रामलीला : परेड मैदान में रामलीला की शुरुआत 145 वर्ष पूर्व हुई थी। वर्ष 1877 में महाराज प्रयाग नारायण तिवारी, लाला शिव प्रसाद खत्री और रायबहादुर लाला विशंभरनाथ अग्रवाल ने रामलीला का मंचन शुरू करने के लिए अंग्रेजों से अनुमति मांगी थी।काफी सोच विचार के बाद अंग्रेजों ने रामलीला मंचन की अनुमति दे दी। रामलीला की शुरूआत हुई तो अंग्रेजों को भी आमंत्रित किया गया। अंग्रेजों को रामलीला का मंचन इतना अच्छा लगा कि उन्होंने परेड मैदान पर अग्रिम वर्षों के लिए रामलीला मंचन की अनुमति प्रदान कर दी। यहां अंग्रेज सैनिक परेड करते थे इसलिए इस मैदान का नाम परेड पड़ गया।श्री रामलीला सोसाइटी के प्रधानमंत्री कमल किशोर अग्रवाल बताते हैं कि उसी दौरान रायबहादुर लाला विशंभरनाथ अग्रवाल, बाबू विक्रमाजीत सिंह व अन्य सहयोगियों ने परेड रामलीला सोसाइटी गठित की। धीरे-धीरे परेड में होने वाली रामलीला ने विशिष्ट पहचान बना ली। पांच वर्ष तक कमेटी के अध्यक्ष रहने के बाद महाराज प्रयाग नारायण तिवारी ने कमेटी को सार्वजनिक रूप प्रदान किया और पदमुक्त हो गए। उनके द्वारा दिए गए रामलीला के विभिन्न मुखौटे, चांदी का सिंहासन और हनुमान का मुकुट आज भी परेड रामलीला सोसाइटी में हैं। इन्हें प्रत्येक वर्ष रामलीला के समय निकाला जाता है।महाराज प्रयाग नारायन शिवाला के प्रबंधक अभिनव तिवारी ने बताया कि आज भी उनके परिवार का एक सदस्य मुकुट पूजन करता है जिसके बाद रामलीला मंचन की शुरूआत होती है।

दस दिन नहीं लगता है परेड बाजार : रामलीला का मंचन परेड मैदान में अंग्रेजों के समय से शुरू हुआ था।रामलीला के दौरान अंग्रेज सैनिक यहां परेड बंद कर देते थे।आजादी के बाद धीरे-धीरे मैदान में अस्थायी दुकानदारों ने दुकानें लगा लीं लेकिन रामलीला मंचन से पूर्व ही सभी दुकानदार अपनी दुकानें दस दिनों से लिए स्वयं हटा लेते हैं।ऐसे में यह रामलीला का आयोजन आपसी भाईचारे और सद्भाव की मिसाल भी पेश करता है।

सलीम तैयार करते हैं पुतले : परेड रामलीला में पुतला तैयार करने की जिम्मेदारी सलीम और उनके परिवार की है।सलीम बताते हैं कि कई वर्षों से यहां के लिए पुतले तैयार कर रहे हैं।शहर की अन्य रामलीला में भी सलीम और उनके परिवार द्वारा तैयार किए गए पुतले ही जाते हैं।वह बताते हैं कि शहर की रामलीलाओं से उन्हें रोजगार प्राप्त होता है।

1946 से मंचन कर रहा मथुरा का चतुर्वेदी परिवार : परेड रामलीला का मंचन पहले शहर की ही कमेटियां करती थीं।चतुर्वेदी परिवार के प्रमुख और व्यास गद्दी पर आसीन महेश दत्त चतुर्वेदी बताते हैं कि श्री रामलीला सोसाइटी परेड ने 1946 में अपना शताब्दी वर्ष मनाया था।उसी समय से मंचन की जिम्मेदारी चतुर्वेदी परिवार निभा रहा है।चतुर्वेदी परिवार को मंचन करते हुए अब तक 45 वर्ष हो गए हैं।परिवार के 25 से 30 लोग प्रतिवर्ष दस दिनों के लिए अपना सब काम काज छोड़कर यहां आते हैं।

एम काम और एमबीए हैं कलाकार : रामलीला में लक्ष्मण की भूमिका निभाने वाले अंकुर चतुर्वेदी बताते हैं कि अभी पूरा ध्यान रामलीला के पात्र लक्ष्मण पर है।अंकुर एम. काम कर रहे हैं और भविष्य में सीए बनना चाहते हैं।परशुराम और मेघनाद की भूमिका निभाने वाले मंगलेश दत्त चतुर्वेदी एमबीए हैं और एक कंपनी में काम करते हैं।मंगलेश बताते हैं कि वह अपना लैपटाप लेकर आए हैं।रात में मंचन में देर हो जाती है इसलिए दोपहर में अपना काम निपटाते हैं।रावण और दशरथ की भूमिका निभाने वाले दिनेश चतुर्वेदी बी. काम हैं।वह कहते है कि लगातार अभ्यास से ही निपुणता आती हैं ऐसे में समय मिलते हैं सब मिलकर अपने-अपने पात्र का अभिनय करते हैं।राम सीता के पात्र का मंचन करने वाले सूरज और यश अभी पढ़ाई कर रहे हैं।सूरज कहते हैं कि भगवान राम के पात्र का मंचन कर खुद को गौरांवित महसूस करता हूं।इसी तरह रमेश दत्त और कपिल देव हर भूमिका निभाने में निपुण हैं।भय्यू चतुर्वेदी सुमित्रा और मंदोदरी जैसी भूमिकाओं में महारत रखते हैं।सबसे बड़ी जिम्मेदारी श्रृंगार प्रमुख राजकुमार चतुर्वेदी की है।मंच पर ही स्थिति के अनुरूप पात्र को कम समय में तैयार करने में राजकुमार माहिर हो चुके हैं।

देशभर में धूम मचा रही रामलीला शैली : महेशदत्त चतुर्वेदी बताते हैं कि मथुरा की रामलीला शैली पूरे देश में मशहूर है।इसका श्रेय उनके परिवार के गिर्राज दत्त महाराज को जाता है।उन्हें खपाटा चाचे गुरु के नाम से भी संबोधित किया जाता है।उन्होंने जीवन भगवान श्रीराम को समर्पित कर दिया।

रामलीला संचालन में जुटती हैं 16 समितियां : परेड रामलीला की भव्यता वक्त के साथ बढ़ती चली गई।रामलीला का भव्यता के साथ सफल संचालन के पीछे मुख्य प्रबंध समिति के साथ-साथ 15 उप समितियां भी जी तोड़ मेहनत करती हैं।श्री रामलीला सोसाइटी परेड के उपाध्यक्ष मुरलीधर बाजोरिया बताते हैं कि प्रत्येक समिति में एक संयोजक हैं और उनके साथ अन्य लोग सहायक की भूमिका में कार्य करते हैं।सबसे बड़ी झांकी प्रबंध समिति है जिसमें 21 सदस्य हैं।किसी को कोई समस्या होने पर वह उनसे बात करता है।

यह हैं समितियां : मुख्य प्रबंध समिति, प्रचार एवं प्रकाशन समिति, प्रशासनिक कार्य प्रबंध समिति, मानस प्रवचन प्रबंध समिति, लीला मंच प्रबंध समिति, शोभायात्रा प्रबंधक समिति, लीला स्थल प्रबंधक समिति, श्रृंगार व्यवस्था समिति, झांकी प्रबंध समिति, लीलामंच संचालन समिति, शोभायात्रा व्यवस्था समिति, आतिशबाजी प्रबंध समिति, पुतला प्रबंध समिति, भरत मिलाप प्रबंध समिति, भोजन व्यवस्था समिति और मेडिकल कैंप एवं सामाजिक सेवा समिति शामिल हैं।

अध्यक्ष और उनका कार्यकाल

महाराज प्रयाग नारायण तिवारी : 1877-81

लाला शिव प्रसाद खत्री : 1882-86

लाला फक्की लाल मेहरोत्रा : 1887-91

रायबहादुर लाला कन्हैयालाल अग्रवाल : 1892-96

रायबहादुर लाला विशंभरनाथ अग्रवाल : 1897-1901

चौधरी लाला हर प्रसाद अग्रवाल : 1902-41

लाल रूप चंद्र जैन : 1942

लाला मोती लाल गर्ग : 1943-60

लाला राम गोपाल गुप्त : 1961-93

महेंद्र मोहन गुप्त : 1993 से

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