ज्यादा बकैती न करो...पढि़ए ऐसे ही कनपुरिया जुमले और शब्द, जिनसे कइयों को मिली शोहरत

कानपुर की स्थानीय भाषा के रौबीले शब्दों ने बॉलीवुड तक पहुंच बनाई है। कई फिल्मों में भाषा इस्तेमाल हुई है और कॉमेडियन स्टॉर बन गए हैं।

By AbhishekEdited By: Publish:Thu, 13 Dec 2018 06:38 PM (IST) Updated:Sat, 15 Dec 2018 04:02 PM (IST)
ज्यादा बकैती न करो...पढि़ए ऐसे ही कनपुरिया जुमले और शब्द, जिनसे कइयों को मिली शोहरत
ज्यादा बकैती न करो...पढि़ए ऐसे ही कनपुरिया जुमले और शब्द, जिनसे कइयों को मिली शोहरत

कानपुर[जितेंद्र शर्मा] शहर के शब्दों में इतना आकर्षण है कि उनकी वजह से छोटे पर्दे से लेकर बॉलीवुड तक कानपुर के मिजाजी शब्दों का 'भौकाल टाइट' होता जा रहा है। कई फिल्मों में 'रंगबाज' पात्र यहां की बोली बोलते नजर आते हैं। तनु वेड्स मनु, टशन, बुलेट राजा जैसी फिल्मों के डायलॉग आपको याद ही होंगे। आज कई चर्चित कॉमेडियन भी कानपुर के शब्दों के इस्तेमाल से स्टार बन गए हैं।
बड़ी रौबीली है कानपुरिया भाषा
साहित्यकारों के बीच बहस का मुद्दा है कि कथा, कहानी, उपन्यास में नई हिंदी का इस्तेमाल होना चाहिए या नहीं। 'नई हिंदी' का मतलब उस भाषा शैली से है, जो आजकल नए कलमकार इस्तेमाल कर रहे हैं। वह देशज या कहें कि स्थानीय आम बोलचाल के शब्दों को अपने लेखन में स्थान देते हैं। साहित्य में स्थान पाने के लिए शब्दों का यह संघर्ष देश के सभी क्षेत्रों में चल रहा है, लेकिन 'कनपुरिया भाषा' उससे अलग खड़ी इतरा रही है। वजह ये है कि यहां की अलहदा और रौबीली भाषा को किसी कलम की दरकार नहीं है।
कानपुर के शब्द और उनका अर्थ
-कंटाप : कनपटी पर थप्पड़ जडऩा
-भौकाल : जलवा या प्रतिष्ठा
-चौकस : बेहतरीन
-बकैत : अधिक बोलने वाला
-खलीफा : सर्वश्रेष्ठ
-बकलोली : फिजूल की बातचीत
-लभेड़ : अप्रिय परिस्थिति
-पौव्वा : जुगाड़ या पैठ
-चिकाई : किसी से मजाक करना
-चिरांद : उलझन पैदा करना या करने वाला
आम बोलचाल के कनपुरिया जुमले
-विधिवत मारेंगे और कौनौ मुरौवत न करेंगे।
-ज्यादा बकैती न करो।
-अबहिं मार मार के हनुमान बना देबे।
-टोपा हो का, दीहिस कंटाप।
-हपक के एक कंटाप धरा तो सारी रंगबाजी धरी रहि जहिये।
-ये मठाधीसी अपने पास ही धरो।
-भाई जी, अगले का भौकाल एकदम टाइट है।
-अबहीं झपडिय़ा दीन्ह जाइहौ तब पता चली कि पंजीरी कहां बटत रहे।
-अरे सरऊ काहे पचड़े में पड़त हौ अबहिं लभेड़ हुई जइहै।
-कुछ पल्ले पड़ रहा है कि ऐसे ही औरंगजेब बने हो।
-ज्यादा बड़ी अम्मा न बनौ।
-गुरु व्यवस्था तो फुल टन्न रही।
-हर जगह चिकाई न लिया करो।
-मार कंटाप शंट कर देंगे।
निराली है वर्तनी
-पूरा होना : हुई गा
-पूरा न होना : नाई भा
-क्यों : काहे
-यहां आओ : हियां आव
-पिटाई करना : हउंक दीहिस
-काम पूरा होना : गुरु काम 35 होइगा..
-सुनो जरा : सुनो बे
-क्या हुआ : का हुआ बे
-जबरदस्त : धांसू
फिल्मों और छोटे पर्दे पर भी छाया अंदाज
कानपुर की यह भाषा भले ही विशुद्ध रूप से स्थानीय है। व्याकरण के लिहाज से यह भले ही अशुद्ध हो, लेकिन इसका जादू मायानगरी मुंबई तक पहुंच चुका है। कई फिल्मों और धारावाहिकों में यहां की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है और फिर दर्शक उन्हें दोहराते हुए भी मिल जाएंगे। बॉलीवुड के मिस्टर खिलाड़ी अक्षय कुमार, सैफ अली खान, आमिर खान और जिमी शेरगिल कनपुरिया छोरे की भूमिका अदा कर चुके हैं।
इन फिल्मों में कानपुर का टशन : जॉली एलएलबी-2, टशन, तनु वेड्स मनु-1, तनु वेड्स मनु-2, बंटी और बबली, दबंग-2, साईं वर्सेज आई, कटियाबाज, देसी कट्टे, बाबर, हंसी तो फंसी, होटल मिलन, मरुधर एक्सप्रेस, भैया जी सुपरहिट।
इन धारावाहिकों में कानपुर की झलक : कृष्णा चली लंदन, 'शास्त्री सिस्टर्स, भाबी जी घर पर हैं, लापतागंज, जीजा जी छत पर हैं, हर शाख पर उल्लू बैठा है, नीली छतरी वाले, ऑफिस-ऑफिस।
मायानगरी में छा गए कॉमेडियन 
कानपुर के कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव, राजीव निगम, राजन श्रीवास्तव, , जीतू गुप्ता, अनिरुद्ध मद्धेशिया और अन्नू अवस्थी अब किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वह सिर्फ इसीलिए कॉमेडियन बन सके क्योंकि विशुद्ध कनपुरिया भाषा पर उनकी मजबूत पकड़ और अंदाज मजाकिया है।

एक दूसरे के पर्याय हैं राजू और कॉमेडी
राजू श्रीवास्तव अब किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वे कई फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। राजू और कॉमेडी अब एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं। उनका कहना है कि हमारी मिट्टी ही ऐसी है कि इसमें अपनापन झलकता है। जब हम गुस्से में बोलते हैं तो भी भाषा नरम रहती है और सामने वाला हंस देता है। गाली भी मीठी लगती है। कानपुरिया भाषा में बेजा बनावटीपन की बजाय अपनापन है जो सभी को आकर्षित करता है।


एक ऑडियो ने बनाया स्टार
अन्नू अवस्थी बताते हैं कि 19 नवंबर 2017 की रात घर में लेटा था। बेटे के जनेऊ संस्कार को लेकर मोबाइल पर किसी से चैट कर रहा था। तभी पत्नी ने आकर कहा कि सो जाओ, तभी मजाक-मजाक में ही जनेऊ संस्कार का आमंत्रण ऑडियो बनाकर मित्र और रिश्तेदारों को भेजा। सुबह वह सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और जगह-जगह से फोन आने लगे। अब तक 200 से ज्यादा ऑडियो-वीडियो बना चुके हैं। इसी वजह से पिछले दिनों बिग बॉस के ऑडिशन के लिए भी बुलाया गया।
छोटे पर्दे पर चमक रहे जीतू
रामनारायण बाजार निवासी जीतू गुप्ता छोटे पर्दे पर कानपुर के भौकाल को टाइट कर रहे हैं। 'भाबी जी घर पर हैं', 'हर शाख पर उल्लू बैठा है' व 'जीजा जी छत पर हैं' समेत कई सीरियल में काम कर रहे जीतू कानपुर की बोली से लोगों को हंसा रहे हैं। उनका कहना है कि कानपुर की भाषा की नकल नहीं की जा सकती। जो कुछ जुबां से निकलता है वह नेचुरल होता है। यही वजह है कि हमारी भाषा पूरी दुनिया में छा रही है।
धूम मचा रहे राजीव निगम
हास्य कलाकारों में शहर के राजीव निगम का नाम भी पूरे देश में चर्चित है। राजीव टेलीविजन के साथ बड़े पर्दे पर भी धूम मचा रहे हैं। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म भैया जी सुपरहिट में वह लोगों को हंसाते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि हमारी बोली इतनी सुंदर है कि उसके सभी कायल हो जाते हैं। हम जो कुछ बोलते हैं वही कॉमेडी है। गंभीर विषय पर हो रही बातचीत के दौरान भी ऐसे शब्द निकलते हैं कि जिससे हंसी आ जाती है।
इनके डायलॉग के सभी दीवाने
हास्य कलाकारों की बात हो और राजन श्रीवास्तव का नाम न आए ऐसा नहीं हो सकता है। राजन वह नाम है जिन्होंने कानपुर की बोली को अपनी स्टाइल में लोगों के सामने पेश किया फिर वह चाहे स्टेज हो या टीवी का स्क्रीन। उनका कहना है कि हमारा करेक्टर ही शब्द जनरेट करता है। जहां लोग गुड मार्निंग और राम-राम बोलते हैं वहीं हम पूछते हैं पहले से आराम है। कुछ ऐसे शब्द हैं जो अब दूसरे शहरों में भी लोगों की जुबां पर सरलता से आ गए हैं।

chat bot
आपका साथी