कानपुर में राष्ट्रपति के निजी घर की राह में रोड़ा, केडीए की ढीली पैरवी का है खेल
इंदिरानगर व मकड़ीखेड़ा को जोडऩे वाली सड़क पर स्वामित्व होने के बाद भी निर्माण पूरा नहीं हो पा रहा है। हाईकोर्ट में दो साल से मुकदमा विचाराधीन है लेकिन कानपुर विकास प्राधिकरण की ढीली पैरवी के चलते फैसला नहीं हो रहा है।
कानपुर, जेएनएन। कानपुर विकास प्रधिकरण के अफसरों के खेल में राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के निजी घर तक जाने वाली इंदिरानगर-मकड़ीखेड़ा रोड नहीं बन पा रही। उप जिलाधिकारी की अदालत में स्वामित्व को लेकर चल रहे वाद का फैसला दो साल पहले विकास प्राधिकरण के हक में हो चुका है। 12 बीघा से ज्यादा का रकबा खतौनी में बीहड़ में दर्ज होने के साथ ही विप्रा का जमीन पर स्वामित्व भी है, लेकिन अब मामला हाईकोर्ट पहुंच चुका है। अफसरों की ढीली पैरवी के चलते दो साल बाद भी इस पर फैसला नहीं हो सका है। उधर सरकारी जमीन होने के बाद भी यहां डेढ़ सैकड़ा से ज्यादा मकान तन गए, गेस्ट हाउस भी बन गए।
केडीए की जमीन अपनी बता रहे दूसरे पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है कि केडीए ने सड़क के लिए जमीन ले ली, लेकिन बदले में भूमि नहीं दी। न ही मुआवजा दिया गया। 12 सिंतबर 2017 को हाईकोर्ट ने डीएम को आदेश दिए थे कि दो माह के अंदर प्रतिकर दें या निर्धारित करें। 72 करोड़ रुपये मुआवजा मांगा गया।
मामला सामने आने पर पूर्व उपाध्यक्ष किंजल सिंह ने 14 सितंबर 2018 को जांच शुरू कराई तो सामने आया कि सड़क तो अभी बनी ही नहीं है। अभियंता, अमीन और तहसीलदार ने गलत रिपोर्ट लगाई है। घालमेल खुलने पर उपाध्यक्ष ने कार्रवाई के लिए शासन को संस्तुति कर दी। वहीं उप जिलाधिकारी की अदालत ने 12 मार्च 2019 को बैरी अकबरपुर बांगर (दयानंद विहार व इंदिरा नगर के पास की जमीन) के गाटा संख्या 1098 की 2.6740 हेक्टेयर भूमि पर केडीए का दावा स्वीकार करते हुए तहसीलदार सदर नगर की दो जनवरी 2019 और सात मार्च 2019 को दी गई आख्या के आधार पर भूमि खाते में दर्ज नाम खारिज कर जमीन को पूर्ववत बीहड़ दर्ज करने का आदेश किया। इसके बाद दूसरा पक्ष हाईकोर्ट चला गया। दो साल हो चुके हैं, लेकिन प्राधिकरण की पैरवी धीमी होने से फैसला नहीं हो पा रहा है। विप्रा के अफसरों द्वारा पैरवी न किया जाना संदेह भी पैदा कर रहा है कि मामले को लटका कर उनके द्वारा दूसरे पक्ष की मदद की जा रही है।
बिना नक्शा हो गए निर्माण, सोता रहा प्रवर्तन दस्ता : करीब 12 बीघा जमीन पर बिना नक्शे के लगातार निर्माण होते रहे, लेकिन केडीए के प्रवर्तन दस्ते ने ध्यान नहीं दिया। यहां तकरीबन डेढ़ सौ आवास बने हैं। मामले की फिर से जांच की जाए तो कई अमीन, तहसीलदार, प्रवर्तन दस्ते के प्रभारी समेत कई अफसर नपेंगे।
-बैरी अकबरपुर बांगर में जमीन का मामला उनके सामने का नहीं है। मामला संज्ञान में आया है। संबंधित अफसरों से सोमवार को इस मामले की जानकारी लेकर पूरा बात बता पाएंगे। -एसपी सिंह, सचिव केडीए