Kargil Vijay Diwas 2020: कूच का आदेश सुनते ही जोश से भर गए थे जवान, सूबेदार मेजर ने साझा किए वो पल
Kargil Vijay Diwas News पंजाब बॉर्डर पर तैनात रहे सूबेदार मेजर कृष्ण कुमार सिंह ने बताया दुश्मन की हरकतों का हर तरह से जवाब देने को मुस्तैद थे।
कानपुर, आलोक शर्मा। सामने दुश्मन हो तो सिपाही का खून तब तक खौलता रहता है जब तक दुश्मन को उसे उसके अंजाम तक न पहुंचा दे। कुछ ऐसा ही लगता था पाकिस्तानी सैनिकों को देखकर। सूरज की पहली किरण के साथ दिमाग में एक ही बात आती थी, जैसे ही आदेश मिलेगा, दुश्मन को छठी का दूध याद दिला देंगे। लगातार 35 दिनों तक दुश्मन को सामने देखकर हर दिन दिल और दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा रहा, आखिर कब अपने शौर्य का परिचय देने का अवसर मिलेगा? कारगिल युद्ध के दौरान पंजाब बॉर्डर पर तैनात रहे सूबेदार मेजर कृष्ण कुमार सिंह ने उन लम्हों को साझा किया। बोले, कारगिल से सूचनाएं लगातार आ रही थीं। जवानों के पराक्रम के किस्से सुन शरीर में बिजली कौंध जाती थी। इसी बीच जब हमें पंजाब बॉर्डर पर कूच का आदेश मिला तो जवान जोश से भर गए।
गुरुदासपुर में तैनात 19 गार्ड बटालियन को 21 जून को कूच का आदेश मिला। सूबेदार मेजर कृष्ण कुमार सिंह जवानों के साथ पंजाब के डेरा बाबा नानक बॉर्डर की ओर निकल पड़े। दरअसल कारगिल में जब पाकिस्तान को शिकस्त पर शिकस्त मिल रही थी तो उसने डेरा बाबा नानक और रमदास ब्रिगेड हेडक्वार्टर से लगी सीमा पर सेना तैनात कर दी। पूरी तैयारी के साथ बड़ी संख्या में तैनात पाकिस्तानी सेना को जवाब देने के लिए भारत ने भी 26 पंजाब, छह डोगरा, 19 गार्ड बटालियन के साथ 42 आम्र्ड फोर्स और आर्टीलरी को तैनात किया था।
सूबेदार मेजर बताते हैं कि बॉर्डर पर तनाव हर दिन बढ़ता जा रहा था। रमदास बिग्रेड हेडक्वार्टर तीन ओर से पाकिस्तान से घिरा है। दिन के साथ ही रात में भी मुस्तैद रहना पड़ता था। बॉर्डर का 26-27 किमी का एरिया कवर करने के लिए रात भर पेट्रोङ्क्षलग करते थे। 26 जुलाई को जब सीज फायर की घोषणा हुई तब जाकर तनाव खत्म हुआ। सेना धीरे धीरे हटाई गई, जिसके चलते दो माह बाद तक यहां पूरी कमान तैनात रही।
पाक चौकियां की थीं तबाह
मई 2002 की बात है। बांग्लादेशी आतंकियों को सीमा पार कराने की फिराक में पाकिस्तानी सैनिकों ने रह रहकर गोलीबारी शुरू कर दी। सूबेदार मेजर के मुताबिक उन्हें शक था कि आतंकी सूखे नाले में छिपे हो सकते हैं। इसके बाद पेट्रोलिंग टीम तैयार हुई। गोलियों का जवाब देते हुए वहां पहुंचे तो फायरिंग तेज हो गई। इसके बाद वादिया, कुंथल और हीरानगर के तीनों सेक्टर से एक साथ जवाब दिया गया। लगातार दो घंटे के एनकांउटर में पाकिस्तान की कई चौकियां तबाह हो गईं। उनके कई सैनिक घायल हुए और कई पोस्ट छोड़कर भाग निकले। सभी आतंकियों को भी मार गिराया गया। सूबेदार मेजर बताते हैं कि पुंछ में 1986 में हुए ऑपरेशन और राजस्थान के पोखरन में दिसंबर 2001 में हुए ऑपरेशन पराक्रम में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी थी।
पिता की तरह बेटा बनेगा सैन्य अफसर
सूबेदार मेजर केके सिंह के बेटे अजय प्रताप बीटेक कर रहे हैं। वह बताते हैं कि टेक्निकल ग्रेड से सेना में अफसर बनने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। देश सेवा की प्रेरणा पिता से मिली। सैनिकों के शौर्य और पराक्रम के किस्से पिता से सुनकर वह भी देश सेवा करना चाहते हैं।