Kanpur Shaernama Column: गो-सेवा में मेवा के लिए रस्साकसी, भगवा को भाने लगे दाग!

कानपुर महानगर की राजनीतिक गतिविधियों की चर्चाओं का शहरनामा। ओहदेदार जीत गए मगर उपचुनाव में वादा न निभा सके। भगवा दल के माननीयों में विकास कार्यों का श्रेय लेने की होड़ छिपी नहीं है ताजा मसला दक्षिण का है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 12 Sep 2021 12:49 PM (IST) Updated:Sun, 12 Sep 2021 12:49 PM (IST)
Kanpur Shaernama Column: गो-सेवा में मेवा के लिए रस्साकसी, भगवा को भाने लगे दाग!
कानपुर की राजनीतिक हलचल है शहरनामा कालम।

कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। कानपुर शहर राजनीतिक गतिविधयों का गढ़ माना जाता है और यहां नित नई हलचल चर्चा में रहती है। भले ही ये चर्चाएं सुर्खियां न पाएं लेकिन हर जुबां पर जरूर रहती हैं। ऐसी राजनीतिक चर्चाओं को एक बार फिर लेकर आया है शहरनामा कालम...।

मायूसी भी बनेगी हथियार

छात्र राजनीति से सियासी सफर शुरू करके वर्षों भैया और दीदी के दल से संबद्ध मजदूर संगठन में आला पदाधिकारी रहे नेताजी एक दशक तक सरकार में खास ओहदेदार के करीबी होने के बाद भी चुनाव के टिकट को तरसते रहे। बीते विधानसभा चुनाव में भी मायूसी मिली। योगी सरकार के ओहदेदार ने लोकसभा चुनाव में सपोर्ट पर खुद की छोड़ी सीट पर टिकट दिलाने का वादा कर पार्टी से जोड़ा। ओहदेदार जीत गए, मगर उपचुनाव में वादा न निभा सके। अगले चुनाव में भी टिकट की उम्मीद न देख नेताजी ने हाथी की सवारी का मन बनाया है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा टिकट का आश्वासन भी मिल गया। अब उनको नीला परचम थामने के लिए अच्छे मुहूर्त का इंतजार है। चर्चा यह भी गर्म है, उनको भगवा दल में लाने वाले वयोवृद्ध भी अपने स्थानापन्न की राह रोकने को हाथी की सवारी कराने में मदद कर रहे हैं।

...तो गच्चा खा गए वरिष्ठ माननीय

भगवा दल के माननीयों में विकास कार्यों का श्रेय लेने की होड़ छिपी नहीं है। ताजा मसला दक्षिण की खास बाजार के दो अति व्यस्त चौराहों पर बनने वाले फ्लाईओवर का है। वरिष्ठ माननीय के बड़ी पंचायत में पहुंचने से खाली सीट से विधानभवन पहुंचने वाले माननीय ने दोनों चौराहों पर फ्लाईओवर का प्रस्ताव सरकार को भेजने और उसको स्वीकार किए जाने का दावा किया तो वरिष्ठ माननीय आगबबूला हो गए। उनकी ओर से खबरनवीसों तक से कैफियत तलब करते हुए प्रस्ताव उनकी तरफ से भेजे जाने का दावा किया गया। अब उपमुख्यमंत्री द्वारा फ्लाईओवर मंजूर करने का ऐलान करने के साथ क्षेत्रीय विधायक को उनके प्रयासों के लिए धन्यवाद दिया गया तो उसके बाद से अधिकारियों की महफिलों में तो मजे लिए ही जा रहे हैं, शहर की सियासत में रुचि रखने वाले चठियाबाज भी चाय की चुस्कियों के बीच वरिष्ठ माननीय के दावे की मौज ले रहे हैं।

भगवा को भाने लगे दाग!

राजनीति में शुचिता का दावा करने वाले संस्कारी दल को भी शायद दाग अच्छे लगने लगे हैं। उससे ऐसे तत्व भी सम्मान पा रहे, जिनसे दूरी का दावा शीर्ष नेतृत्व करता रहा है। हालांकि ऐसा है बिल्कुल भी नहीं। हकीकत यह है कि सत्ता में आने के बाद संगीन अपराधों में जेल जाने वाले भी संगठन में सम्मानित पद पा रहे। इसकी बानगी कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में है। आलम यह है कि शोषितों-वंचितों की फिक्र करने वाले प्रकोष्ठ में रहते हुए करोड़ों की ठगी करने वाले को पुन: कार्यसमिति में स्थान दे दिया जाता है। उससे पहले शहर की जिला इकाई और प्रदेश के युवा प्रकोष्ठ से तीन युवा पदाधिकारियों से तब किनारा किया जाता, जब उनका अपराध चरित्र सरेआम हो जाता है। संगठन के नेतृत्व पर सवाल तो तब भी उठे, जब कानपुर देहात में अपहरण और पनकी में रंगदारी वसूलने में जेल जाने वालों को संगठन में सम्मान मिला।

गो-सेवा में मेवा के लिए रस्साकसी

गो-सेवा के नाम पर बनी शहर की सोसाइटी में एक पखवारे से गहमागहमी थी। चुनाव जो होने वाले थे। अब चुनाव खत्म हो चुका है तो उसको खारिज कराने की रस्साकसी है। मामला एक बार फिर अदालत तक जा पहुंचा है। जो शहरी सोसाइटी से वाकिफ नहीं, वे हैरान हैं कि भला सेवा के लिए भी क्या चुनावी शह-मात और अदालत के दखल की जरूरत है। सोसाइटी के पास शहर ही नहीं, दूसरे जिलों तक में अरबों की जमीन है। जिनके पास बेशकीमती जमीन है, उस पर कब्जा बना रहने के लिए भी चुनाव में दखल देते हैं। कई-कई बीघा जमीन वाले भी कमेटी के सदस्य हैं। ज्यादातर गो सेवा नहीं, वर्चस्व के लिए कमेटी में पदाधिकारी बनना चाहते। इस द्वंद्व का मजा गोशाला के किरायेदार रहे हैं। न जमीनों का किराया दे रहे, न वापस करने को तैयार हैं। कुछ ने तो गोशाला की जमीन पर अपार्टमेंट बना लिए।

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