Kanpur Shaernama Column: चुनाव से पहले बाजरे की चर्चा, गांधी जी के सामने रोज होती बंदरबांट...
शहरनामा में कानपुर महानगर में राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की हलचल होती है। पंचायत चुनाव के बाद हाेने वाले क्षेत्र और जिला पंचायत के लिए अभी से जोर आजमाइश शुरू हो गई है। यहां रोजाना गांधी जी के सामने होता चढ़ावे का बंटवारा।
कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। कानपुर शहर की राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की हलचल लेकर आता है शहरनामा कॉलम। राजनीतिक हल्के में कुछ वाक्ये ऐसे भी होते हैं जो दबी जुबान में चर्चा का विषय तो बने रहते हैं लेकिन सुर्खियों में नहीं आ पाते हैं। ऐसे ही वाक्यों और बातों को चुटीले ढंग से हर सप्ताह शहरनामा लेकर आता है...।
शुरू हो गई बाजरे की चर्चा
पंचायत चुनाव बाद क्षेत्र और जिला पंचायत के आकार लेते वक्त जिस बाजरे का जोर रहता, उसकी चर्चा इस वक्त शहर संवारने वाले विभागों में खूब है। दरअसल एक में कार्यकारिणी तो दूसरे में अब बोर्ड के सदस्यों को चुने जाने की तैयारी हो रही है। दोनों ही चुनाव शहर की नुमाइंदगी करने वालों के बीच होना है। जोरआजमाइश शुरू हो चुकी है। तमाम दिग्गज पक्ष में पैरवी की गुंजाइश को भी टटोलने लगे हैं। सत्तापक्ष की मजबूती से ज्यादातर नुमाइंदे उसके रहना तय जरूर माना जा रहा है, पर बाजरा बंटा तो बिखरा विपक्षी भी कमाल कर सकता है। दिलचस्प यह है कि बाजरे की चर्चा सिर्फ बोर्ड को लेकर ही है। अब यह समझना तो किसी के लिए मुश्किल भी नहीं है कि बोर्ड में नुमाइंदगी की ख्वाहिश की वजह क्या है। फिलहाल तो बाजरा कितना तक रहेगा, उस पर चठियाबाजों के बीच खूब विमर्श चल रहा है।
गांधीजी के सामने बंदरबांट
जिले के हुक्मरानों की इमारत परिसर के पार्क में लगी बापू की प्रतिमा आजकल चर्चा में है। वजह यह, वहां एक महकमे के मुलाजिमों का कार्यालय बंदी से पहले रोज का आना हो रहा है। दरअसल वहां दिन भर मिले चढ़ावे का हिसाब होने के बाद उसका बटवारा होता है। दरअसल विभाग के दो मुलाजिम, एक तथाकथित अधिवक्ता ज्योतिष और कारीगर आजकल लोगों का काम कराते हैं और उसके एवज में तगड़ा चढ़ावा वसूलते। समाज में शुचिता की सीख देने वाले बापू के सामने चढ़ावे का बंटवारा तो होता ही है, लोगों के काम की डील भी होती।
चर्चा होने पर मुलाजिमों ने ज्योतिषी को उन लोगों को शांत कराने को कहा जो खेल बिगाडऩे पर उतारू थे। उन्होंने एक कारीगर को पकड़ा और ज्यादा बोलने वालों को शांत कराने को कहा तो उसने भी मु_ी गर्म करने की शर्त रख दी। अब ज्योतिषी हिस्सेदार बढऩे को लेकर परेशान हैं।
तबादले की ख्वाहिश
गरीबों का घर संसार बसाने के लिए योगी सरकार की योजना में सरकारी मुलाजिमों ने मलाई मारने का मौका नहीं छोड़ा। लॉकडाउन के चलते शादी ब्याह भले न हो पाएं हो, पर सरकारी कागजों पर गरीबों को घर बसाने के लिए खूब मदद बांटी गई। अंधेर खुलने पर जांच शुरू हुई तो इंटरनेट मीडिया पर भी कागजी मदद के खूब चर्चे हैं। महकमे के मुखिया के तौर पर तैनात रहे अफसर दंपती की फजीहत होने लगी।
परेशान दंपती बड़े की शरण में पहुंचे। त्राहिमाम कर उबारने की गुहार के साथ तबादला करा देने की अर्जी भी लगा दी। बड़े साहब तैयार भी हो गए, पर कुछ सोचने के बाद हाथ सिकोड़ते हुए सलाह दी कि वह तबादले का पत्र लिखेंगे तो वजह भी लिखनी होगी और उससे दोनों का नुकसान हो जाएगा। बात दंपती को समझ में आई। अब वे तबादले के लिए सरकार के ओहदेदारों की शरण में हैं।
खूनी दाग धोने में लगे कानून के पैरोकार
दोहरे हत्याकांड की वजह भले चुनावी रंजिश और वर्चस्व बताई जा रही हो, पर नेपथ्य में जो तस्वीर दिख रही है, वो अमन पसंद शहरियों को डराने वाली तो है ही, सामाजिक समरसता की पैरोकारी के ढोंग को भी बेनकाब करती है। सर्वजन हिताय का नारा देने वाले दल से जिला पंचायत में पहुंचने वाला दबंग, जिसनेे हिस्ट्रीशीटर साथी के साथ मिलकर तमाम गरीबों के आशियाने के सपने को लूटा हो, उससे बुद्धिजीवियों में शुमार कानून के पैरोकारों का गठजोड़ किसी भी संवेदनशील शहरी को चिंतित कर सकता है।
हैरानी इससे भी होती है कि जो अब बाबा साहब के नाम की आर्मी का कमांडर है, वही दलित की हत्या में भी आरोपित है और कानून के पैरोकार उसके हिमायती बने हैं। हिमायत में पेशे की आड़ का बहाना भले ही हो, पर कटरी की जमीनों के गोलमाल में दबंग के साथ भागीदारी कुछ और ही कहानी कह रही है।