Kanpur Shaernama Column: दावेदारों को देख बढ़ी बौखलाहट, माननीय से नाराज हुए भइया
कानपुर का शहरनामा कॉलम राजनीतिक गलियारों की चर्चा को लोगों तक पहुंचाता है। विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन बदलने के बाद से जिस सीट पर भाजपा अब तक काबिज नहीं हो सकी है वहां पर टिकट की दावेदारी सियासी रंजिश का सबब बनने लगी है।
कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। कानपुर में सियासी हलचल हमेशा तेज रहती है। इस हलचल में कुछ चर्चा आम हो जाती हैं लेकिन सुर्खियां नहीं बनती हैं। राजनीतिक गलियारों के बीच की ऐसी ही चर्चाओं को पर्दे के पीछे से सामने लाता है शहरनामा कॉलम...। इस बार चर्चा-ए-आम कुछ यूं रहा..।
माननीय से भइया नाराज
कुछ अरसा पहले जर्जर इमारत गिरने से छत गंवाने वालों के लिए आंदोलन करने वाले माननीय फिर सुर्खियों में हैं। चर्चा है कि छत गंवाने वालों में एक समाजवादी रंग में रंगे रहने वाले कार्यकर्ता द्वारा दर्द सुनाए जाने के बाद से भइया माननीय से कटे कटे से हैं। दरअसल, हादसे के बाद माननीय द्वारा पीडि़तों को न्याय दिलाने को शुरू किए गए सत्याग्रह में भइया ने वर्चुअल संबोधन में साथ निभाने का भरोसा दिया था। बताते हैं कि माननीय के अचानक शांत होने और उसकी वजह कार्यकर्ता द्वारा बताए जाने के बाद से भइया खफा हैं। हाल ही में पार्टी के एक आयोजन में मीडिया को बुलाने की बेसब्री ने नाराजगी को और बढ़ा दिया है। अब माननीय कार्यकर्ताओं को ऑल इज वेल है, दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर भरोसा दे रहे हैं कि भइया उनके अनुरोध पर जल्द ही शहर आकर सभी का फिर से हाल-चाल लेंगे।
दावेदार बढऩे से बौखलाहट
विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन बदलने के बाद से जिस सीट पर भाजपा अब तक काबिज नहीं हो सकी है, वहां पर टिकट की दावेदारी सियासी रंजिश का सबब बनने लगी है। इसकी बानगी भी हाल ही में एक विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के सम्मान समारोह में देखने को मिल गई। कार्यक्रम में मंडल के एक असरदार पदाधिकारी भी पहुंचे, उनको देखते ही पहले पार्टी की टिकट पर किस्मत आजमा चुके और इस बार भी मजबूत एक दावेदार का पारा चढ़ गया। वह लगे उनको बुरा-भला कहने। कार्यक्रम में मौजूद सीट के प्रभारी और कार्यकर्ता उनके तेवर देख हक्का-बक्का थे कि उसी दौरान उन्होंने पदाधिकारी को वहां से चले जाने का फरमान तक सुना दिया। पदाधिकारी को उनका बर्ताव नागवार गुजरा और प्रतिवाद करते हुए वहां से चले गए। बाद में उनकी नाराजगी की वजह की पड़ताल हुई तो पता चला कि पदाधिकारी उनके प्रतिद्वंदी के दावे के हिमायती हैं।
सड़क की लंबाई बनी नाक का सवाल
शहर के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होने वाली एक सड़क की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। पर ये चर्चा शहरियों के बीच नहीं, बल्कि सत्ता के पूर्व और वर्तमान ओहदेदार कद्दावरों के खेमों के साथ ही अफसरों के बीच है। शहर की जरूरत को समझते हुए अफसरों ने सरकार की मंजूरी की तमाम कवायद के साथ सड़क कहां से कहां तक की और कितनी लंबी होगी, कितने चरण में बनेगी, ये योजना बनाई। फौरी राहत देने को पहले चरण में वैकल्पिक बंदोबस्त क्या हो सकता है, ये भी तय हुआ। श्रेय लेने की होड़ में पैरवी व पेशबंदी के बाद सड़क की लंबाई पर बात फंसी। एक अफसर द्वारा तय लंबाई ही रखने पर अड़ गए तो दूसरे पांच किमी बढ़ाने पर। पूर्व ओहदेदार द्वारा लंबाई बढ़ाने के निजी निहितार्थ केंद्र को समझाने के बीच अफसरों ने लंबाई बढ़ाने की तैयारी शुरू कर दी है।
थैली बचाने को थैली की भेंट
सपा की सरकार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करके शिक्षा जगत में कद्दावर हैसियत पाने वाले पंडित जी अब समाजवादियों की परछाई से भी दूर भाग रहे हैं। उनसे बचने को अब उनको सपा से गठबंधन करके दूर जा चुकी पार्टी का संग अच्छा लग रहा है। दरअसल, भतीजे को अपने सियासी कद का भान कराने को मशक्कत कर रहे चाचा ने पिछले दिनों पंडित जी को सरकार के दिनों में उन पर किए उपकार गिनाते हुए अब पार्टी को आगे बढ़ाने में मदद करने को कहा, उनका इशारा खर्चों में हाथ बंटाने की ओर था। पंडित जी को शुभचिंतक की सलाह खूब भायी कि सियासी चोला बदल लो बला टल जाएगी। किसी तरह वह दूसरी पार्टी के प्रमुख से मिलने दिल्ली पहुंचे तो रिवाज मुताबिक थैली भी ले गए। अब जानने वाले मजे ले रहे हैं कि थैली तो बची नहीं चाचा की नाराजगी भी मोल ले ली।