Kanpur Shaernama Column: मलाई खाने से पहले छींका टूटा, अपने ही बन गए मुसीबत

कानपुर शहर में राजनीतिक हलचल की खबर है शहरनामा कॉलम। नगर निगम में भी बिना प्रयास कुछ अफसरों उनके सरपरस्तों ने मलाई खाने के लिए खूब कवायद की। भाजपा संगठन में चरितार्थ हो रही एक शायर की पंक्तियां।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 11:46 AM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 11:46 AM (IST)
Kanpur Shaernama Column: मलाई खाने से पहले छींका टूटा, अपने ही बन गए मुसीबत
कानपुर की राजनीतिक गलियारों का शहरनामा कालम।

कानपुर, [राजीव द्विवेदी]। कानपुर शहर में राजनीतिक गलियारों की चर्चा और हलचल जो सुर्खियां नहीं बनती हैं, उन्हें चुटीले अंदाज में लेकर आता है शहरनामा कॉलम। साप्ताहिक इस कॉलम में पर्दे के पीछे की राजनीतिक तस्वीर भी होती है। आइए, पढ़ते है इस बार शहरनामा में क्या है...।

मलाई खाने से पहले छींका टूटा

बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने की कहावत आपने सुनी-पढ़ी होगी। उसका मतलब भी समझते होंगे। नगर निगम में भी ऐसा ही कुछ हुआ, लेकिन उसके मायने जुदा हैं। यहां बिना प्रयास कुछ अफसरों, उनके सरपरस्तों ने मलाई खाने के लिए खूब कवायद की। ख्वाब देखे गए पर उनके बीच के किसी विभीषण ने भेद खोल दिया तो उम्मीदों का छींका टूट गया। या यूं कहें कि मलाई खाने की उम्मीद पूरी होती, उससे पहले ही कलई खुल गई। दरअसल, शहर की डेढ़ सैकड़ा सड़कों को बनाने की तैयारी थी, पर किसी ने साहब के कान में फूंक दिया। सचेत हुए साहब सच देखने निकले तो पता चला, 15 से 20 फीसद सड़कें अच्छी थीं, अब ऐसे में उन्हें बनाने के बजट का क्या होता, समझ सकते हैं। भेद खुला तो साहब ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब सब बेचैन हैं कि अंदर की बात बाहर आई तो कैसे।

अपने ही बने मुसीबत

'इस घर को आग लग गई घर के चराग से...' किसी शायर की ये पंक्ति भाजपा संगठन में आजकल चरितार्थ हो रही है। जन्मदिन पार्टी के बाद युवा नेता जिस तरह एक-दूसरे को शह मात देने में लगे हैं, उससे पार्टी के संस्कारी और अनुशासित होने की छवि को तो दाग लगा ही, क्षेत्रीय संगठन के आला पदाधिकारी के चयन पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। दरअसल, जन्मदिन पार्टी में हुए बवाल और फिर पुलिस की कार्रवाई में जिनका भी नाम सामने आया वह सभी आला पदाधिकारी के आशीर्वाद से संगठन में बढ़े और पनपे हैं। उन्होंने जिसको छत्रछाया दी, उसी ने कार्यालय परिसर के एक हिस्से को कब्जा लिया। पार्टी के भीतर दबी सहमी आवाजें उठने भी लगी हैं कि उनके द्वारा पल्लवित युवा नेता ही ऐसा क्यूं कर रहे हैं। कुछ पार्टी की छवि खराब होने से दुखी हैं तो कई इसी बहाने स्वार्थ सिद्धि में जुटे हैं।

इमोशनल मुफ्तखोरी

कोरोना काल में लोगों की मदद को तत्पर रहने वाले सरकारी मुलाजिमों को फ्रंटलाइन वारियर का मान मिला। संक्रमण की दूसरी लहर में जब जनमानस सहमा था और सरकारी तंत्र महामारी रोकने को जूझ रहा था, तब नगर निगम के एक साहब लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस में आराम फरमा रहे थे। दरअसल, संक्रमण का पीक गुजरने के बाद शहरी बंदोबस्त के कार्य फिर से शुरू करने को नगर निगम के तमाम विभाग प्रमुख अपने दायित्वों पर मुस्तैद हो गए। उसी दौरान बंंदोबस्ती कार्यों की समीक्षा को कमिश्नर ने बैठक बुलाई तो एक विभाग प्रमुख ने बहन के दिवंगत होने का हवाला देकर अवकाश मांगा। साहब ने हमदर्दी दिखाई। कुछ रोज बाद ही साहब को उनके मित्र से पता चला कि विभाग प्रमुख लखनऊ के एक गेस्ट हाउस में आराम फरमा रहे। उसके बाद से साहब तमतमाए हैं। हालांकि, विभाग प्रमुख निश्चिंत हैं, क्योंकि वह जल्द सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

सेवा में मेवा की ख्वाहिश

कोरोना की आपदा को अवसर में बदलने का मोदी मंत्र देश को स्वावलंबी बनाने को था, उद्योग जगत ने उसको अपनाया भी। अब वही मंत्र सियासी मंसूबे पूरे करने के काम आ रहा है। शहर में कोरोना के पीक के दौरान लापता सियासी चेहरे अब मदद को हाथ जोड़े खड़े हैं। चुनावी साल में विरोधी दलों ने कोविड की आफत कम होने पर सेवा का ढोंग किया तो मोदी की अपनी पार्टी वाले भला कहां पीछे रहने वाले थे। टिकट के दावेदारों में मेवा की ख्वाहिश में सेवा की होड़ है। परिसीमन बाद शहर की जो सीट जीतने को भाजपा तरस रही, वहां से फिर एक दावेदार ने फोटो लगा सैनिटाइजर पैक बांटा तो दूसरे कहां पीछे रहते। उन्होंने बिना फोटो के सैनिटाइजर पैक के साथ परिवार में पैठ बनाने को लूडो बांटे। इसमें पार्टी नेताओं की तस्वीरें थीं। इससे दूसरे दावेदार नेताजी अपनी तस्वीर न लगाने से चिढ़े हैं।

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