Kanpur Rojnamcha Column: बन रहे थे सयाने अब अक्ल लगी ठिकाने, बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे

कानपुर शहर की पुलिस का रोजनामचा कालम है। महानगर के एक बड़े धार्मिक स्थल से जुड़ी जमीन पर अवैध कब्जे हो गए हैं और बाबा जी चाहते हैं कि इन कब्जों से जमीन खाली हो जाए। कभी-कभी अतिरिक्त दिमाग लगाना कष्ट का कारण बन जाता है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sat, 25 Sep 2021 12:51 PM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 12:51 PM (IST)
Kanpur Rojnamcha Column: बन रहे थे सयाने अब अक्ल लगी ठिकाने, बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे
कानपुर शहर की पुलिस विभाग का रोजनामचा।

कानपुर, गौरव दीक्षित। कानपुर शहर में पुलिस महकमे की हलचल का रोजनामचा कालम है। पुलिस विभाग में चर्चाओं तो बहुत होती हैं लेकिन सुर्खियां बनने से बच जाती हैं। ऐसी ही चर्चाओं को चुटीले अंदाज में हर सप्ताह की तरह इस बार भी लेकर आया है ये कालम..।

बने थे सयाने, अक्ल लगी ठिकाने

कभी-कभी अतिरिक्त दिमाग लगाना कष्ट का कारण बन जाता है। इंस्पेक्टर रैंक के कुछ पुलिसवालों के साथ ऐसा ही हुआ। ऐसे इंस्पेक्टर, जिन्हेंं कानपुर में तीन या पांच साल पूरा हो गया, यह सोचकर तबादला करा कानपुर आउटर चले गए कि अलग जिला माने जाने से विधानसभा चुनाव के दौरान तीन वर्ष पूरे न होने पर तबादले की सूची में नाम नहीं आएगा। कानपुर में गृहस्थी जमी रहेगी। दूसरी ओर कमिश्नरेट के इंस्पेक्टर उदास थे कि पता नहीं, उन्हेंं कहां फेंक दिया जाएगा। मगर, किस्मत का खेल देखिए। कानपुर आउटर चले गए इंस्पेक्टरों का अब दूसरे जिलोंं में तबादला हो गया है। वजह यह, उन्हेंं पुराने वाले जिले में ही मान लिया गया और कमिश्नरेट के इंस्पेक्टरों को जोन बदलकर तबादले दिए जाने की बात चल रही है। सयाने अब अपने फैसले पर पछता रहे हैं। एक इंस्पेक्टर बोले, कमिश्नरेट में ही रहते तो अच्छा था। बुद्धि मारी गई थी।

ऐसे मुंह चुराते, जैसे खुद अपराधी हों

गुलमोहर अपार्टमेंट की दसवीं मंजिल से दुष्कर्म के बाद युवती को बालकनी से नीचे फेंकने के मामले में मुख्य आरोपित प्रतीक वैश्य सलाखों के पीछे है। अधिकारियों के समय से सक्रिय होने की वजह से पुलिस ने सुबूत भी जुटा लिए हैं। मगर, घटना के प्रकाश में आने के बाद इस तरह से कल्याणपुर पुलिस ने मीडिया से मुंह चुराने की कोशिश की, जैसे उसने ही वारदात को अंजाम दे दिया हो। सब कुछ छिपाने की कोशिश की। असल में जब पुलिस कुछ गड़बड़ करती है तो सबसे पहले मीडिया से दूरी बना लेती है। थाने के एक दारोगा का पीडि़त परिवार के साथ घटनास्थल पर धमकी भरे अंदाज में बात करना। बंद कमरे में मृतका की बहन पर दबाव डालकर दारोगा द्वारा खुद तहरीर लिखने की कोशिश और थाने में आरोपित को वीआइपी ट्रीटमेंट यही कुछ साबित करता है। हालांकि अफसरों ने थाने की नियत पर पानी फेर दिया।

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे

महानगर के एक बड़े धार्मिक स्थल से जुड़ी जमीन पर अवैध कब्जे हो गए हैं। बाबा जी चाहते हैं कि इन कब्जों से जमीन खाली हो जाए। बाबा जी ने नगर मजिस्ट्रेट कोर्ट से अवैध निर्माण गिराने का आदेश भी प्राप्त कर लिया है। आदेश को साल भर हो गए, लेकिन अब तक निर्माण खाली नहीं हुए। बाबा जी महीनों से अफसरों को लखनऊ का डर दिखाकर अवैध निर्माण तोड़े जाने का दबाव बना रहे हैं। अफसर हां-हां तो कर रहे हैं, मगर कार्रवाई नहीं हो रही है। खबरी ने एक पुलिस अफसर से जब पूछा तो उन्होंने बताया कि अवैध निर्माण मंदिर नहीं बल्कि नजूल की जमीन पर है। बाबा जी लखनऊ की धमकी देते हैं, इसलिए कोई अफसर उन्हेंं सही बात नहीं बताता। यही वजह है कि हर अफसर उन्हेंं अपने से ऊपर वाले अफसर के पास भेज देता है। बिल्ली के गले में आखिर घंटी कौन बांधे।

70 हजार में बिकी अपराधी की तस्वीर

पिछले दिनों एक अपराधी की फोटो तमंचे के साथ इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुई। फोटो वायरल होते ही हलचल मची। पुलिस सक्रिय हुई। आनन फानन अपराधी को धर दबोचा गया। इसके बाद खेल शुरू हुआ। गेस्ट हाउस कांड में हिस्ट्रीशीटर को भगाने वाले गैंग के दो शातिरों ने पुलिस से साठगांठ शुरू की। दो लाख रुपये से बात शुरू हुई और सौदा 70 हजार में तय हुआ। लेनदेन के बाद अपराधी को आजाद कर दिया गया। जब खबरी ने इस मामले में साहब से पूछा तो बड़ी मासूमियत से उन्होंने बताया कि फोटो दस साल पुरानी थी, अब वायरल हुई। कुछ लोग उसे फंसाने की कोशिश कर रहे थे। इसीलिए छोड़ दिया। अब इंस्पेक्टर साहब को कौन बताए कि उनका खेल सबको पता है। अपराधी की तमंचे वाली तस्वीर की उन्होंने अच्छी खासी कीमत वसूल की है। अपराध तो अपराध है, जब पता चले तब अपराधी को सजा मिलनी चाहिए।

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