Kanpur Rojnamcha Column: साहब की पसंद.., कुर्सी के लिए रस्साकसी

कानपुर पुलिस की अंदर की चर्चाओं को लेकर आता है रोजनामचा काॅलम। कमिश्नरेट पुलिसिंग के वक्त शहर में आए एक साहब अपनी पसंद और नापसंदगी के चलते चर्चाओं में हैं। वक्त साथ न दे तो तमाम कोशिशें धरी रह जाती हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 02:08 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 02:08 PM (IST)
Kanpur Rojnamcha Column: साहब की पसंद.., कुर्सी के लिए रस्साकसी
शहर में भी दिखाई देती पुलिस की पूरी सक्रियता।

कानपुर, [गौरव दीक्षित]। कानपुर महानगर में पुलिस महकमे में कई ऐसी चर्चाएं आम रहती हैं, जो सुर्खियां नहीं बन बाती हैं। ऐसी ही चर्चाओं को चुटीले रंग में लेकर आता है जागरण का रोजनामचा कॉलम, आइए देखते बीते सप्ताह क्या चर्चाएं खास रहीं।

साहब की पसंद

कमिश्नरेट पुलिसिंग के वक्त शहर में आए एक साहब अपनी पसंद और नापसंदगी के चलते चर्चाओं में हैं। खबरी के मुताबिक उन्हें कानपुर आए दो महीने ही हुए हैं, लेकिन इतने दिनों में ही वह सात फालोवर और सात ड्राइवर बदल चुके हैं। पता नहीं क्यों साहब को कोई पसंद ही नहीं आ रहा। उनकी एक और पसंद भी मुसीबत बनी हुई है और वो यह है कि वह चाहते हैं कि जब भी किसी थाने पर जाएं तो थानेदार ही आगे बढ़कर उनकी गाड़ी का गेट का खोले ताकि दूसरे अधीनस्थ पुलिसकर्मियों को भी उनके कद का पता चल सके। समस्या केवल यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि पिछले एक थानेदार ने अपने थाने से बाहर के कुछ अपराधी पकड़ लिए तो साहब ने सवाल दाग दिया कि दूसरे थानाक्षेत्रों के बदमाशों क्यों पकड़ा, क्या उनके यहां कोई नहीं था। दूसरे के यहां सेंधमारी भी उन्हें पसंद नहीं आई।

रात का रिपोर्टर बताएगा असलियत

कहते हैं, जब नसीब साथ देता है तो खोटा सिक्का भी उछल कर चलता है और वक्त साथ न दे तो तमाम कोशिशें धरी रह जाती हैं। ऐसा ही कुछ शहर में भी दिखाई पड़ रहा है। खबरी की मानें शुरुआती तेजी के बाद इन दिनों काफी कुछ रामभरोसे हो गया है। पुलिस आयुक्त के नाइट पुलिङ्क्षसग के कांसेप्ट को उनके कुछ अफसर ही पलीता लगा रहे हैं। जहां पुलिस आयुक्त देर रात तक सड़कों पर रहते हैं, वहीं कुछ अफसर रात 11 बजे के बाद घरों में दुबक जाते हैं। केवल विशेष अभियान के दौरान ही वे दिखाई देते हैं। अभी कमिश्नरेट की नई-नई खुमारी है, इसलिए काफी कुछ ढक रहा है, लेकिन यही हाल रहा तो किसी भी दिन मुसीबत खड़ी हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि पुलिस भी रात का रिपोर्टर तैयार करे ताकि यह खबर लग सके कि कौन बाहर और कौन घर पर है।

क्या वाकई कूड़ा साफ होगा

हिस्ट्रीशीटर के फरारी कांड में आरोपित रॉकी यादव एक पुलिसकर्मी का बेटा है। पुलिसकर्मी तैनात दूसरे शहर में है जबकि बेटे के साथ परिवार यातायात पुलिस लाइन में रहता था। मामला संज्ञान में आने के बाद पुलिस आयुक्त ने सिपाही से मकान खाली करा लिया और दावा किया कि पुलिस लाइन से अभी और कूड़ा साफ होगा। उनके इस एलान से कई के पेट में मरोड़ उठ रही है। असल में इस समय दूसरे जिलों में तैनात 50 से 60 पुलिस कर्मियों के परिवार अवैध रूप से पुलिस क्वार्टर में कब्जा जमाए हैं। इनमें से तो कई ऐसे हैं, जिन्होंने कानपुर में अपना निजी मकान बनवा लिया है, लेकिन वे रहते पुलिस लाइन में हैं और अपना मकान किराए पर उठाए हुए हैं। ऐसे में जिन्हें जरूरत है, वे समस्याओं में जी रहे हैं। ऐसे पुलिसकर्मी अब पूछने लगे हैं कि क्या वाकई कूड़ा साफ होगा। उन्हें भी घर मिलेगा।

कुर्सी के लिए रस्साकसी

पुलिस की नौकरी में वही सफल है, जिसके पास मलाईदार कुर्सी है। कमिश्नरेट में इन दिनों कुर्सी पाने के लिए रस्साकसी चल रही। ढाई महीने पहले जब कमिश्नरेट लागू हुआ था तो थानेदारों को लगा कि बदलाव होगा और उसकी गुंजाइश में कई लोगों ने हाथ-पांव मारना शुरू किया था, मगर पुलिस आयुक्त ने पुरानी टीम पर ही विश्वास जताया और अब तक कोई बदलाव नहीं किया है। हालांकि जोन के अंदर चौकी प्रभारियों के तबादले हो चुके हैं। एक बार फिर से जोरशोर से तबादलों का शोर सुनाई पड़ रहा है। इसके पीछे बड़ा कारण कुछ थानेदारों का गैरजनपद स्थानांतरण और स्वास्थ्य कारणों से पद से स्वत: हटना माना जा रहा है। इसकी वजह से थानेदार की कई कुर्सियां खाली हो रही हैं। वहीं एसीपी स्तर पर भी अफसर मलाईदार सर्किल की आस में जोड़ जुगाड़ लगा रहे हैं। इंतजार पुलिस आयुक्त के तबादला एक्सप्रेस के चलने का है।

chat bot
आपका साथी