Kanpur Rojnamcha Column: थानेदार का एक झूठ, अब थाने में गुडवर्क नहीं होते साहब
कानपुर के पुलिस महकमे की चर्चाओं को चुटीला अंदाज है रोजनामचा कॉलम। दक्षिण के एक थाना प्रभारी का कुर्सी से मजबूत जोड़ इन दिनों काफी चर्चा में है। कमिश्नरेट पुलिसिंग लागू ने अबतक किसी थानेदार ने बड़े गुडवर्क वाला कोई तीर मारा हो।
कानपुर, [गौरव दीक्षित]। कानपुर शहर में पुलिस महकमे की हलचल लेकर फिर आया है रोजनामचा कॉलम। पुलिस महकमे की ऐसी चर्चाएं जो सुर्खियां नहीं बन पाती हैं, उन्हें चुटीले अंदाज में अापतक पहुंचाया गया है। आइए पढ़ते हैं इस बार पुलिस महकमे का रोजनामचा क्या कहता है...।
कुर्सी का मजबूत जोड़
दक्षिण के एक थाना प्रभारी का कुर्सी से मजबूत जोड़ इन दिनों काफी चर्चा में है। पिछले दिनों उनके थानाक्षेत्र का एक मामला देश भर में चर्चित रहा था। उन्हें थानेदारी संभाले हुए लगभग दो साल हो चुके हैं। कप्तान से लेकर थानेदार तक बदले और अब कमिश्नरेट प्रणाली तक लागू हो गई, लेकिन उन्हें कोई हिला नहीं पा रहा। ज्यादा वक्त तैनाती से वह कई बार विवादों में भी आए। खबरी की मानें तो ऐसा नहीं है कि उन्हें हटाने की कोशिशें नहीं हुईं, मगर उनकी किस्मत इतनी शानदार है कि कप्तान के पास तक उनकी कारगुजारियां जब पहुंचीं और उन्हें हटाने का फैसला लिया जाता, इससे पहले खुद एसएसपी के जाने का नंबर आ गया। खबरी तो बता रहा है कि छह महीने पहले थानेदार साहब को बैड इंट्री भी मिली चुकी है, बावजूद इसके वह न केवल जमे हुए हैं बल्कि जमकर बैटिंग भी कर रहे हैं।
रेमडेसिविर का खेल
एलएलआर अस्पताल में पिछले दिनों एक सनसनीखेज पर्दाफाश हुआ कि कोविड संक्रमण की रोकथाम में कारगर बहुमूल्य रेमडेसिविर इंजेक्शन मुर्दों को लगाए गए थे। जांच शुरू हुई तो जिम्मेदार तय किए जा रहे हैं। कुछ निलंबित हो चुके हैं और कुछ पर निलंबन की तलवार लटक रही है। खेला हुआ कैसे, सबसे बड़े इस सवाल का जवाब न तो एलएलआर प्रशासन दे रहा है और न जिला प्रशासन। जो इंजेक्शन मुर्दों को लगाए थे, वे किसे लगाए गए और किस हद तक कालाबाजारी हुई। क्योंकि एक समय यह इंजेक्शन ब्लैक मार्केट में 50 हजार रुपये तक का मिल रहा था। खबरी के मुताबिक तालाब की बड़ी मछलियों को बचाने के लिए छोटी मछलियों की बलि ली जा रही है, क्योंकि सच्चाई सामने आई तो कई बड़े नाम भी बदनाम हो जाएंगे। अब देखना यह है कि इस मामले की रिपोर्ट कब सार्वजनिक होगी कि आखिर इंजेक्शन गए तो कहां गए।
थानेदार का झूठ
पिछले दिनों पश्चिमी जोन के एक थाना प्रभारी गोलीकांड जैसी बड़ी वारदात भी पचा गए। असल में उनके क्षेत्र से गुजर रहे एक राहगीर के पैर में आकर गोली लगी थी। गोली लगने के बाद उसे घायल अवस्था में एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। एक्सरे में गोली लगने की पुष्टि भी हुई। चूंकि किसी ने शिकायत नहीं की थी, इसलिए इंटरनेट मीडिया पर मामला छाने के बाद भी इंस्पेक्टर साहब ने मामले को पी जाना ही उचित समझा। जब पुलिस आयुक्त ने पूछा तो बता दिया, फर्जी खबर चल रही है। जब घायल सामने आ गया तो थाना प्रभारी से दोबारा पूछा गया। इस बाार उन्होंने कह दिया कि घायल पर दबाव डालकर झूठ कहलाया जा रहा है। खबरी के मुताबिक पुलिस आयुक्त ने जब पूछा कि क्या एक्सरे भी झूठ बोलता है तो थानाप्रभारी के पास कोई जवाब नहीं था। अब मामले की जांच चल रही है।
अब थाने में गुडवर्क नहीं होते साहब
महानगर में कमिश्नरेट पुलिसिंग लागू हुए साढ़े तीन महीना बीत चुका है। किसी को याद है कि किसी थानेदार ने बड़े गुडवर्क वाला कोई तीर मारा हो। जवाब न में होगा। केवल एसीपी कर्नलगंज के खाते में ब्लैक फंगस के नकली इंजेक्शन वाला गुडवर्क दर्ज है, नहीं तो सारे के सारे गुडवर्क क्राइम ब्रांच ने ही किए हैं। नकली दवाओं के गिरोह का भंडाफोड़, साइबर ठगों की गिरफ्तारी, तेल चोरी करने वाला गिरोह और मान तस्करी जैसे बड़े मामलों को क्राइम ब्रांच ने ही सुलझाया। कमिश्नरेट का रिकार्ड बता रहा कि थानेदारों ने इस दौरान कुछ भी नहीं किया, जबकि पहले वाले सिस्टम में थानों से ही गुडवर्क हुआ करते थे और क्राइम ब्रांच कुंभकरणी निद्रा में थी। थानेदारों पर अब यातायात संचालन का भी पहले वाला बोझ नहीं रहा। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर थानेदार कर क्या रहे हैं। क्या वह केवल छुटभैया बदमाशों के लिए हैं।