Kanpur Rojnamcha Column: खुद जागते रहो, पुलिस सो रही है.., जिम्मेदार कौन

कानपुर शहर में पुलिस महकमे की हलचल है रोजनामचा कॉलम। पिछले दिनों एक अधिकारी ने अपने क्षेत्र में गश्त पर लगे सिपाहियों की सजगता देखनी चाही तो वह दंग रह गए। सिस्टम सच्चाई तो जानता है मगर इसे मानने को तैयार नहीं है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 10:53 AM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 10:53 AM (IST)
Kanpur Rojnamcha Column: खुद जागते रहो, पुलिस सो रही है.., जिम्मेदार कौन
कानपुर पुलिस विभाग का रोजनामचा कॉलम ।

कानपुर, गौरव दीक्षित। कानपुर पुलिस महकमे की हलचल और चर्चाएं अक्सर सुर्खियां नहीं बन पाती हैं। पुलिस महकमे के अंदर की खबरों को चुटीले अंदाज में लेकर आता है रोजनामचा कॉलम..। आइए देखते हैं कि इस बार पुलिस विभाग में क्या चलता रहा।

जागते रहो, पुलिस सो रही है

शहर में इन दिनों रात की गश्त बढ़ा दी गई है। दावा है कि रात में अपराधी अधिक सक्रिय होते हैं और पुलिस सड़क पर रहेगी तो अपराध कम होंगे। मगर, डायल 112 और गश्त पर तैनात सिपाही सुधार की इस कवायद के साथ चलने को तैयार नहीं हैं। पिछले दिनों एक अधिकारी ने अपने क्षेत्र में गश्त पर लगे सिपाहियों की सजगता देखनी चाही तो वह दंग रह गए। रात के दो बजे सभी सिपाही अपने-अपने प्वाइंट पर सोते मिले। एक अधिकारी ने पीआरवी के अंदर से सारे कागजात बाहर निकाल लिए और सिपाहियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। ऐसे ही कोई हथियार पार कर दे तो क्या होगा। गश्त का यह अभियान इन हालात में क्या सुधार ला पाएगा। इन हालात में सुरक्षा की जरूरत आम आदमी से ज्यादा पुलिस को नजर आ रही है। इसलिए कहा जा रहा है- जागते रहे, क्योंकि पुलिस सो रही है।

18 मौतें, जिम्मेदार कौन

सचेंडी में हुए सड़क हादसे में 18 लोगों की जान चली गई। सभी यही मान रहे हैं कि दुर्घटनाग्रस्त बस और टेंपो ओवरलोड थीं। खचाखच भरा टेंपो हाईवे पर उल्टी साइड दौड़ रहा था, तो दूसरी तरफ बस चालक ने शराब पी रखी थी। फजलगंज के आगे आरटीओ के एक सिपाही ने गाड़ी रोकी और ले-देकर मामला सेट कर लिया। यही नहीं, ट्रैवल एजेंसी ने भी सभी नियमों को ताक पर रखा हुआ था और बिना अनुमति के बस अहमदाबाद जा रही थी। इन तथ्यों से साफ है कि आरटीओ, पुलिस, प्रशासन और एनएचएआइ के लोग हादसे के लिए जिम्मेदार हैं। मगर, हादसे के 72 घंटे बाद भी इन मौतों के लिए जिम्मेदार चिन्हित नहीं हो सके। किसी पर कोई कारवाई नहीं हुई। इससे साफ है कि सिस्टम सच्चाई तो जानता है, मगर इसे मानने को तैयार नहीं है, क्योंकि बेचारे गरीब मजदूर उनकी प्राथमिकता में कहीं नहीं आते हैं।

बदहाल आउटर

बिकरू कांड के बाद कानपुर नगर में कमिश्नरेट पुलिस प्रणाली की चर्चा शुरू हुई और नौ महीने बाद यह व्यवस्था लागू हो गई। 25 मार्च के बाद से जिले में दो पुलिस सिस्टम काम कर रहे हैं। दोनों में अंतर भी दिखाई पड़ रहा है। जहां एक ओर कमिश्नरेट में क्राइम कंट्रोल बेहतर है, वहीं 11 थानों वाले कानपुर आउटर को संभालना मुश्किल हो रहा। कानपुर आउटर में अपराध बढ़ा है। हत्या, चोरी और बलवा की घटनाएं बढ़ी हैं। लापरवाह सिस्टम को उजागर करता सचेंडी जैसा सड़क हादसा, तालाब में छिपाकर रखी गई जहरीली शराब और तेल का अवैध कारोबार कानपुर आउटर के हालात बयां कर रहा है। खबरी के मुताबिक आउटर इन दिनों आउट ऑफ कंट्रोल है, क्योंकि घटनाओं के अलावा अफसर घर से निकल ही नहीं रहे और थानेदार चापलूसों से घिरे हैं। इसके अलावा फौज खुद को दोयम दर्जे का मानकर सब कुछ रामभरोसे छोड़ मगन है।

प्यादे ही पिटे

शतरंज के खेल में सबसे पहले प्यादे ही पिटते हैं। निष्कासित भाजपा नेता ने अपनी जन्मदिन पार्टी के दौरान जो बवाल मचाया, उसमें उनके साथ कई और नप गए। अब खेल देखिए, नेता जी फंसे तो सफेद कुर्ता उतार उन्होंने काला कोट पहन लिया। गिरफ्तारी के बाद जेल से उनकी रिहाई में यही काला कोट मददगार बना, मगर प्यादे बेचारे अभी जेल में ही हैं। आरोप एक जैसे हैं, मगर शतरंज के खेल में राजा और वजीर को जैसे विशेषाधिकार मिला है, वैसे ही स्थिति यहां भी हैं। जो जेल के अंदर हैं, बाहर आने के लिए छटपटा रहे हैं और जो अभी बाहर हैं, उन्हें अंदर जाने का डर सता रहा है। वहीं नेता जी जेल से बाहर आने के बाद प्यादों को बचाने की जगह डैमेज कंट्रोल में जुटे हैं। उन्हें पता है कि भले ही अभी काले कोट ने बचाया, लेकिन नैया पार सफेद कुर्ता ही लगाएगा।

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