ढाई करोड़ की नकली दवा पकड़ने के बाद स्ट्रिप-डिब्बे की छपाई और स्कैनिंग के ठिकानों की तलाश

नकली दवा बनाने वाले गिरोह का राजफाश और लखनऊ से ढाई करोड़ का माल बरामद करने के बाद पुलिस अब स्ट्रिप और डिब्बे की छपाई करने वाले ठिकाने की तलाश में जुट गई है। इसके प्रिंटर और स्कैनर 50-60 लाख रुपये के आते हैं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 01:55 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 01:55 PM (IST)
ढाई करोड़ की नकली दवा पकड़ने के बाद स्ट्रिप-डिब्बे की छपाई और स्कैनिंग के ठिकानों की तलाश
कानपुर पुलिस तलाश रही नकली दवा गिरोह के सुराग।

कानपुर, जेएनएन। नामचीन कंपनियों के ब्रांड की नकली दवाएं बनाने का राजफाश होने के बाद पुलिस अब पैकिंग स्ट्रिप और डिब्बे मुहैया कराने वालों के ठिकानों को तलाशने में जुटी है। लखनऊ समेत अन्य कई स्थानों पर नकली दवा का काम करने वाले बड़े पैमाने पर नकली दवाओं को विभिन्न स्थानों से उत्पादन और पैकिंग कराने के बाद इनकी खुले बाजार में सेटिंग के माध्यम से बिक्री करते हैं।

क्राइम ब्रांच के अफसरों के मुताबिक स्ट्रिप पर प्रिटिंग और पैकिंग करने वाले डिब्बे की स्कैनिंग और प्रिटिंग के लिए जो प्रिंटर और स्कैनर इस्तेमाल होते हैं, उनकी लागत करीब 50-60 लाख रुपये के बीच होती है। नकली दवा का काम करने वाले इतना महंगा प्रिंटर-स्कैनर नहीं खरीदेंगे। जाहिर है कि कहीं और से स्कैनिंग और प्रिटिंग कराते हैं। नकली स्ट्रिप और डिब्बे कहां से मिलते हैं, इसका पता लगाया जा रहा है।

सभी कंपनियों को चाहिए, एसएमएस अलर्ट का करें इस्तेमाल

एडीसीपी अपराध दीपक भूकर का कहना है कि आज के समय में कौन सी दवा असली है और कौन नकली है, इसकी पहचान मुश्किल है। ऐसे में कुछ बड़ी कंपनियां ग्राहकों की सेवाओं का ध्यान रख स्ट्रिप पर मोबाइल नंबर की तरह ही एक नंबर प्रिंट करती हैं। उस नंबर पर अगर स्ट्रिप पर लिखे बैच नंबर को एसएमएस के जरिए भेजा जाता है तो कंपनी असली या नकली होने की जानकारी देती है।

जिफी बनाने वाली कंपनी समेत कुछ कंपनियों में यह सुविधा होती है। सभी कंपनियों को एसएमएस अलर्ट इस्तेमाल करना चाहिए। मेडिकल स्टोर पर अधिकांश तौर पर दवा के पत्ते कटिंग करके बेचे जाते हैं, जिससे लोगों को अंकित नंबर का पता नहीं चलता। मेडिकल स्टोर संचालक भी इस सुविधा की जानकारी ग्राहकों को नहीं देते हैं।

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