Kanpur Rojnamcha Column : विधान सभा चुनाव से पहले पुलिस को सताने लगी चिंता...पता नहीं कहां फेंक दें हमें

कानपुर महानगर में व्यापारिक राजनीतिक संगठनों का हलचल है नापतोल के कालम। शहर में नए-नए बने व्यापार मंडल के पदाधिकारियों की उनके पहले ही शो में अग्निपरीक्षा हो गई। यूं तो सभी व्यापार मंडल हर तीन वर्ष बाद सदस्यता अभियान चलाते हैं।

By Akash DwivediEdited By: Publish:Sat, 11 Sep 2021 08:10 AM (IST) Updated:Sat, 11 Sep 2021 08:10 AM (IST)
Kanpur Rojnamcha Column : विधान सभा चुनाव से पहले पुलिस को सताने लगी चिंता...पता नहीं कहां फेंक दें हमें
कानपुर की व्यापारिक संगठनों की राजनीति का हाल।

कानपुर, गौरव दीक्षित । कानपुर महानगर में व्यापरिक गतिविधियों के साथ राजनीति भी खासा तेज रहती है। व्यापारिक संगठनों के बीच हमेशा हलचल बनी रहती है, इसी हलचल को चुटीले अंदाज में लेकर आता है नापतोल के कालम। आइए देखते हैं कि बीते सप्ताह व्यापारिक राजनीति में क्या हलचल बनी रही...।

भाग्य से टूटा छींका : निकट विधानसभा चुनाव के चलते उन सभी पुलिस कर्मियों की लिस्ट मांगी गई है, जो तीन साल से कानपुर नगर में जमे थे। कानपुर नगर में ऐसे पुलिस वालों की संख्या सैकड़ों में थी। उन्हेंं बस यही चिंता सताए जा रही थी कि पता नहीं, उन्हेंं कहां फेंका जाएगा। लेकिन, कमिश्नरेट गठन की वजह से उनके भाग्य का छींका टूट गया। ऐसे पुलिस कर्मी जिनका तीन साल पूरा हो गया था या पूरा होना था, वे बंटवारे में कानपुर आउटर चले गए। नए बदलाव का उन्हेंं यह फायदा हुआ कि तबादला भी हो गया और घर के घर में भी रह गए। अब अगले तीन वर्षों तक उन्होंने कानपुर नगर में ही रहने का जुगाड़ बना लिया है। केवल इतना ही नहीं, इनमें से कई तो ऐसे भी हैं जो कमिश्नरेट में किनारे पड़े हुए थे और कानपुर आउटर में वह महत्वपूर्ण हो गए हैं और चार्ज भी मिल गया।

बेआबरू होकर मीटिंग से निकले दारोगा : चार दिन पहले एक जोन के अधिकारी मातहतों की मीटिंग करके क्राइम कंट्रोल का पाठ पढ़ा रहे थे। अचानक अधिकारी ने एक थाने के दारोगा से ड्यूटी पर मौजूद कर्मचारियों की संख्या, क्षेत्र में चलने वाले जेब्रा और पीआरवी के नंबर के बारे में पूछा तो उनका हलक सूख गया। दारोगा जी बगलें झांकने लगे। तीन बार पूछने के बाद दारोगा अधिकारी के सवाल का जवाब नहीं दे पाए तो अधिकारी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। तमतमाए हुए बोले, जब ड्यूटी पर मौजूद कर्मचारियों के बारे में जानकारी नहीं है तो किस बात के नाइट अफसर हो। ऐसे लोगों को ड्यूटी पर ही नहीं लेना चाहिए। दारोगा मीटिंग से मुंह लटकाए हुए मीटिंग से निकल गए। इसका असर यह पड़ा कि अब साहब के सामने जाने से मातहत डर रहे हैं। अगर जाना भी पड़ रहा है तो पहले क्षेत्र सी जुड़ी जानकारियों का रट्टा लगा रहे हैं।

जुगाड़ वाले दारोगा जी : इन दिनों एक जुगाड़ वाले दारोगा जी की चर्चा बड़े ही जोरशोर से छिड़ी हुई है। कुछ दिनों पहले तक वह एक साधारण सी चौकी में तैनात थे, लेकिन जोड़-जुगाड़ करके उन्होंने एक कमाऊ और महत्वपूर्ण चौकी की कमान अब अपने हाथों में ले ली है। हालांकि वह यहां भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। पुरानी चौकी में उनका आलम यह था कि कुछ समय पहले चौकी से चंद कदम की दूरी पर एक छात्रा संग लूट हो गई थी। सड़क पर लगे सीसीटीवी कैमरों में लुटेरों की फुटेज भी कैद हुई, लेकिन दारोगा जी उस लूट की वारदात का राजफाश नहीं कर पाए। बताया जा रहा है कि एक अधिकारी के यहां एक सीनियर दारोगा से सेटिंग करके उन्होंने बड़ी चौकी तो हथिया ली। अब देखना है, यह जुगाड़ कितने दिन काम आता है। जब बेगार चौकी की एक वारदात नहीं खुली तो बड़ी चौकी में क्या होगा।

हम दो नहीं, एक हैं : अपने शहर में भी चिंकी-मिंकी की एक जोड़ी मौजूद है। पिछले दिनों ये दोनों बहनें अपनी मां के साथ स्कूटी से जा रही थीं। रास्ते में किसी पुलिस वाले ने तीन सवारी देखी तो उनकी फोटो खींची और चालान कर दिया। चालान कटने की जानकारी जैसे ही लगी, दोनों जड़वा बहनें अपनी मां के साथ तुरंत ही डीसीपी ट्रैफिक के आफिस पहुंच गईं। उन्होंने डीसीपी को तर्क दिया कि भले ही वे दोनों बहनें दो दिखाई देती हों, लेकिन हैं एक। मां के साथ जब भी जाती हैं दोनों बहनें ही जाती हैं। उनके पास स्कूटी है। ऐसे में मां के साथ स्कूटी पर तीन सवारियां हो जाती हैं। अगर इस तरह से चालान काटा जाएगा तो कैसे चलेगा। उनका तर्क सुनकर अफसर भी हंस दिए और एक चालान निरस्त कर दिया गया। हालांकि, यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि अब आगे से चालान हुआ तो जुर्माना भरना पड़ेगा।

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