Kanpur Naptol Ke Column: एक फोन ने करा दिया विवाद, यहां तो पड़ गया रंग में भंग
कानपुर शहर में व्यापारिक गतिविधियों और व्यापारियों की राजनीतिक का प्रमुख केंद्र है। लोहा व्यापारियों के एक संगठन के होली मिलन समारोह में रंग में भंग पड़ गया तो व्यापारियों की राजनीति करने वाले एक निष्क्रिय नेता ने सक्रिय को सहयोगी बता दिया।
कानपुर, राजीव सक्सेना। कानपुर शहर लंबे अर्से से व्यापार का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। ऐसे में यहां कई व्यापारिक संगठन भी सक्रिय है, जो देश के विभिन्न प्रांतों से भी जुड़े हुए हैं और राजनीति में भी सक्रिय हैं। व्यापारियों के संगठनों में रोजाना एेसे वाक्ये होते रहते हैं, जो सुर्खियां तो बनते हैं लेकिन मीडिया के माध्मय से लोगों तक नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसी सुर्खियों को चुटीले अंदाज में आपतक पहुंचाता है हमारा नापतोल के कॉलम...।
हो गया रंग में भंग
होली खत्म हुई तो होली मिलन समारोह के नाम पर शहर में जगह-जगह कार्यक्रम होने लगे। कोरोना से बेखौफ लोहा व्यापारियों के एक संगठन ने भी होली मिलन समारोह का आयोजन किया। व्यापार का नाता उससे जुड़े सरकारी विभागों से होता है। इसके साथ ही पुलिस का भी चोली-दामन का साथ रहता है। इसलिए एक ही कार्यक्रम में व्यापार से जुड़े विभागों और पुलिस के आला अधिकारियों को आमंत्रित किया गया। कार्ड में जितने नाम थे, उन्हें पढ़-पढ़कर व्यापारी पहले ही चौंक रहे थे कि एक कार्यक्रम में इतने अधिकारी कैसे पहुंचेंगे। पदाधिकारियों ने सभी अधिकारियों के भाषण का प्रेस नोट भी तैयार करके रख लिया था। समय पर उसे जारी भी कर दिया गया, लेकिन शिरकत के नाम पर सिर्फ एक अधिकारी ही मंच की शोभा बने। बाकी किसी ने आने की जहमत तक नहीं उठाई। इससे ऐसा रंग में भंग पड़ा कि अब तक सफाई दे रहे हैं।
निष्क्रिय थे, सक्रिय को बताया सहयोगी
राजनीति में दूसरे को हमेशा छोटा बताने का खेल चलता ही रहता है। ऐसा ही एक प्रयास पिछले दिनों नींद से कई वर्ष बाद जागे व्यापार मंडल के पदाधिकारियों ने किया। नींद खुली तो पता चला कि दूसरे संगठन बहुत आगे निकल चुके हैं। व्यापारियों और व्यापार मंडलों के बीच उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कुछ बड़ा करना था, जिससे उनके अस्तित्व की झलक अधिकारियों को भी मिल जाए, उन्हें वरीयता दी जाने लगे। आखिर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। खुद निष्क्रिय हो चुके संगठन ने कारोबार से जुड़े दो संगठनों को अपना सहयोगी बताकर नाम कार्ड पर छाप दिया। सक्रियता ज्यादा होने के बाद भी सहयोगी बताए गए संगठनों को पता चला तो वे नाराज हुए और अपने बाजारों में कार्ड तक नहीं बंटने दिया। व्यापारियों का कहना है कि कार्यक्रम को सफल बनाने में मदद करने के बदले सहयोगी संगठन बताया जाएगा तो वे मदद ही क्यों करेंगे।
गंगा मेला से दूर रहे व्यापारी
होलिका दहन से लेकर गंगा मेला तक सबसे ज्यादा छुट्टियों का लुत्फ व्यापारी ही उठाते हैं। कभी पांच दिन तो कई बार छह और सात दिन तक थोक बाजार बंद रहते हैं। गंगा मेला पर व्यापार संगठनों का कैंप हर वर्ष नजर आते थे, लेकिन इस बार नजर नहीं आए। हालात बदले तो केवल एक व्यापार मंडल को छोड़ और किसी ने शिविर तक नहीं लगाया। कोरोना से भयभीत व्यापार मंडल के नेताओं ने खुद को गंगा मेला से दूर ही रखा। जिस व्यापार मंडल ने अपना शिविर लगाया, उसके दो पदाधिकारियों ने अपनी अलग व्यवस्था भी कर रखी थी। एक व्यापारी नेता तो पूरे समय अपने जातीय शिविर में ही बैठकर मेले में आने वालों का स्वागत करते रहे। दूसरे ने भी अपने एक और संगठन का कैंप वहां लगा लिया। व्यापार मंडल के कैंप में व्यापारियों को भी बड़े चेहरे नहीं मिले तो वे मायूस होकर लौट गए।
फोन ने करा दिया विवाद
फोन पर होने वाले संवाद मनमुटाव को खत्म कर सकते हैं, लेकिन बात न होना विवादों को जन्म दे सकता है। पिछले दिनों प्रशासनिक अधिकारियों ने व्यापारियों की बैठक बुलाई। कई संगठनों के पदाधिकारी पहुंचे ही नहीं। कई संगठन से ऐसे पदाधिकारी पहुंचे, जिनके वरिष्ठ पदाधिकारियों को बैठक की सूचना तक नहीं थी। जो बैठक में नहीं पहुंचे उन्हें अगले दिन जानकारी हुई तो उन्होंने इस पर नाराजगी जतानी शुरू की। शहर के दो बड़े व्यापारिक संगठनों में भी गुटबाजी है। दोनों संगठनों से एक पक्ष गया था दूसरा नहीं। जो नहीं पहुंचे थे, उन्हें महसूस हो रहा था कि उनका पत्ता काटने का प्रयास किया गया है। किसी तरह उन्हें बताया गया कि साहब ने खुद सारे नंबर लेकर फोन किए थे, बहुत से लोगों के फोन नहीं लगे, इसलिए उन्हें बैठक की जानकारी नहीं हो सकी। हालांकि, बहुत से व्यापारी नेता अभी इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हैं।