कानपुर में मरीज के आत्मबल और अपने साहस के बूते डाक्टरों ने मौत से छीन तोहफे में दिया नवजीवन

डी-डाइमर सीआरपी सिरम फेरेटिन एवं आइएल-6 मार्कर भी बढ़े थे। दवाएं बेअसर होने पर कल्चर जांच में फेफड़े में कैप्सेला तथा यूरिन में एसिनोवेक्टर बैक्टीरिया का गंभीर संक्रमण पकड़ में आया। जिंदगी खतरे में थी और उनका इलाज बहुत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि दवाएं बेअसर हो चुकी थीं।

By Akash DwivediEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 11:11 AM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 11:11 AM (IST)
कानपुर में मरीज के आत्मबल और अपने साहस के बूते डाक्टरों ने मौत से छीन तोहफे में दिया नवजीवन
डी-डाइमर, सीआरपी, सिरम फेरेटिन एवं आइएल-6 मार्कर भी बढ़े थे।

कानपुर (ऋषि दीक्षित)। कोरोना संक्रमण से दोतरफा लड़ाई थी। मरीज अपनी जिंदगी के लिए संघर्षरत थे तो डाक्टर उनकी सांसों की डोर को थामे थे। मरीजों के धैर्य की परीक्षा थी तो डाक्टरों के साहस की। आज आपको ऐसी ही कहानी से रूबरू कराते हैैं, जिसमें दोनों समन्वय और आत्मबल से कोरोना विजेता बने।

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के न्यूरो सर्जरी विभागाध्यक्ष डा.मनीष सिंह की पत्नी डॉ. प्रतिभा सिंह अस्थमेटिक हैं। वह 15 मई को संक्रमित हुईं और फेफड़े में गंभीर संक्रमण के साथ सेप्टीसीमिया भी हो गया था। कोविड आइसीयू में भर्ती हुईं तो उनका एसपीओटू (आक्सीजन स्तर) 88 और हार्ट रेट 40 थी। हार्ट पर कोरोना का असर होने से दिक्कत बढ़ती जा रही थी। ब्लड प्रेशर भी गिर रहा था।

डी-डाइमर, सीआरपी, सिरम फेरेटिन एवं आइएल-6 मार्कर भी बढ़े थे। दवाएं बेअसर होने पर कल्चर जांच में फेफड़े में कैप्सेला तथा यूरिन में एसिनोवेक्टर बैक्टीरिया का गंभीर संक्रमण पकड़ में आया। जिंदगी खतरे में थी और उनका इलाज बहुत चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि दवाएं बेअसर हो चुकी थीं। एलएलआर अस्पताल (हैलट) के न्यूरो सांइस सेंटर के लेवल-3 कोविड आइसीयू के नोडल अफसर एवं एनस्थीसिया के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल वर्मा के निर्देशन में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.चंद्रशेखर सिंह ने पांच सदस्यीय टीम के साथ मंथन किया और अपने चिकित्सकीय जीवन के पूरे अनुभव का निचोड़ लगा दिया।

उच्चस्तरीय एंटीबायोटिक कोलिस्टीन, मेरोपेनम और लिवोफ्लोक्सासिन चलाई, तब जाकर स्थिति नियंत्रित हो सकी। एंटीबायोटिक डालकर नेबुलाइज भी कराना पड़ा, ताकि फेफड़ों के संक्रमण से राहत मिल सके। उसके बाद स्थिति नियंत्रित हो सकी। आठ दिन आइसीयू में रखने के बाद उन्हेंं घर भेज दिया, ताकि दूसरा संक्रमण न होने पाए। डॉक्टर बताते हैैं कि कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमित गंभीर स्थिति में आ रहे थे। आक्सीजन सेचुरेशन (एसपीओटू) 40 से 60 फीसद पहुंचने से मरीजों की जान बचाने में काफी मुश्किल हुई लेकिन टीम जी-जान से जुटी रही और ज्यादातर लोगों को जोखिम से निकाल लिया।

रास्ता बड़ा कठिन था, चले संभल-संभल के : डॉ. प्रतिमा कहती हैैं कि आइसीयू से घर तक का सफर बहुत कठिन था। कदम-कदम पर एहतियात रखनी थी। पेशे से खुद डाक्टर हूं इसलिए संजीदगी से चिकित्सकों की सभी बातें मानीं। उसी का प्रतिफल है कि आज स्वस्थ हूं।

बच्चों की तरह मनाया, नखरे भी सहे : जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के एलएलआर अस्पताल के कोविड आइसीयू में चुनौती तब बढ़ती थी, जब कोरोना संक्रमण संग मधुमेह, हार्ट और किडनी की बीमारी होती थी। ऐसे मरीज जिद्दी भी होते थे, जो बाईपैप या हाई फ्लो नेजल कैनुला से आक्सीजन लेने को तैयार नहीं होते थे। उन्हेंं बच्चों की तरह मनाना पड़ा। एक-एक घंटे खड़े रहकर समझाया और उनके नखरे उठाने पड़े। 

chat bot
आपका साथी