कानपुर पर भी पड़ सकता स्वेज नहर में जलयानों के जाम का असर, व्यवस्था प्रभावित रहने के आसार
यूरोप से अमेरिका जाने वाले जलयानों के लिए स्वेज नहर बंद हो जाने से कानपुर के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके चालू होने के बाद भी काफी समय तक व्यवस्था प्रभावित रहने के आसार बन रहे हैं।
कानपुर, [राजीव सक्सेना]। स्वेज नहर में 23 मार्च से लगा जाम जल्द नहीं खुला तो कानपुर के निर्यात ऑर्डरों को भी चोट लगेगी। इसकी वजह से कंटेनर सही समय पर नहीं पहुंच पाएंगे। ऐसे में ये कंटेनर उतने ही दिन देरी से वापस आएंगे जिसकी वजह से ऑर्डर लेट होंगे। एक बार शुरू हुई इस प्रक्रिया से जल्दी निजात नहीं मिलेगी।
23 मार्च से यूरोप और अमेरिका जाने वाले जलयानों के लिए स्वेज नहर बंद है। एक जहाज के बीच में फंसने की वजह से यह मार्ग बंद हो गया है। कानपुर के इनलैंड कंटेनर डिपो प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि हालांकि पिछले तीन दिन से कानपुर का कोई कंटेनर यूरोप और अमेरिका के इस रूट पर नहीं है लेकिन अगले चार-पांच दिन में यह रूट नहीं खुला तो समस्या शुरू होगी। जो भी जहाज वहां फंसे हैं, वे तो लेट हो ही रहे हैं, यहां से जो जहाज रवाना होंगे वे भी विलंबित होंगे।
कानपुर में पनकी इनलैड कंटेनर डिपो, जूही रेलवे यार्ड इनलैंड कंटेनर डिपो, चकेरी इनलैंड कंटेनर डिपो हैं। इन तीनों से कानपुर, उन्नाव समेत 18 जिलों से हर माह करीब 1,700 कंटेनर जाते हैं। इसके लिए एक के बाद एक ऑर्डर लगे रहते हैं। इस समस्या की वजह से जो कंटेनर अपने गंतव्य पर जितने दिन देर से पहुंचेगा, वह वहां से उतने ही दिन देरी से लौटेगा। इसलिए अगले ऑर्डर को भेजने पर फिर असर पड़ेगा।
इसका प्रभाव कंटेनर की उपलब्धता पर भी पड़ेगा। यह चक्र काफी लंबे समय तक चलेगा क्योंकि दुनिया का 30 फीसद कारोबार इसी स्वेज नहर के रास्ते से होता है। कुछ दिन पहले भी कंटेनर की कमी की समस्या पैदा हुई थी। यूरोप और अमेरिका के लिए खासतौर पर लेदर गुड्स, फुटवियर, प्लास्टिक बैग, सैडलरी, इंजीनियरिंग गुड्स कानपुर से जाते हैं। वहीं यूरोप से केमिकल और मशीनरी का सामान कानपुर आता है। निर्यात के लिए कानपुर से मुंबई या गुजरात पोर्ट पहले भेजा जाता है। उसके बाद स्वेज नहर के रास्ते माल यूरोप या अमेरिका भेजा जाता है।
फायदेमंद है रास्ता, न खुला तो बढ़ेगी महंगाई
193 किमी लंबी और 205 मीटर चौड़ी इस नहर से 10 हजार किमी की दूरी की बचत होती है। ऐसा न हो तो पूरा अफ्रीका महाद्वीप घूमकर यूरोप और अमेरिका जाना पड़ेगा। कंटेनर डिपो के अधिकारियों के मुताबिक अगर समय पर जाम न खुला तो दूसरे रास्ते को माल भेजने के लिए अपनाना पड़ेगा और तब भाड़ा बढ़ जाएगा जिसका असर कीमतों पर पड़ेगा।
शहर में यह स्थिति
03 कंटेनर यार्ड हैैं।
1700 कंटेनर हर महीने जाते हैैं।
18 जिलों का माल भेजा जाता है।
ये हैं भाड़े की दर
- 20 फीट कंटेनर का यूरोप के लिए भाड़ा 3,000 डॉलर।
- 40 फीट कंटेनर का यूरोप के लिए भाड़ा 4,200 डॉलर।
- 20 फीट कंटेनर का अमेरिका के लिए भाड़ा 4,500 डॉलर।
- 40 फीट कंटेनर का अमेरिका के लिए भाड़ा 6,500 डॉलर। इस माह के अंत तक हालात ठीक न हुए तो काफी समस्या होगी। इससे कंटेनर का संकट पैदा हो जाएगा। भाड़ा बढ़ जाएगा। विदेश में किए गए ऑर्डर निरस्त किए जा सकते हैं। -विनोद मेहरोत्रा, प्रबंध निदेशक, चकेरी इनलैंड कंटेनर डिपो।