प्राचीन ईरानी कला को सहेजे इस पत्थर के मंदिर को पहनाई शीशे की पोशाक, मीनाकारी से किया श्रृंगार

जैन समाज की आस्था का केंद्र और शहर का गौरव कांच का मंदिर गुरुवार को 150 साल का हो जाएगा। प्राचीन ईरानी और राजस्थानी वास्तु-स्थापत्य कला को सहेजे इस मंदिर की आभा देखते ही बनती है। मंगलवार से यहां तीन दिवसीय उत्सव शुरू हुआ

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 24 Feb 2021 09:46 AM (IST) Updated:Wed, 24 Feb 2021 09:46 AM (IST)
प्राचीन ईरानी कला को सहेजे इस पत्थर के मंदिर को पहनाई शीशे की पोशाक, मीनाकारी से किया श्रृंगार
25 फरवरी को ध्वजारोहण, सत्रहभेदी पूजा का आयोजन किया जाएगा।

अंकुश शुक्ल, कानपुर। माहेश्वरी मोहाल कमला टावर स्थित श्री धर्मनाथ स्वामी जैन श्वेतांबर मंदिर को कांच का मंदिर..भीतर कदम रखते ही जैसे सबकुछ ङिालमिला उठता है। कांच पर रंगीन व खूबसूरत मीनाकारी के साथ तींर्थकरों के निर्वाण की कहानी कहता यह डेढ़ सौ साल से श्रद्धालुओं और पर्यटकों का मन मोह रहा है। बेशक यह जैन मंदिर है लेकिन इसकी खूबसूरती व स्थापत्य कला समुदाय विशेष से ऊपर उठकर है।

कानपुर के इस ख्यात मंदिर का निर्माण कोलकाता के बड़ा बाजार स्थित मंदिर की तर्ज पर लाला रघुनाथप्रसाद भंडारी ने करवाया था। वह मूल रूप से रूपनगढ़ (मारवाड़) के निवासी थे और कानपुर में बस गए थे। वह बहुत प्रतिष्ठित व्यापारी थे। धाíमक प्रवृत्ति के होने के चलते उन्होंने सम्मेद शिखर तीर्थ और लखनऊ में तीन जैन मंदिरों का निर्माण कराया। कानपुर में मंदिर का निर्माण शुभ संवत 1928 माह सुधी 13 गुरुवार को हुआ था। वर्तमान में संवत 2077 चल रहा है। यहां कल्याणसागर जी महाराज के सानिध्य में 1008 धर्मनाथ स्वामी जी और 1008 सुपाश्र्वनाथ स्वामी जी की मूíतयों की स्थापना कराई गई।

पहले पत्थर का बना था मंदिर: यह मंदिर पहले पत्थर का बना हुआ था। लाला रघुनाथ प्रसाद के बाद उनके पुत्र संतोषचंद्र भंडारी ने मंदिर को रंगीन शीशा और मीनाकारी से भव्य स्वरूप दिलाया, जो कलात्मक दृष्टि से उत्तर भारत का एक दर्शनीय स्थल बन गया। कांच के टुकड़ों को तराश उस पर चित्रकारी की गई। यहां जैन समाज के देवी-देवताओं क्षेत्रपाल, दादा गुरुदेव, 108 जिनकुशल सुरिश्वर के चित्र व पादुकाएं स्थापित हैं। मंदिर के बीचो-बीच एक बगीचा भी है जो इसे रमणीय रूप देता है। शाम को रोशनी पड़ते ही पूरा मंदिर जगमगा उठता है। मंदिर समिति के अध्यक्ष संजय भंडारी बताते हैं कि कांच से बने इस मंदिर की बेजोड़ कारीगरी है और बरबस ही लोगों को आकर्षति करती है। कांच की दीवारों पर राजस्थानी व ईरानी शैली का अद्भुत कला कौशल दिखता है। कांच की दीवारों पर बिहार के सम्मेद शिखर जहां 24 में से 20 तीर्थंकर का निर्वाण हुआ था की कृति उकेरी गई है।

देश ही नहीं विदेश से भी आते हैं: पर्यटक मंदिर समिति के वरिष्ठ सदस्य दलपत जैन ने बताया कि मंदिर में कोलकाता, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के भक्त दर्शन संग कलात्मकता देखने आते हैं। इसके अलावा इटली और अन्य देशों से भी लोग मंदिर देखने आए और खूबसूरती देखते ही रह गए।

इंदौर में भी है कांच मंदिर: इंदौर में भी जैन समुदाय का कांच मंदिर है। राजवाड़ा क्षेत्र में बने इस मंदिर को इंदौर के नगरसेठ सेठ हुकमचंद ने बनवाया था। यह राजस्थान के आलम किले की नक्काशी से प्रेरित है।

महिलाओं ने लगाई एक-दूसरे को मेहंदी, भजन पर नृत्य: मंदिर परिसर में वात्सल्य व महिला सांझी का आयोजन हुआ। इसमें महिलाओं ने एक-दूसरे को मेहंदी लगाई। भजनों पर महिलाओं ने नृत्य कर वातावरण को भक्तिमय बना दिया। भक्त हिना जैन ने बताया कि मंदिर में यह उत्सव बिल्कुल शादी विवाह की तर्ज पर मनाया गया।

18 प्रकार के सिद्ध जल से भगवान धर्मनाथ स्वामी का होगा पूजन: मंदिर समिति अध्यक्ष ने बताया कि मंदिर के तीन दिवसीय 150 साला उत्सव की शुरुआत मंगलवार को हुई है। पहले दिन मंदिर परिसर में सुबह 18 प्रकार के सिद्ध जल से भगवान धर्मनाथ स्वामी व सुपाश्र्वनाथ स्वामी का पूजन अभिषेक किया गया। राजस्थान सिरोही से आए शासन रत्न मनोज कुमार बाबूमलजी हरण ने विधि-विधान से वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच जलाभिषेक किया। गुलाबी साड़ी धारण किए महिलाओं ने प्रभु के दर्शन कर सुख-समृद्धि की कामना की। भक्तों ने भगवान श्री को चूरा का भोग अपत किया। उसे प्रसाद स्वरूप वितरित किया गया।

अब बुधवार को गांवसाक्षी, महिला संगीत, भक्ति संध्या के साथ ही श्री सिद्ध चक्र पूजन, मंदिर का इतिहास दर्शन तथा 108 दीपों की आरती होगी। 25 फरवरी को ध्वजारोहण, सत्रहभेदी पूजा का आयोजन किया जाएगा।

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