Kanpur Dakhil Daftar: घूस की बात पर साहब का मूड खराब.., ज्यादा होगा तो त्यागपत्र दे दूंगा

कानपुर शहर के प्रशासनिक कार्यालयों की हलचल है दाखिल दफ्तर। मनपंसद भूखंड लेना है आपकी कृपा हो जाएगी भाई कोई साधु महात्मा तो हूं नहीं जो कृपा की बारिश करूं। अधिकारी बोले- सड़क के गड्ढों की तरह जिंदगी भी हो गई है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Tue, 16 Nov 2021 10:49 AM (IST) Updated:Tue, 16 Nov 2021 10:49 AM (IST)
Kanpur Dakhil Daftar: घूस की बात पर साहब का मूड खराब.., ज्यादा होगा तो त्यागपत्र दे दूंगा
प्रशासनिक कार्यालयों की हलचल दाखिल दफ्तर कालम।

कानपुर, दिग्विजय सिंह। शहर में सरकारी विभागों में चर्चाओं का बाजार गर्म रहता है लेकिन सुर्खियां नहीं बन पाती हैं। प्रशासनिक अफसरों और कर्मचारियों के बीच बनी रहने वाली ऐसी ही चर्चाओं को चुटीले अंदाज में लेकर आया है दाखिल दफ्तर कालम...।

घूस की बात पर साहब का मूड खराब

भूखंडों का आवंटन करने वाले विभाग के एक साहब से एक कारोबारी ने भूमि आवंटन के लिए आग्रह किया। अधिकारी ने उन्हें आवेदन की प्रक्रिया बताई और यह भी समझा दिया कि किस तरीके से भूखंड आवंटित हो जाएगा। कारोबारी ने कहा मनपंसद भूखंड लेना है आपकी कृपा हो जाएगी तो काम बन जाएगा। अधिकारी ने कहा भाई कोई साधु महात्मा तो हूं नहीं जो कृपा की बारिश करूं। आप योग्य होंगे तो संबंधित अधिकारी भूखंड दे देंगे। कारोबारी ने कहा बात कर लें जो देना होगा उन्हें अलग से दे दूंगा। इतना सुनते ही अधिकारी महोदय चिढ़ गए और बोले कमरे से बाहर जाएं और जिन्हें घूस देनी हो दें, लेकिन मुझसे घूस की बात न करें। कारोबारी समझ गए कि साहब का मूड खराब हो गया तो उन्होंने बात संभालना चाही, लेकिन मामला बना नहीं। कारोबारी ने कहा मंत्री जी मेरे खास हैं अधिकारी बोले तो क्या करूं।

ज्यादा होगा तो त्यागपत्र दे दूंगा

शहर से लेकर गांव तक सड़कों का निर्माण कराने वाले विभाग के एक अधिकारी को उनके बड़े साहब ने पैचवर्क न होने पर फटकार लगाई। जब साहब उन्हें फोन पर डांट रहे थे तो उस समय उनके कक्ष में कई ठेकेदार बैठे थे। साहब के चेहरे के हाव भाव से सभी समझ गए कि उन्हें डांट पड़ रही है। फोन कटा तो एक ठेकेदार ने उनसे मायूसी का कारण पूछा। इस पर अधिकारी महोदय झल्ला गए, बोले यार सड़कों के गड्ढों की तरह ही अपनी जिंदगी भी हो गई है। जो देखो वही डांट देता है। कभी बड़े साहब नाराज होते हैं तो कभी विधायक जी का फोन आ जाता है। न जाने कौन से कर्म थे कि इंजीनियर बन गया। ठेकेदार कुछ कहते इससे पहले ही साहब ने कहा तुम लोग भी अब जाओ मन खट्टा हो गया। थोड़ा चैन से रहने दो, ज्यादा होगा तो त्यागपत्र दे दूंगा।

साहब! चाचा विधायक हैं

गांवों में विकास कराने वाले एक विभाग के कर्मचारी को बड़े साहब ने खूब डांट लगाई। कहा काम पूरा करके लाओ नहीं तो बोरिया बिस्तर बांध लो। कर्मचारी को लगा कि साहब ने उसकी सार्वजनिक बेइज्जती कर दी। थोड़ी देर चुप रहा तो साहब ने कहा यार लगता है कि तुम्हारे विरुद्ध कार्रवाई करनी ही पड़ेगी। काम करने की बात आई है तो सिर झुकाकर खड़े हो गए हो। साहब इससे पहले कुछ आगे बोलते कर्मचारी ने पहले ही कह दिया। साहब! मेरे चाचा विधायक हैं। कार्रवाई तो नहीं होगी, लेकिन मैं आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। उसकी इस बात से साहब का पारा तो चढ़ गया, लेकिन कुछ नहीं बोले पर शाम को विधायक का उनके पास फोन जरूर आ गया और उन्हें भतीजे को परेशान न करने की नसीहत जरूर दे डाली। अब साहब परेशान हैं क्योंकि फोन के बाद कर्मचारी के भाव काफी बढ़ गए हैं।

अब नौकरी नहीं राजनीति करुंगा

उद्योगों की स्थापना कराने वाले एक विभाग में तैनात साहब का सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधियों से कुछ ज्यादा ही लगाव है। वे नौकरी कम राजनीति में ज्यादा रुचि लेते हैं। उन्हीं के साथ राजनीति के दांव-पेच भी सीख रहे हैं। उन्हें समय-समय पर सलाह भी देते हैं। साहब के पास विपक्षी पार्टी के एक विधायक जी का फोन आया। उन्होंने एक काम की सिफारिश की। साहब ने कहा कि नियम के अनुसार जो भी होगा, कर दूंगा। विधायक जी ने कुछ रौब दिखाया तो साहब भी उखड़ गए। विधायक ने अवमानना की चेतावनी दी तो साहब भी क्रोधित हो गए। उन्होंने विधायक से कहा देख लीजिए मैं भी अब नौकरी छोड़ राजनीति करने जा रहा हूं। हो सकता है कि हमारा आपका सामना सदन में ही हो। ऐसा न करें कि हाथ तो दूर नजरें भी हम न मिला सकें। इतना सुन साहब के पास बैठे लोग ठहाके लगाने लगे।

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