Kanpur Dakhil Daftar Column: भइया एसडीएम बनवा दो, जाइए किसने रोका है आपको

कानपुर शहर में सरकारी दफ्तरों में चर्चा का विषय बनने वाली हलचल को लोगों तक पहुंचाता है दाखिल दफ्तर कॉलम। नर्वल तहसील के रिश्वत प्रकरण में एसडीएम का नाम आया तो कइयों की निगाहें कुर्सी पर टिक गईं।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Tue, 16 Feb 2021 12:26 PM (IST) Updated:Tue, 16 Feb 2021 12:26 PM (IST)
Kanpur Dakhil Daftar Column: भइया एसडीएम बनवा दो, जाइए किसने रोका है आपको
कानपुर में हर सप्ताह का कॉलम है दाखिल दफ्तर।

कानपुर, [दिग्विजय सिंह]। कानपुर महानगर में कुछ घटनाएं और वाक्ये सरकारी दफ्तरों में ही दबकर रह जाते हैं और सुर्खियां नहीं बन पाते हैं। हालांकि ये वाक्ये दफ्तर के अंदर खासा चर्चा का विषय बने रहे हैं। ऐसे ही चर्चा को खास बनाता है दाखिल दफ्तर कॉलम, आइए देखते हुए इस सप्ताह सरकारी दफ्तरों में क्या हलचल देखी गई...।

काम क्या करें, सजा भोग रहे

औद्योगिक विकास के कार्य में लगे उप्र राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण में कुछ अफसर दूसरे प्राधिकरणों से तैनात किए गए हैं। इनमें से एक अफसर बड़े पद पर तैनात हैं, लेकिन यह साहब निराश हैं। पहले जहां तैनात थे, वो पोस्ट मलाईदार थी। अब जहां तैनाती मिली है, वहां चंद फाइलें ही उनके सामने आती हैं। न गाड़ी है न कोई खास काम। ऐसे में साहब दिन भर धार्मिक किताबें पढ़ते हैं और जाति धर्म की बातें करते हैं।

अगर कोई अपनी जाति का आ गया तो यह भी बताने से नहीं चूकते कि उनके साथ अन्याय हो रहा है। पिछले दिनों एक उद्यमी साहब के पास आया और काम के लिए बोला तो साहब बोले- देखो भाई सजा के तौर पर तैनाती मिली है यहां कोई काम है नहीं । जो है वह अपनी मर्जी से करूंगा। उद्यमी ने कहा साहब सजा मिलती तो भदोही विकास प्राधिकरण में होते।

भइया, एसडीएम बनवा दो

पिछले दिनों नर्वल तहसील में वायरल हुआ घूस मांगने संबंधी ऑडियो न सिर्फ कानूनगो के ही गले का फांस नहीं बना, बल्कि एसडीएम, उनके पति और वहां तहसीलदार के लिए भी मुश्किल खड़ी कर गया। जैसे ही ऑडियो वायरल हुआ, एक मजिस्ट्रेट साहब को लगा कि अब तो वह एसडीएम बन ही जाएंगे। उन्हें शहर के एक जनप्रतिनिधि को फोन किया और बोले- भइया, बहुत दिन एसीएम रह लिया, अब तो एसडीएम बनवा दो। जनप्रतिनिधि ने कहा, देखो यार डीएम से पैरवी कराओगे तो नुकसान हो जाएगा।

कुछ दिन और समय काट लो। साहब निराश हो गए और दूसरे दिन जब एसीएम तीन को एसडीएम नर्वल बनाया गया तो फिर जनप्रतिनिधि महोदय को फोन कर दिया और बोले- देख लेना भइया, अब वहां का बेड़ा गर्क हो जाएगा। जनप्रतिनिधि ने कहा, यार अपने से का मतलब। मंत्री जी का क्षेत्र है, वहां की जनता परेशान होगी तो वह निपट लेंगे।

जाइए, किसने रोका है आपको

कृषि विशेषज्ञ बनाने वाला विश्वविद्यालय इन दिनों तनाव की स्थिति से गुजर रहा है। कोरोना काल के बाद इसके द्वार खुले तो अव्यवस्था का ऐसा मकडज़ाल सामने आया कि सबकी पोल खोलकर रख दी। विश्वविद्यालय में पढऩे वाले भावी कृषि विशेषज्ञों को यह बात नागवार गुजरी कि उनके आशियाने इतने खराब कैसे हो गए।

उन्होंने बड़े साहब के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। बड़े साहब तो नहीं थे, इसलिए छोटे वाले बड़े साहब ने मामला संभालने का प्रयास किया। बोले, हमारे पास दिल्ली से फोन आया है कि स्थिति सुधार ली जाएगी, लेकिन भावी कृषि विशेषज्ञ भला कहां सुनने वाले थे। जब उनकी बात को अनसुना किया जाने लगा तो छोटे साहब को बोलना पड़ा कि अगर मेरी नहीं सुननी है तो हम चले घर। उनका इतना कहना था कि भावी कृषि विशेषज्ञ ने कह दिया कि जाइए, किसने रोका है आपको। साहब को भी यकीन नहीं था कि ऐसा बोलेंगे।

गेहूं के साथ घुन पिस गया

बिटिया की शादी के नाम पर फर्जीवाड़ा तो कभी कागज पर विधवा बनकर पारिवारिक लाभ योजना का लाभ लेने का खेल। यह तहसीलों में खूब चलता है। पिछले साल यह खेल पकड़ा गया तो मुकदमा भी हुआ और निलंबन भी, लेकिन इससे किसी ने सबक नहीं लिया। चंद रुपये के लिए फिर दो लेखपालों और एक महिला लिपिक ने अपना ईमान बेच दिया। मामला सामने आया तो फिर कार्रवाई होने लगी।

इससे सदर तहसील में खलबली मच गई। दोषी होने के बाद भी लेखपाल शान से तहसील में टहल रहे थे। महिला लिपिक भी काम कर रही थी। तभी दूसरी महिला ने कहा, अरे इतिहास से सबक ले लेती। आखिर चंद रुपयों को लेकर इतना बड़ा गड़बड़झाला क्यों कर दिया। लिपिक ने कोई जवाब नहीं दिया तो वहां मौजूद अन्य लिपिक ठहाके लगाने लगे और बोले- अरे मैडम का दोष नहीं था, लेकिन गेहूं के साथ घुन भी पिसा है।

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