Kanpur Dakhil Daftar Column: हम अधिकारी नहीं बाबू जैसे हैं.., साहब खुश और वो परेशान हैं
कानपुर महानगर में प्रशासनिक महकमे की हलचल लेकर आता है दाखिल दफ्तर कालम। विकास विभाग से जुड़े एक अफसर को विकास कार्यों में जांच करने में खूब मजा आता है और कमियां भी पकड़ते हैं। विकास कराने वाले एक विभाग के साहब असमंजस में हैं।
कानपुर, [दिग्विजय सिंह]। महानगर में प्रशासनिक महकमों की हलचल जो सुर्खियां नहीं बनती हैं, उन्हें चुटीले अंदाज में लेकर आता है दाखिल दफ्तर कालम। आइए देखते हैं बीते सप्ताह प्रशासनिक विभागों में क्या हलचल बनी रही...।
साहब खुश और वो परेशान हैं
विकास विभाग से जुड़े एक अफसर को विकास कार्यों में जांच करने में खूब मजा आता है। साहब जांच करते हैं तो कमियां भी पकड़ते हैं। यही वजह है कि वे इस ताक में रहते हैं कि कब कोई शिकायत हो और जांच कमेटी का गठन हो। साहब द्वारा की गई कुछ जांच में कार्रवाई भी हुई है तो कुछ में साहब ने खुद ही लीपापोती भी कर दी। पिछले दिनों कुछ लोगों ने साहब से मजाक में ही कहा कि क्या सर आजकल तो आप एकदम खाली बैठे हैं। कोई जांच ही शुरू कर दीजिए कम से कम आपको काम मिल जाएगा और अब थोड़ा व्यस्त भी हो जाएंगे। साहब ने कहा यार शिकायत कराओ जांच कमेटी तो गठित हो ही जाएगी। शिकायत भी हो गई और साहब की अध्यक्षता में कमेटी गठित हो गई। इससे साहब खुश हो गए पर जिनके विरुद्ध जांच शुरू हुई वे परेशान हैं।
जांच पर असमंजस में साहब
विकास कराने वाले एक विभाग के साहब असमंजस में हैं। उन्हें डीएम से बेटियों के लिए चलाई जा रही एक योजना की जांच का पत्र मिल गया। साहब जांच करने पहुंचे तो लाभार्थी को देखकर भौचक रह गए, क्योंकि जिस लाभार्थी को एसडीएम और खंड विकास अधिकारी की ओर से पात्र बताया गया था, वह तो पूरी तरह से अपात्र निकले। ऐसे एक दो नहीं, बल्कि तीन-तीन लाभार्थी अपात्र मिल गए। अब साहब समझ नहीं पा रहे हैं कि वे क्या करें। रिपोर्ट देते हैं तो उनके अपने ही खास लोग नप जाएंगे और नहीं देते हैं तो अपात्रों को योजना का लाभ मिल जाएगा। ङ्क्षचता में डूबे साहब से उनके मित्र ने मायूसी का कारण पूछा तो बोले यह जांच रिपोर्ट गले की फांस बन गई है। मित्र ने कहा कि योजना बचानी है तो सहयोगी अधिकारी का मोह छोड़ें और रिपोर्ट दे दें, जो दोषी है दंड भुगतेगा।
हम अधिकारी नहीं बाबू जैसे हैं
हाल ही में एक विभाग में दो दर्जन से अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति हुई है। विभाग के विभागाध्यक्ष के पास उनमें से एक कर्मचारी को उसकी मनमाफिक जगह पर तैनाती के लिए एक अधिकारी और उनके सहयोगी ने आग्रह किया। विभागाध्यक्ष ने कहा पहले तो हम विभाग के राजा हुआ करते थे, अब तो हमारी हैसियत मंत्री जैसी भी नहीं रही। सब कुछ शासन के हाथ में है। हमारी भूमिका बाबू जैसी हो गई है। हम न किसी को कोई लाभ दे सकते हैं और न ही अब उससे कोई लाभ लेने की हैसियत में हैं। अधिकारी ने पूछा, आखिर ऐसा क्यों कहते हैं। साहब बोले क्या करूं, अब सब कुछ कंप्यूटराइज्ड हो गया। सिर्फ फरमान का पालन करने के अलावा कुछ नहीं रहा। इससे तो अच्छा किसी और विभाग में होता तो कम से कम राजा की तरह नौकरी करता। उनकी बात सुन सब मुस्कराए तो साहब झेंप गए।
तबादले पर साहब बने मजाक
एक अफसर महोदय अपने संवर्ग के अफसरों से कहते थे कि बुंदेलखंड में नौकरी करो और वहां के पहाड़ों संग प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लो। अगर वहां के जिलों में तबादला न हो रहा हो तो भी करा लो। मैं तो चाहता हूं कि मुझे वहां भेज दिया जाए, लेकिन मुराद पूरी नहीं हो रही है। एक अधिकारी ने ऐसा कहा देख लो यार जुबान पर कब सरस्वती बैठ जाएं और तुम्हारी कामना पूरी हो जाए। तबादला बुंदेलखंड में होगा तो बहुत पछताओगे। साहब बोले नहीं पूरे शौक से जाऊंगा। अचानक साहब का तबादला बुंदेलखंड के ही एक जिले में हो गया। अब परेशान हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि तबादला कैसे रुकेगा। ऊपर से कार्यभार ग्रहण करने का शासन स्तर से दबाव भी है। जिनको कभी वे प्रेरित करते थे, अब वही अफसर उनका मजाक उड़ा रहे हैं और ड्यूटी ज्वाइन करने को प्रेरित कर रहे हैं।