Kanpur Dakhil Daftar Column: साहब कितने शातिर हैं, इतनी फाइलें कौन पढ़े...

कानपुर शहर में प्रशासनिक अमले की हलचल लेकर आया है दाखिल दफ्तर कॉलम । एक अधिकारी के डिजिटल सिग्नेचर का दुरुपयोग एक महिला लिपिक कर रही थी। वहीं औद्योगिक विकास की तेजी में कुछ अफसर परेशान हैं ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 10:52 AM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 10:52 AM (IST)
Kanpur Dakhil Daftar Column: साहब कितने शातिर हैं, इतनी फाइलें कौन पढ़े...
कानपुर की प्रशासनिक हलचल है दाखिल दफ्तर कॉलम।

कानपुर, [दिग्विजय]। कानपुर शहर में प्रशासिनक अमले और विभिन्न विभागों में कुछ खास चर्चाएं सुर्खियां नहीं बन पाती हैं। ऐसी ही चर्चाओं को चुटीले अंदाज में लेकर आया है दाखिल दफ्तर कॉलम...। आइए, पढ़ते हैं बीते एक सप्ताह की प्रमुख चर्चाएं क्या रहीं।

अच्छे दिन फिर आएंगे

राजस्व विभाग में कुछ अफसर आंख मूंदकर हर फाइल पर हस्ताक्षर कर देते हैं। वे अपने डिजिटल सिग्नेचर की कुंजी भी दूसरे को दे देते हैं। पिछले दिनों जब दो मामलों में फर्जीवाड़ा पकड़ में आया तो यह बात सामने आई कि साहब के हस्ताक्षर तो एक लिपिक कर रही थी। इस फर्जीवाड़े में फंसे कुछ कर्मचारी परेशान हुए हैं, क्योंकि अब बड़े साहब भी फूंक- फूंककर कदम रख रहे हैं। दूसरे शादी अनुदान और पारिवारिक लाभ के आवेदन भी नहीं आ रहे हैं। इस वजह से इन कर्मचारियों की कमाई का रास्ता फिलहाल बंद है। ऐसे में जो वे दिन भर में चार से छह हजार रुपये कमा लेते थे, वह भी नहीं मिल रहे। दो दिन पूर्व कुछ कर्मचारी बैठे लूडो खेल रहे थे। उनके सीनियर ने पूछा क्या कर रहे हो। बोले, साहब दिन काट रहे हैं। सीनियर ने कहा, ङ्क्षचता न करो अच्छे दिन फिर आएंगे।

अधीनस्थ की उलटबांसी

प्रदेश की आर्थिक रीढ़ मजबूत करने वाले विभाग के एक साहब खुद अधीनस्थ की उलटबांसी का शिकार हो गए हैं। पहले वह बिना काम के थे। उन्हें सजा के तौर पर मूल विभाग से यहां लाया गया था। साहब को लगा था कि बड़े विभाग में जा रहे हैं, कुछ काम मिलेगा, लेकिन साल भर बेकाम रहे। अब काम मिल गया तो परेशान हो गए, क्योंकि फाइलें बहुत उलझी हुई होती हैं। ऐसे में जैसे ही कोई अफसर दफ्तर में आता है साहब उसे प्रवचन सुनाने में व्यस्त हो जाते हैं। कोई प्रभावशाली अगर आ गया तो उससे मूल विभाग में फिर से तैनाती दिलाने की गुहार भी लगाते हैं, लेकिन उनकी यह गुहार काम नहीं आ रही है। इससे साहब अक्सर ही झुंझला जाते हैं। ऐसे में प्रवचन देने वाले साहब को उनके ही एक अधीनस्थ ने उलटा प्रवचन सुना दिया और कहा साहब धीरज रखें सब अच्छा होगा।

इतनी फाइलें पढ़े कौन

औद्योगिक विकास के काम में लगे एक प्राधिकरण में दूसरे प्राधिकरणों से आए कुछ अफसर परेशान हैं। अब तक जहां थे, वहां जवाबदेही भी कम थी और काम भी। अब यहां काम भी ज्यादा है और राजनीति भी। यहां गलती हुई तो साथ के अफसर ही बड़े साहब तक शिकायत पहुंचा देते हैं, जबकि जहां से आए हैं, वहां ऐसा नहीं था। इस वजह से ये अफसर काम करने से डरते हैं। बड़े साहब को हर काम का निर्धारित समय में रिजल्ट चाहिए। काम नहीं हुआ तो कार्रवाई के साथ डांट भी मिलनी है। इससे ये अफसर और परेशान हैं। एक साहब अपने कमरे में सिर पर हाथ धरे बैठे थे। तभी मिलने आए एक व्यक्ति ने उनसे मायूसी का कारण पूछ लिया। साहब बोले यार प्राधिकरण के नियम पढ़े कौन, बिना पढ़े काम कर नहीं सकते। काम न करो तो डांट मिलती है। इतना काम सोचा भी नहीं था।

साहब कितने शातिर हैं

निर्माण कार्यों से जुड़े एक विभाग के बड़े साहब को हर कर्मचारी में खोट नजर आती है। खुद को राजा हरिश्चंद्र की तरह ईमानदार और सत्यवादी बताने वाले साहब हर किसी को ईमानदारी का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन ठेकेदार अगर घर में मिलने न आएं तो उनकी बेचैनी बढ़ जाती है। साहब के काम में कोई दखल न दे और उनकी कुर्सी बरकरार रहे, इसलिए वे अपने जूनियर अफसरों को अक्सर लड़ाते भी रहते हैं। एक से दूसरे की बुराई और दूसरे से तीसरे की बुराई उनकी आदत में है। दो अधिकारियों के बीच किसी ठेकेदार को लेकर कहासुनी हुई तो वे साहब के यहां शिकायत लेकर पहुंच गए। आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ तो पता चला कि झगड़े के मूल में साहब ही हैं। सच्चाई सामने आई तो एक अधिकारी ने दूसरे से कहा तुम हमसे लड़ रहे हो तुम्हें नहीं पता कि हमारे साहब कितने शातिर हैं।

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