लद्दाख में कन्नौज का जवान हुआ शहीद, चीन से तनाव बढ़ने पर सियाचिन से भेजा गया था

सीओ ने शहीद के छोटे भाई को मोबाइल पर दी सूचना एसडीएम और पुलिस ने स्वजन को दी सांत्वना आज आएगा पार्थिव शरीर दो दिन पहले पिता ने वीडियो कॉल पर उनसे बात की थीबताया कि देश की सेवा में शहीद बेटे को खोने का गम नहीं बल्कि गर्व है

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Wed, 23 Sep 2020 11:26 PM (IST) Updated:Wed, 23 Sep 2020 11:26 PM (IST)
लद्दाख में कन्नौज का जवान हुआ शहीद, चीन से तनाव बढ़ने पर सियाचिन से भेजा गया था
भारत-चीन सीमा पर लद्दाख में तैनात बलिदान हुए जवान गोपाल बाबू शुक्ला

कन्नौज, जेएनएन। भारत-चीन सीमा पर लद्दाख में तैनात कन्नौज के जवान बलिदान हो गए। स्वजन के साथ गांव के लोग भी शोक में डूब गए। वहां वह कैसे बलिदान हुए, इसकी जानकारी सेना ने नहीं दी लेकिन स्वजन का कहना है कि साथियों से पता चला है कि कम तापमान की वजह से उन्हें दिक्कत हुई थी। गुरुवार सुबह उनका पार्थिव शरीर यहां आने की जानकारी दी गई है। 

ठठिया थाना क्षेत्र के सरसई ग्राम पंचायत के मवइया गांव निवासी रामरतन शुक्ला के 30 वर्षीय पुत्र गोपालबाबू भारतीय सेना में लांसनायक थे। वर्तमान में उनकी तैनाती भारत-चीन सीमा पर लद्दाख में थी। बुधवार सुबह गोपालबाबू के छोटे भाई हरिओम के मोबाइल फोन पर कमांडिंग ऑफिसर ने घटना की जानकारी दी। इससे जवान के स्वजन रोने-बिलखने लगे। हरिओम ने बताया कि मोबाइल पर सीओ ने सिर्फ मौत होने की सूचना दी। मौत कैसे हुई, यह स्पष्ट नहीं किया। अन्य स्वजन ने तापमान की वजह से दिक्कत होने की बात कही। एसडीएम तिर्वा जयकरन, ठठिया थानाध्यक्ष राजकुमार सिंह जवान के स्वजन को सांत्वना दी।

50 लाख रुपये देने की घोषणा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शहीद जवान गोपालबाबू के परिवार को 50 लाख रुपये आर्थिक मदद व आश्रित को नौकरी देने की घोषणा की है। इसके साथ ही उन्होंने जिले की एक सड़क को शहीद के नाम से करने की घोषणा की है।

तीन साल पहले हुई थी शादी

गोपालबाबू का विवाह तीन साल पहले औरैया के फफूंद के गांव गदनपुर निवासी आरजू शुक्ला से हुआ था। उनकी एक वर्षीय बेटी अनमोल है। पिता रामरतन शुक्ला खेतीबाड़ी करते हैं जबकि मां पुष्पा गृहणी हैं। बड़े भाई  गोविंद शुक्ला उरई में शिक्षक हैं। छोटे भाई हरिओम घर पर रहते हैं।

चीन से तनाव बढ़ने पर भेजे गए थे सियाचिन

बलिदानी गोपालबाबू को सियाचिन से लद्दाख चीन से तनाव बढ़ने पर भेजा गया था। दो दिन पहले पिता रामरतन शुक्ल ने आखिरी बार वीडियो कॉल पर उनसे बात की थी। मवईया गांव निवासी रामरतन शुक्ला ने बताया कि गोपाल की सेना में भर्ती होने की तमन्ना बचपन से थी। बीते एक वर्ष से वह घर नहीं आए थे। इस बार दीपावली पर आने की उम्मीद थी। मोबाइल पर रोजाना बातचीत होती थी। दो दिन पहले गोपाल ने वीडियो कॉल से बात की थी। उस समय वह बर्फ पर अपनी टुकड़ी के साथ गश्त कर रहे थे। वीडियो के जरिए गोपाल ने वहां का क्षेत्र दिखाया था। पिता ने बताया कि देश की सेवा में शहीद बेटे को खोने का गम नहीं, बल्कि गर्व है। इसके बाद उनकी आंखें भर आई। स्वजन को सांत्वना देते हुए वह रो पड़े। उन्होंने बताया कि सात माह की ट्रेङ्क्षनग इजरायल में हुई थी। उसकी वीरता देख अफसरों ने सियाचिन से लद्दाख भेजा था। मां पुष्पा देवी और पत्नी आरजू का रो-रोकर बुरा हाल था।

दामाद पर है गर्व

गोपालबाबू के ससुर औरैया के फफूंद के गदनपुर गांव निवासी प्रमोद दुबे ने बताया कि अपने दामाद पर गर्व है। उनकी तैनाती 16 हजार फीट ऊंचाई पर लद्दाख में थी। इससे पूर्व 24 हजार फीट ऊंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर पर तोपखाने में थे।  

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