गंगा में आत्मशुद्धि का तत्व : जितेंद्रानंद सरस्वती

अखिल भारतीय संत समिति व गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने गंगा की वैज्ञानिक, सामाजिक और आथिक अवधारणा रखी

By JagranEdited By: Publish:Tue, 12 Jun 2018 03:27 PM (IST) Updated:Tue, 12 Jun 2018 03:27 PM (IST)
गंगा में आत्मशुद्धि का तत्व : जितेंद्रानंद सरस्वती
गंगा में आत्मशुद्धि का तत्व : जितेंद्रानंद सरस्वती

जागरण संवाददाता, कानपुर दक्षिण : गंगा महज एक नदी नहीं बल्कि एक महान संस्कृति है। यह पूरे विश्व के 10 प्रतिशत आराजी में रहने वाले लोगों को दाल-रोटी देती है। गंगा में करीब 280 नदियां मिलती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से गंगा में टी-4 बैक्टीरियोपॉज नामक तत्व पाया जाता है। इसे आत्मशुद्धि करने वाला तत्व कह सकते हैं। गंगा में मौजूद यह तत्व ही उसे पतित पावनी बनाता है। गंगा की यह वैज्ञानिक, सामाजिक और आथिक अवधारणा रखी अखिल भारतीय संत समिति व गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने। वह सोमवार को गंगा हरीतिमा अभियान के तहत किदवई नगर स्थित वानिकी प्रशिक्षण संस्थान में आयोजित मास्टर्स ट्रेनर प्रशिक्षण में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे।

उन्होंने कहा कि एलोपैथ की एंटीबायोटिक चिकित्सा प्रणाली में बाहर के संक्रमण को रोक दिया जाता है और शरीर अंदर का संक्रमण खुद दुरुस्त कर लेता है। गंगा में यही तत्व है, जिससे वह स्वत: शुद्ध हो जाती हैं। खास बात यह भी है कि हिमालय की गोद से निकलने वाली हर नदी में यह तत्व नहीं है। अगर ऐसा होता तो पंजाब की सभी नदियां पतित पावनी होतीं। गंगा राष्ट्रीय एकता की परिचायक हैं। हम गंगा को मां मानते हैं। उन्होंने कहा कि गंगा हरीतिमा अभियान ही गंगा को बचा सकता है।

स्वामी जी ने कहा कि जैसे हम विरासत संभालते हैं, वैसे ही गंगा को अविरल और स्वच्छ बनाना हमारा नैतिक दायित्व है। गंगा खत्म हुईं तो 60 करोड़ की आबादी प्रभावित होगी। उन्होंने गाजीपुर से आए किसानों से वनस्पति और हरियाली बढ़ाने की अपील की। मुख्य वन संरक्षक केआर यादव ने गंगा हरीतिमा अभियान के बारे में बताया। कहा, हर व्यक्ति कम से कम एक पौधा लगाए।

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