International Tiger Day: कानपुर सहेज रहा बाघों की वंश बेल, आदमखोर ने जन्मे सात शावक
बाघ संरक्षण में नंदन कानन वन और मैसूर के बाद कानपुर चिडिय़ाघर का नाम भी दर्ज हो गया है। यहां के मुफीद माहौल में बाघों का वंश बढ़ रहा है फर्रुखाबाद से लाए आदमखोर बाघ ने अबतक सात बच्चे पैदा किए हैं।
कानपुर, [जागरण स्पेशल]। वन्य जीवों के संरक्षण की सरकारी पहल को कानपुर प्राणि उद्यान बढ़ावा दे रहा है। यहां बाघों की वंश बेल सहेजने में बेहतरी आई है। बाघ बचाओ अभियान में इसका नाम देश में तीसरे नंबर पर है। यहां आठ बाघ हैं, जिससे 19 बाघ वाले नंदन कानन वन व 12 बाघों को संरक्षित करने वाले मैसूर चिडिय़ाघर के बाद इसका स्थान आता है।
प्राणि उद्यान का वातावरण बाघों के प्रजनन के लिए मुफीद है। 1974 में चिडिय़ाघर की स्थापना के बाद से अब तक 16 बाघ दूसरे चिडिय़ाघरों में यहां से भेजे जा चुके हैं। यहां पर बाघ संरक्षण के लिए नए-नए प्रयोग भी किए जा रहे हैं। इससे बाघों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है। पूर्व वन्य जीव चिकित्साधिकारी डा. आरके ङ्क्षसह ने डा. यूसी श्रीवास्तव के साथ मिलकर फर्रुखाबाद से लाए आदमखोर बाघ प्रशांत से ब्रीड कराने का प्रयास किया। यह पहला प्रयोग था, जो आदमखोर बाघ के साथ हुआ और सफल भी रहा।
वर्ष 2015 में पांच वर्ष की उम्र में आया प्रशांत को बाघिन के साथ रखा गया, जिसके बाद सात बच्चे पैदा हुए। इससे बाघों की नस्ल और मजबूत हो गई। उसके बच्चों में अमर गोरखपुर, एंथोनी व अंबिका जोधपुर, बादशाह रायपुर व बरखा दिल्ली के केंद्रीय चिडिय़ाघर को दिए गए हैं। अकबर की मृत्यु हो चुकी है, जबकि बादल कानपुर चिडिय़ाघर में अपने पिता प्रशांत के साथ है।
दूर हुई आदमखोर बाघ से कुनबा बढ़ाने की चिंता
डा. आरके ङ्क्षसह ने बताया कि नई नस्ल पर किए शोध सफल होने से यह ङ्क्षचता दूर हो गई कि आदमखोर बाघ से कुनबा नहीं बढ़ाया जा सकता है, बल्कि इससे बढ़ाया गया कुनबा ज्यादा ताकतवर होता है। कानपुर चिडिय़ाघर में बाघों की प्रजनन दर इतनी अच्छी रही कि विशाखापट्टनम, चंडीगढ़ समेत अन्य चिडिय़ाघर में यहां से बाघ भेजे गए हैं। यहां पर हाल ही में पैदा हुए बाघों में 2012 में दो, 2015 में चार और 2017 में तीन बाघों का जन्म हुआ। चंडीगढ़, विशाखापट्टनम व जूनागढ़ चिडिय़ाघर में भी यहां से बाघ भेजे गए हैं।
उत्तर भारत का सबसे बड़ा चिडिय़ाघर
सहायक निदेशक अरङ्क्षवद ङ्क्षसह ने बताया कि उत्तर भारत में 29 चिडिय़ाघरों में यह प्रजाति, क्षेत्रफल व वन्य जीवों की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा चिडिय़ाघर है। बरखा व अमर के जाने के बाद यहां आठ बाघ हैं। यह बाघ संरक्षण में देश में तीसरे नंबर पर है। यह चिडिय़ाघर 76.56 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जबकि 123 प्रजातियों के यहां 1550 वन्य जीव हैं। यहां पर 18 हेक्टेयर की झील है, जिसमें विचरण करते हुए प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं।