शुभम की जिंदगी में दो मां, सामाजिक समरसता की अजब मिसाल बनी जन्म और जीवन की कहानी

कानपुर देहात के रसूलाबाद के सजावारपुर जोत गांव के रहने वाले शुभम की शादी पर दो माताओं की जुगलबंदी सामाजिक समरसता का मिसाल बनेगी । हर कार्यक्रम में अनुसूचित जाति की धाय मां सभी रस्म निभाती हैं ।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 12:57 PM (IST) Updated:Wed, 16 Jun 2021 12:57 PM (IST)
शुभम की जिंदगी में दो मां, सामाजिक समरसता की अजब मिसाल बनी जन्म और जीवन की कहानी
शुभम की शादी में हो सामाजिक समरसता का नजारा।

कानपुर देहात, [अंकित त्रिपाठी]। रसूलाबाद तहसील के सजावारपुर जोत गांव में रहने वाले शुभम के जन्म की कहानी भले ही अजब-गजब हो लेकिन अब वो सामाजिक समरसता की मिसाल बन गई है। शुभम की जिंदगी में दो मां हैं, एक सवर्ण तो दूसरी अनुसूचित जाति की, दोनों ही मां अपने इस बेटे के शुभ कार्यक्रमों में सम्मलित होती आई हैं और अब जब शादी का समय आया है तो एक बार फिर सामाजिक समरसता का नजारा देखने को मिलने वाला है। यहां ऊंच-नीच और जात-पात के सभी भेदभाव मिटते नजर आते हैं। शुभम से जुड़े हर कामकाज में वो मां की तौर पर ही रस्में निभाती हैं।

दो बेटों की मौत पर तीसरे को बचाया

कानपुर देहात के रसूलाबाद सजावारपुर जोत निवासी जयचंद्र सिंह वैश के पिता बाबू सिंह पुलिस विभाग में थे आैर उनकी तैनाती प्रयागराज में थी। उस दौरान परिवार के सभी सदस्य प्रयागराज पुलिस लाइन में रहते थे। जयचंद्र की पत्नी रानी सिंह को पहला बेटा हुआ लेकिन सात माह में उसकी मृत्यु हो गई। दुर्भाग्य से दूसरे बेटे को भी वो नहीं बचा सके। इसपर रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने टोटका अपनाने की सलाह देते हुए अगली संतान का लालन पालन नहीं करने की बात कही। उनकी बातों को सुनकर दो बेटों की मृत्यु के बाद तीसरे को बचाने के लिए जयचंद्र भी राजी हो गए।

कुछ यूं है शुभम के जन्म की कहानी

जयचंद्र की पत्नी तीसरी बार गर्भवती हुईं तो उन्हें कमला नेहरू अस्पताल प्रयागराज में ही भर्ती कराया गया। वार्ड में पास वाले बेड पर अनुसूचित जाति की प्रयागराज के शिवकुटी निवासी अनीता भी भर्ती थीं। उनकी देखरेख के लिए बहन सुनीता कनौजिया वहां मौजूद थीं। जयचंद्र ने सुनीता से बातचीत की तो वह राजी हो गईं। जयचंद्र ने तीसरी संतान के रूप में पैदा हुए बेटे को जन्म के तुरंत बाद सुनीता की गोद में दे दिया और परंपरा के अनुसार नेग के तौर पर एक रुपये उनसे भेंट में लिए थे। बेटे का नाम शुभम सिंह रखा गया और सुनीता ने लालन पालन शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद शुभम जब बड़ा हुआ तो जयचंद्र ने उसे सुनीता से वापस अपने साथ ले गए। तब से अब तक शुभम की दो मां है और घर में उसी तरह सुनीता का आदर और सम्मान हर कार्यक्रम में होता है।

20 जून को शादी में आएंगी सुनीता

जयचंद्र ने बताया कि बेटा गुरुग्राम में नौकरी करता है। उम्र 24 वर्ष होने पर उसकी शादी कानपुर निवासी ज्योति से तय की है। 20 जून को बरात कानपुर जा रही है। शादी कार्यक्रम में शामिल होने प्रयागराज से सुनीता भी आ रहीं हैं। बेटा शुभम उन्हें लेने के लिए खुद जाना चाहता था, लेकिन सुनीता ने मना कर दिया कि परेशान न हो वह परिवार के साथ आएंगी। उन्होंने बताया कि छोटा बेटा सत्यम व बेटी अनामिका कार्यक्रमों पर सुनीता के घर जाते हैं। शादी की रस्मों में सुनीता की भूमिका मां के रूप में ही होगी। कहा जाए कि एक मां ने शुभम को जन्म दिया तो दूसरी मां सुनीता ने जीवन दिया है। उनसे जुड़े हर कामकाज में वो मां की तौर पर ही रस्में निभाती हैं। सुनीता अपने बच्चों से ज्यादा शुभम को प्रेम करती हैं। अब उसकी शादी में भी दो माताओं की जुगलबंदी देखने को मिलेगी।

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