पहाड़ी जंगल में जागी प्रेरणा तो धुल गए गरीबी के दाग, हाथ-ओ-हाथ बिक रहा मीरा का साबुन

बांदा में पहाड़ों और जंगल से घिरे फतेहगंज में पांच वर्ष पहले मीरा के नेतृत्व में महिलाओं के समूह ने 20 हजार रुपये कर्ज लेकर प्रेरणा ब्रांड साबुन बनाना शुरू किया था। कारोबार ने रफ्तार पकड़ी तो महिलाओं की गरीबी दूर हो गई है।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 11:58 AM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 11:58 AM (IST)
पहाड़ी जंगल में जागी प्रेरणा तो धुल गए गरीबी के दाग, हाथ-ओ-हाथ बिक रहा मीरा का साबुन
बांदा की महिलाओं के समूह ने समृद्धि की उड़ान भरी है।

बांदा, [शैलेंद्र शर्मा]। जंगलों व पहाड़ों से घिरे फतेहगंज में जहां रोजगार का खासा अभाव है, मीरा ने 'प्रेरणाÓ साबुन निर्माण के हुनर से मुफलिसी को मात देकर गरीबी के दाग धो डाले। करीब चार साल पहले महिलाओं का समूह बनाकर 20 हजार रुपये के ऋण से रोजगार की शुरुआत की और खुद के साथ अन्य महिलाओं के परिवारों को भी समृद्धि की सौगात दी। कोरोना काल में उनके कुटीर उद्योग से समृद्धि की उड़ान भरी है।

फतेहगंज को मिनी पाठा के रूप में जाना जाता है। यहां रोजगार के नाम पर खेती ही एकमात्र साधन है लेकिन ये भी सबके पास सुलभ नहीं है। यहां के विषम हालात में फतेहगंज निवासी रामभवन गुप्ता की पत्नी मीरा ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर वर्ष 2016-17 में शक्ति महिला स्वयं सहायता समूह का गठन किया था। महिला सदस्यों के साथ प्रशिक्षण लेकर दो वर्ष पहले वर्ष 2019 में कोरोना के शुरुआती काल में साबुन बनाने का काम श़ुरू किया था। इसके लिए उन्होंने 20 हजार रुपये का ऋण बैैंक से लिया था। प्रेरणा नाम से साबुन तैयार किया। मांग बढ़ी तो रोजगार भी चमक उठा। महज दो साल में मीरा व साथी महिलाओं को स्वावलंबन की राह मिल गई है। मीरा बताती हैं कि पहले घर खर्च चलाना मुश्किल था,लेकिन अब गृहस्थी की गाड़ी आराम से चल रही है।

हाथों हाथ बिक रहा साबुन : मीरा बताती हैैं कि साबुन में एक एलोवेरा मिश्रित और दूसरा गुलाब की सुगंध वाला साबुन है। इसकी हाथोंहाथ बिक्री हो रही है। रोजाना पांच से 10 गत्ता साबुन की पैकिंग होती है।

करीब 50 हजार रुपये हर माह मुनाफा : वह बताती हैं कि काम में सीधे तौर पर छह महिलाएं जुड़ी हैं। वह इस व्यवसाय के जरिए प्रतिमाह करीब 50 हजार रुपये शुद्ध मुनाफा कमा लेती हैं।

बचत से होते शादी-ब्याह : समूह की सदस्य बचत कर फंड भी इकट्ठा किए हैैं। समूह के बचत खाते में करीब डेढ़ से दो लाख रुपये हमेशा रहते हैं। इस राशि से समूह की महिलाएं बेटे-बेटियों के शादी-ब्याह, बीमारी आदि अपने जरूरी खर्चों में इस्तेमाल कर लेती हैं। उन्हें कहीं हाथ भी नहीं फैलाना पड़ता। बाद में उसकी अदायगी वापस समूह को कर देती हैैं।

-स्वावलंबन की दिशा में सराहनीय काम कर रही महिलाएं बुंदेलखंड के लिए मिसाल हैं। मीरा की मेहनत और लगन से कई महिलाओं को रोजगार मिला है। -कृष्ण कुमार पांडेय,उपायुक्त राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, बांदा

chat bot
आपका साथी