राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के सौ साल पूरे, एलईडी लाइट वाली पोशाक में सैनिकों की ड्रिल ने भरा रोमांच

फर्रुखाबाद में राजपूत रेजीमेंटल सेंटर की 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय राज्यमंत्री व उप-थलसेनाध्यक्ष भी मौजूद रहे। यहां अनूठी कंटीन्यूटी ड्रिल की आकर्षक प्रस्तुति देखकर मेहमान तालियां बजाते रहे। पहले दिन में बाई-एनियल कांफ्रेंस भी हुई।

By Abhishek AgnihotriEdited By: Publish:Thu, 25 Nov 2021 10:17 AM (IST) Updated:Thu, 25 Nov 2021 10:17 AM (IST)
राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के सौ साल पूरे, एलईडी लाइट वाली पोशाक में सैनिकों की ड्रिल ने भरा रोमांच
फर्रुखाबाद के राजपूत रेजीमेंटल सेंटर में शताब्दी समारोह।

फर्रुखाबाद, जागरण संवाददाता। अंधेरे में तरह-तरह की डिजाइन बन रही थीं, रोमांचित लोग तालियों से हौसला अफजाई कर रहे थे। ये नजारा था राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के शताब्दी समारोह पर करिअप्पा कांप्लेक्स के ग्राउंड का। बुधवार को एलईडी लाइट्स लगी ड्रेस पहने सैनिकों ने अनूठी कंटीन्यूटी ड्रिल प्रस्तुत कर मन मोह लिया। आकर्षक प्रस्तुति देख दर्शकदीर्घा में बैठे मेहमान तालियां बजाते रहे। इस दौरान सैन्य बैंड ने 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' की धुन बजाकर रोमांच भरा। इससे पहले दिन में बाई-एनियल कांफ्रेंस भी हुई।

यहां कांफ्रेंस व पुनर्मिलन समारोह में भाग लेने के लिए देश में विभिन्न मोर्चों पर तैनात राजपूत रेजीमेंट के अधिकारियों के अलावा सेवानिवृत्त अधिकारियों का पहुंचना मंगलवार शाम से ही शुरू हो गया था। बुधवार को जहां सैन्य अधिकारी बाई-एनियल कांफ्रेंस में व्यस्त रहे, वहीं सेवानिवृत्त अधिकारियों ने विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया। कार्यक्रम में केंद्रीय सड़क परिवहन राज्यमंत्री व पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह और उप थल सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल सीपी मोहंती के अलावा देश के विभिन्न स्थानों से आए राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के अधिकारी व सेवानिवृत्त अधिकारी मौजूद रहे।

राजपूत रेजीमेंट का इतिहास

राजपूत रेजीमेंट देश के सबसे पुराने सैन्यबलों में से एक है। इसके इतिहास की शुरुआत वर्ष 1778 में कानपुर में गठित तीन राजपूत से होती है। बाद में इसका नाम बदलकर 24 बंगाल नेटिव इंफेंट्री रखा गया। वर्ष 1858 में इसका लखनऊ रेजीमेंट के नाम से गठन किया गया और इसे लखनऊ युद्ध सम्मान से नवाजा गया। बाद में इसका नाम बदलकर 16 राजपूत कर दिया गया। वर्ष 1921 में भारतीय सशस्त्र सेनाओं के पुनर्गठन के बाद 16 राजपूत को फतेहगढ़ लाया गया और तभी से राजपूत रेजीमेंटल सेंटर यहां स्थापित है।

राजपूत रेजीमेंट की ताकत : वर्तमान में राजपूत रेजीमेेंट में 21 सक्रिय इंफेंट्री बटालियन, चार राष्ट्रीय रायफल बटालियन, दो टीए बटालियन, एक 804 टास्कफोर्स बटालियन, दो मेक इंफेंट्री बटालियन, एक गाड्र्स बटालियन, दो आर्टिलरी रेजीमेंट, 29 पैरा बटालियन के अलावा थल सेना का आइएनएस राना और वायुसेना का 15 स्क्वाड्रन शामिल हैं।

ड्रिल का इतिहास : सेना में अभ्यास और अनुशासन की दृष्टि से ड्रिल का बड़ा महत्व है। सबसे पहले वर्ष 1666 में जर्मन सैन्य अधिकारी मेजर जनरल ड्राल ने इसकी शुरुआत की थी। भारत में इसकी शुरुआत वर्ष 1834 में हुई।

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