अपनी जमीन से गंगा बेदखल, 'घुसपैठिए' काबिज

एक तरफ गंगा को अविरल बनाने के संकल्प हैं, वादे हैं तो दूसरी ओर इसे चुनौती देते नदी क्षेत्र में हैरान करने वाले नजारे, जो हर किसी को तो सहज नजर आते हैं, लेकिन जिम्मेदारों को नहीं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 10 Aug 2018 08:21 AM (IST) Updated:Fri, 10 Aug 2018 12:32 PM (IST)
अपनी जमीन से गंगा बेदखल, 'घुसपैठिए' काबिज
अपनी जमीन से गंगा बेदखल, 'घुसपैठिए' काबिज

जागरण संवाददाता, कानपुर : एक तरफ गंगा को अविरल बनाने के संकल्प हैं, वादे हैं तो दूसरी ओर इसे चुनौती देते नदी क्षेत्र में हैरान करने वाले नजारे, जो हर किसी को तो सहज नजर आते हैं, लेकिन जिम्मेदारों को नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने घाटों से दो सौ मीटर दायरे में निर्माण पर रोक लगा रही है। ऐसा ही आदेश नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का भी है। लेकिन, परवाह न उन्हें है जो गंगा के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहे हैं, न ही उन्हें जिन पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है। रानी घाट हो या परमट, अथवा अन्य घाट, गंगा अपनी ही जमीन से बेदखल की जा रही है और 'घुसपैठिए' अतिक्रमण कर काबिज हो गए हैं। कहीं नदी क्षेत्र के अंदर बस्ती बस गई तो कहीं मकानों और दुकानों का निर्माण। सिंचाई विभाग व केडीए की अनदेखी के चलते अभी भी कब्जों का सिलसिला जारी है।

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रानी घाट का हाल

भैरोघाट पंपिंग स्टेशन के पास लगे रानी घाट में गंगा के किनारे ही नहीं, अंदर तक पक्के निर्माण हो गए हैं, और अभी भी हो रहे हैं। बाढ़ का पानी न आए, इसके लिए बालू के टीले बना लिए गए हैं। बस्ती में बिजली के खंभे और लाइट तक लग गई है। बगल में ही भैरोघाट पंपिंग स्टेशन से रोज जलकल 20 करोड़ लीटर कच्चा पानी जलापूर्ति के लिए लेता है। बस्ती की गंदगी इसी पानी में गिरती है।

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परमट घाट पर भी निर्माण

परमट घाट के पास भी निर्माण चल रहे हैं। गंदा पानी पाइप के माध्यम से सीधे गंगा में डाला जा रहा है। लोगों ने घाट से सौ मीटर दूरी पर दुकानें बना ली हैं। बुढि़या घाट से सिद्धनाथ के बीच में कई निर्माण हो गए हैं। कई टेनरी तक अवैध हैं, लेकिन अफसरों को नहीं दिखाई दे रहा है।

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..तो किसकी मिलीभगत से चल रहा सब

गंगा की जमीन पर बेधड़क कब्जों पर विभागीय चुप्पी सवाल खड़े करती है कि किसकी मिलीभगत से यह सब चल रहा है। केडीए के अभियंताओं की मेहरबानी की चर्चाएं कहीं ज्यादा है। जाजमऊ में गंगा के किनारे केडीए ने एक बार अभियान चला कई अवैध सील किए थे, लेकिन उसके बाद से मौन साध रखा है। हालांकि, केडीए उपाध्यक्ष सौम्या अग्रवाल ने अफसरों को आदेश दिए हैं कि अवैध निर्माणों पर कार्रवाई की जाए।

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पांडु और नोन नदी जैसे न हो जाएं हालात

पांडु नदी व नोन नदी में कब्जों का नतीजा क्या रहा, इसका ताजा परिणाम सामने हैं। बारिश के पानी की निकासी न होने के कारण कई गांव जलमग्न हो गए हैं। अभी तक कई जगह पानी नहीं निकला है। बढ़ते अतिक्रमण के कारण गंगा के आसपास इलाकों में भी ऐसा ही खतरा मंडरा सकता है।

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