आइआइटी का यंत्र गांवों में जांचेगा मिट्टी की गुणवत्ता
कृषि विभाग के 60 लाख रुपये के सहयोग से तैयार हो रहा मिट्टी मापक यंत्र ।
जागरण संवाददाता, कानपुर : आइआइटी के विशेषज्ञ करीब दो साल पहले ही मिट्टी की गुणवत्ता जांचने वाले यंत्र बना चुके हैं। उनकी बिठूर, मंधना और चौबेपुर के गांवों में टेस्टिग भी हुई थी, जिसके बेहतर परिणाम सामने आए। अब इसी यंत्र का उच्चीकृत और नया रूप तैयार किया जा रहा है। इसे गांवों की मिट्टी की गुणवत्ता जांचना बहुत ही आसान हो जाएगा। इस काम के लिए कृषि विभाग ने 60 लाख रुपये की राशि दी है, जिसमें नया मॉडल बनाया जा रहा है।
विशेषज्ञों ने दिसंबर तक यंत्र को पूरी तरह से संचालित होने की उम्मीद जताई है। यह बहुत ही आसान रहेगा। हाथों में सामान्य तरीके से लेकर चला जा सकता है। मोबाइल से जोड़कर मिट्टी की रिपोर्ट कहीं भी भेजी जा सकती है। यंत्र महज दो सेकेंड में मिट्टी की गुणवत्ता, सोडियम, पोटेशियम, नाइट्रोजन समेत अन्य माइक्रो न्यूट्रियंट्स की जानकारी दे देगा। यंत्र प्रदेश की अलग अलग पंचायतों को दिए जाएंगे। वहां उनकी कार्यप्रणाली परखी जाएगी। एक खेत की मिट्टी की जांच में दो रुपये से कम का खर्चा आएगा। आइआइटी के डीन एल्युमिनाई व केमिकल इंजीनियरिग के प्रो. जयंत कुमार सिंह और उनकी टीम यंत्र विकसित कर रही है। प्रो. सिंह के मुताबिक यह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग तकनीक से युक्त हैं। इसमें ग्लोबल पोजिशनिग सिस्टम भी इंस्टॉल किया जाएगा, जिससे यह कहां है, कहां नहीं। उसकी स्थिति क्या है। कोई तकनीकी खराबी तो नहीं आई, इसकी जानकारी मिल सकेगी।
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10 प्रोटोटाइप हो चुके तैयार
प्रो. जयंत कुमार सिंह ने बताया कि 10 प्रोटोटाइप तैयार हो चुके हैं। इनकी जल्द ही टेस्टिग की जाएगी। सभी यंत्रों को अलग अलग पंचायतों को दे दिया जाएगा। यह काम कृषि विभाग द्वारा होगा। छह महीने में यंत्र बनाने की जिम्मेदारी मिली है।
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मिट्टी की सेहत पर उपज निर्भर
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मृदा रोग विशेषज्ञ डॉ. खलील खान ने बताया कि मिट्टी की सेहत पर फसलों की उपज निर्भर करती है। मिट्टी में सॉल्ट ज्यादा होने से फसल खराब हो जाती है। पौधे सूख जाते हैं। इसकी पहचान के लिए मिट्टी की जांच जरूरी है। अधिक सोडियम, पोटेशियम और नाइट्रोजन भी फसलों को प्रभावित करते हैं।