Covid News: IIT Kanpur के प्रोफेसर ने महामारी के समय नदियों में शव मिलने पर जताई चिंता, कही ये बात
आइआइटी कानपुर में पर्यावरण विभाग के प्रोफेसर विनोद तारे ने कहा है कि महामारी में गंगा और सहायक नदियों में शव मिलना गंभीर बात है। फिलहाल पानी में वायरस होने पर कोई शोध नहीं हुआ है। फिर भी सभी तरह के एहतियात बरतना जरूरी है।
कानपुर, जेएनएन। जब देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है, तब गंगा और उसकी सहायक नदियों में शवों का मिलना बेहद गंभीर बात है। बुधवार को आइआइटी कानपुर में पर्यावरण विभाग के प्रो. विनोद तारे ने यह बात कही। उन्होंने कहा, वैसे तो कोरोना वायरस के पानी में मिलने को लेकर फिलहाल अभी तक कोई शोध सामने नहीं आया है, फिर भी इन शवों को लेकर सभी तरह के एहतियात बरते जाने चाहिए। ये शव कहां से आए, इसकी भी जानकारी करें।
उन्होंने कहा कि पिछले कई सालों से गंगा में शव प्रवाहित होकर सामने आते रहे। जब सरकार ने प्रदूषण रोकने संबंधी सख्त कदम उठाए तो स्थिति काफी हद तक सुधरी भी। कहा, शव प्रवाहित होंगे तो इससे पानी जरूर दूषित होगा। आसपास रहने वालों की सेहत को भी खतरा हो सकता है। दरअसल, बिहार के बक्सर जिले के चौसा में महादेवा घाट और श्मशान घाट के बीच गंगा तट पर 71 शव बहते हुए मिले थे। मंगलवार को इन सभी शवों को पोस्टमार्टम को दफना दिया गया था। फिर शवों की पहचान को डीएनए जांच के लिए नमूने सुरक्षित रख लिए गए थे।
हालांकि, शवों के गलने से कोरोना संक्रमण का पता नहीं लग सका था। इससे पहले सोमवार को हमीरपुर में यमुना नदी में सात शव उतराते मिले थे। प्रो. तारे का कहना है कि जहां शव मिले हैं, अगर वहां नदी का पानी आमजन के लिए उपयोग में लिया जाता है तो पानी को शुद्ध करने के सरकारी सिस्टम का बखूबी इस्तेमाल होना चाहिए। इसके अलावा किसी तरह से घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
गंगा किनारे सख्त निगरानी करें
उन्होंने बताया कि बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में शव बहते हुए मिलने के बाद केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वह अपने क्षेत्र में सख्त निगरानी करें। गंगा व सहायक नदियों में शव विसर्जित करने पर रोक लगाएं। साथ ही इस मामले में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के आला अफसरों ने जिला गंगा समिति के अफसरों को पत्र भी लिखा है। निदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने 14 दिनों के अंदर इस मामले पर रिपोर्ट भी मांगी है।